सुखासन करने की विधि और लाभ

‘सुखासन’ शब्द का अर्थ है सुखद आसन, सुखमय आसन या सुख का आसन अर्थात वह आसन जिसमें बैठने से सुख मिले। यह आसन वास्तव में अत्यन्त सुखद तथा सरल है। पद्मासन में की जाने वाली सभी ध्यान क्रियाएं इसमें भी की जा सकती हैं। त्राटक के प्रारंभिक अभ्यास के लिए यह अति उत्तम आसन है।

सुखासन करने की विधि

सर्वप्रथम कम्बल या दरी को तीन-चार परतों में मोड़कर भूमि पर बिछा लेना चाहिए। इस आसन में आधार थोड़ा भी कठोर नहीं होना चाहिए। कम्बल बिछाने के पश्चात उस पर घुटनों को मोड़कर पालथी मारते हुए आसन धारण करें। दोनों हाथों को ढ़ीला करके घुटनों पर रखें या दोनों पावों के मिलन स्थान पर हथेलियों को नीचे करते हुए रखें। गर्दन, रीढ़, कमर को सीधा रखना चाहिए। पेशियों पर किसी प्रकार का दबाव या खींचाव न पड़े।

नीचे दिये गये चित्र का अनुसरण करें-

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Sukhasana

 

सुखासन की कई मुद्रायें हो सकती हैं। कोई भी मुद्रा जिसमें आपको बैठने से आराम मिलता हो, सुखासन है। शर्त केवल यह है कि पेशियों को ढ़ीला छोड़ दें और पीठ, कमर, गर्दन आदि सीधा रखें।

सुखासन करने के लाभ

बैठकर किये जाने वाले कार्यों के लिए यह आसन सबसे उत्तम है क्योंकि इसमें शीघ्र थकान का अनुभव नहीं होता है। कमर तथा मेरुदण्ड को सीधा रखकर अभ्यास करने से इनमें लचीलापन आता है। इस आसन से शरीर तथा मस्तिष्क दोनों तनाव मुक्त हो जाते हैं।

सुखासन करते समय सावधानियां

सुखासन करते समय मुंह उत्तर दिशा की तरफ नहीं होना चाहिए। पेशियों को ढ़ीला रखें। कमर, पीठ, रीढ़ और गर्दन को सीधा रखें। सुखासन में ध्यान लगाते समय पहले मस्तिष्क को भी स्वतंत्र छोड़ दें, ताकि विचारों की धारा का शमन हो सके।

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2 thoughts on “सुखासन करने की विधि और लाभ”

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