मातंगी स्तोत्र | MATANGI STOTRA

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Matangi Stotra
 
मातंगी स्तोत्र | MATANGI STOTRA
 
आराध्य मातश्चरणाम्बुजे ते ब्रह्मादयो विश्रुतकीर्त्तिमापुः।
अन्ये परं वा विभवंमुनीन्द्राः परां श्रियं भक्तिभरेण चान्ये।।

मे मातः! ब्रह्मादि देवताओं ने तुम्हारे चरण कमलों की आराधना करके कीर्ति लाभ प्राप्त किया है। दूसरे मुनीन्द्र भी परम विभव को प्राप्त हुए हैं। अनेकों ने भक्ति भाव से तुम्हारे चरण कमलों की आराधना करके अत्यन्त लाभ प्राप्त किया है।

नमामि देवीं नवचन्द्रमौलिं मातंगिनीं चन्द्रकलावतंसाम्।
आम्नायकृत्यप्रतिपादितार्थं प्रबोधयन्तीं हृदिसादरेण।।

जिनके माथे पर चन्द्रमा शोभा पाता है। जो वेद प्रतिपादित अर्थ को सर्वदा आदर से हृदय में प्रबोधित करती हैं। उन्हीं मातंगिनी देवी को नमस्कार है।

विनम्रदेवासुरमौलिरत्नैर्विराजितं ते चरणारविन्दम्।
अकृत्रिमाणां वचसां विगुल्फं पादात्पदं सिंजितनूपुराभ्याम्।।
कृतार्थयन्तीं पदवीं पदाभ्यामास्फालयन्तीं कुचवल्लकीं ताम्।
मातंगिनीं मद्धदयेधिनोमि लीलंकृतां शुद्ध नितम्बबिम्बाम्।।

हे देवी! तुम्हारे चरण कमल सिर झुकाये देवासुरों के शिरों के रत्न द्वारा सुशोभित है। तुम अकृतिम वाक्य के अनुकूल हो। तुम्हीं शब्दायमान नूपुरयुक्त अपने दोनों चरणों से इस पृथ्वी मण्डल को कृतार्थ करती हो। तुम्हीं सदा वीणा बजाती हो। तुम्हारे नितम्ब अत्यन्त शुद्ध हैं। मैं तुम्हारा हृदय से ध्यान करता हूं।

तालीदलेनार्पितकर्णभूषां माध्वीमदाघूर्णितनेत्रपद्माम्।
घनस्तनीं शम्भुवधूं नमामि तडिल्लताकान्तवलक्षभूषाम्।।

तुमने ताल का करों में विभूषण धरण किया है। माध्वीक मद्यपान से तुम्हारे नेत्र कमल विघूर्णित होते हैं। तुम्हारे स्तन अत्यन्त घने हैं तुम महादेव जी की वधू हो। तुम्हारी कान्ति विद्युत के समान मनोहर है। तुमको नमस्कार है।

चिरेण लक्षं प्रददातु राज्यं स्मरामि भक्त्या जगतामधीशे।
वलित्रयांग तव मध्यमम्ब नीलोत्पलं सुश्रियमावहन्तीम्।।

हे मातः! मैं भक्ति सहित तुम्हारा स्मरण करता हूं। तुम बहुत काल का नष्ट हुआ राज्य प्रदान करती हो। तुम्हारी देह का मध्य भाग तीन वल्लियों से सज्जित है। तुमने नीलोत्पल के समान श्री धारण कर रखी है।

कान्त्या कटाक्षैर्जगतां त्रयाणां विमोहयन्तीं सकलान् सुरेशि।
कदम्बमालाचिंतकेशपाशं मातंगकन्यां हृदि भावयामि।।

हे सुरेश्वरी! तुम कान्ति और कटाक्ष द्वारा तीनों लोकों को मोहित करती हो। तुम्हारे केश कदम्ब माला से बंधे हुए हैं। तुम्हीं मातंग कन्या हो। मैं तुम्हारी हृदय में भावना करता हूं।

ध्यायेयमारक्तकपोलबिम्बं बिम्बाधरन्यस्तललाम वश्यम्। 
अलोललीलाकमलायताक्षं मन्दस्मितं ते वदनं महेशि।।

हे देवी! तुम्हारे जिस मोहक मुख पर गालों के नीचे रक्त वर्ण के होंठ परम सुन्दरता से सुसज्जित हैं, जिसमें चंचल अलकावली विराजमान हैं। आपके नेत्र बड़े हैं और आपके मुख पर मंद-मंद हास्य शोभा पाता है। उसी मुख कमल का मैं ध्यान करता हूं।

स्तुत्याऽनया शंकरधर्मपत्नी मातंगिनीं वागधिदेवतां ताम।
स्तुवन्ति यं भक्तियुता मनुष्याः परां श्रियं नित्यमुपाश्रयन्ति।।

जो पुरुष भक्तिमान होकर शंकर की धर्म पत्नी वाणी की अधिष्ठात्री मातंगिनी की इस स्तव द्वारा स्तुति करता है, वह सर्वदा परम श्री को प्राप्त करता है।


इति श्री मातंगी स्तोत्र सम्पूर्णं

 
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