
ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति के बारे में चिंतन एक बहत ही गहन विषय एवं तर्क तथा ज्ञान के परे वाली बात है। इस ब्लॉग में हम जानेंगे कि क्या कहता है हिन्दू धर्म ब्रह्मांड की उत्पत्ति के बारे में?
ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर आधुनिक विज्ञान ’बिग बैंग थ्योरी’ को मानता है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि हिन्दू धर्म और वैदिक ग्रंथों में इससे हज़ारों साल पहले ब्रह्मांड के निर्माण का उल्लेख मिलता है?
ऋग्वेद, पुराण और उपनिषदों में लिखी बातें आज के वैज्ञानिक तथ्यों से मेल खाती हैं। यह ब्लॉग इसी विषय पर आधारित है कि ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर हिन्दू धर्म का वैज्ञानिक दृष्टिकोण क्या है।
Table of Contents
ऋग्वेद में ब्रह्मांड की उत्पत्ति : नासदीय सूक्त और बिग बैंग थ्योरी
ऋग्वेद का नासदीय सूक्त (10.129) कहता हैः- “नासदासीन्नो सदासीत्तदानीं…“ इसका अर्थ है- ब्रह्मांड की उत्पत्ति से पहले कुछ भी नहीं था। ना ही सत् था और ना ही असत्। यह बात बिग बैंग थ्योरी से मेल खाती है, जो बताती है कि एक शून्य बिंदु से ही समय, स्थान और पदार्थ की शुरुआत हुई।
ब्रह्मा की उत्पत्तिः ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतीक
हिन्दू धर्म में ब्रह्मा को सृष्टिकर्ता माना गया है। लेकिन वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो ब्रह्मा का जन्म परब्रह्म से हुआ, जो अनंत ऊर्जा का स्रोत है। कमल से ब्रह्मा का प्रकट होना, चेतना के विकास और ब्रह्मांडीय ऊर्जा के केंद्र से विस्तार का प्रतीक है, ठीक वैसे ही जैसे विज्ञान में ब्रह्माण्ड के विस्तार की धारणा है।
ब्रह्मा का एक दिन : हिन्दू समय गणना और विज्ञान
हिन्दू ब्रह्मांड सिद्धांत के अनुसार, ब्रह्मा का एक दिन = 4.32 अरब वर्ष होता है। आश्चर्य की बात यह है कि आधुनिक खगोल विज्ञान पृथ्वी और सूर्य की आयु भी लगभग इतनी ही मानता है- 4.5 अरब वर्ष।
इससे यह प्रतीत होता है कि हिन्दू धर्म की समय की गणना वैज्ञानिक और खगोलीय दृष्टि से सटीक एवं प्रमाणिक है।
पंचतत्व : ब्रह्मांड और जीवन के निर्माण की नींव
हिन्दू धर्म में पांच तत्व- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु और आकाश को ब्रह्मांड की रचना का आधार माना गया है। यह बात आज के विज्ञान की ’स्टेट्स ऑफ मैटर’ की अवधारणा से मेल खाती है।
ॐ (ओम्) ध्वनि से ब्रह्मांड की उत्पत्ति
हिन्दू धर्म कहता है कि ब्रह्मांड की शुरुआत “ॐ“ (ओम्) ध्वनि से हुई। यह प्रणव ध्वनि ब्रह्मांडीय कंपन का प्रतीक है।
विज्ञान भी यह मानता है कि बिग बैंग के समय एक कंपन और ध्वनि उत्पन्न हुई थी, जिसे ’कॉस्मिक माइक्रोवेव बैकग्राउंड’ कहते हैं। ॐ की ध्वनि उसी से मिलती-जुलती प्रतीत होती है।
ब्रह्मांड के अनेक लोक : मल्टी-डायमेंशनल यूनिवर्स
हिन्दू धर्म के अनुसार, ब्रह्मांड अनेक लोकों से बना है। जैसे- भूः लोक (पृथ्वी), भुवः लोक (वायुमंडल), स्वः लोक (आकाश), महः, जनः, तपः, सत्यः लोक आदि। यह विचार आज के क्वांटम फिजिक्स और स्ट्रिंग थ्योरी में से मेल खाता है।
ब्रह्मांड का संकुचन और पुनः निर्माण
पुराणों और उपनिषदों में कहा गया है कि ब्रह्मांड बार-बार बनता है और फिर नष्ट होकर शून्य में विलीन हो जाता है। यह Oscillating Universe Theory जैसी है, जो कहती है कि ब्रह्मांड विस्तार के बाद फिर संकुचित होता है और यह चक्र चलता रहता है।
क्या हिन्दू धर्म विज्ञान से आगे है?
हिन्दू धर्म में ब्रह्मांड की उत्पत्ति को लेकर जो अवधारणाएं दी गई हैं, वे न केवल धार्मिक हैं बल्कि वैज्ञानिक भी हैं। ऋषि-मुनियों का ज्ञान आज के आधुनिक विज्ञान से पहले का है और आज वही बातें विज्ञान द्वारा प्रमाणित की जा रही हैं।
इससे यह बात तो साफ-साफ सिद्ध होती है कि हिन्दू धर्म विज्ञान से अभी बहुत आगे है क्योंकि आज के समय विज्ञान जिन बातों को अपने प्रयोगों के आधार पर प्रमाणित कर रहा है, उन्हीं चीजों को हिन्दू धर्म के ग्रन्थों में हजारो साल पहले बता दिया गया है।
हिन्दू धर्म में ब्रह्मांड की उत्पत्ति : निष्कर्ष
अगर आप हिन्दू धर्म की वैज्ञानिक बातें जानना चाहते हैं, तो वेद, पुराण और उपनिषद आपके लिए अमूल्य स्रोत हैं। इन्हीं ग्रंथों में ज्ञान-विज्ञान का वह भण्डार छिपा हुआ है, जिस विज्ञान आज के समय में अपने प्रयोगों के परिणाम के आधार पर दुनिया को बता रहा है।
ब्रह्मांड की उत्पत्ति पर हिन्दू धर्म का दृष्टिकोण, हमें यह सिखाता है कि विज्ञान और अध्यात्म साथ-साथ चल सकते हैं। अंतर केवल इतना सा है कि विज्ञान बाहर का विषय है और आध्यात्म अन्तर का विषय है।
तो दोस्तों! उम्मीद है कि ’हिन्दू धर्म में ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति’ विषय पर यह ब्लाग आपको पसंद आया होगा। आपको सुझाव सादर आमंत्रित है, जिससे हम अपने ब्लॉग के गुणवत्ता को और बढ़ा सकें।