विज्ञान भैरव तंत्र : तंत्र विज्ञान की एक अद्वितीय साधना

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विज्ञान भैरव तंत्र

विज्ञान भैरव तंत्र, तंत्र विज्ञान की एक प्रमाणिक ग्रंथ है। यह ग्रंथ शिव-पार्वती संवाद के रूप में संकलित हुआ है। पार्वती की जिज्ञासाओं को शांत करते हुए शिव ने तंत्र की 120 प्रक्रियाओं का रहस्योद्घाटन किया है।

तंत्र की यह 120 क्रियाए विज्ञान भैरव तंत्र नामक ग्रंथ में संकलित की गयी हैं। तंत्र शास्त्र के इस ग्रंथ ने एक समय तंत्र विज्ञान को नई ऊंचाई तक पहुंचने में बहुत मदद की थी। यह भी पढ़ें- जनेऊ धारण विधि-यज्ञोपवीत संस्कार की 15 महत्वपूर्ण बातें

इस ग्रंथ में आत्मदर्शन एवं सिद्धावस्था को प्राप्त करते हुए शिव तंत्र में लीन हो जाने की 120 से ज्यादा तंत्र प्रक्रियाओं को स्पष्ट किया गया है।

तंत्र की यह विधियां आज भी उतनी ही प्रमाणिक एवं प्रभावपूर्ण सिद्ध होती हैं, जितनी वह सदियों पूर्व थीं। विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित समस्त दिव्य क्रियाएं आडम्बर रहित हैं। इन क्रियाओं में किसी बाहरी उपचार की कोई आवश्यकता नहीं होती है।

विज्ञान भैरव तंत्र का महत्व

विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित विधियों के थोड़े से अभ्यास से ही कई तरह की दिव्य अनुभूतियां, कई तरह के चमत्कार घटित होने लग जाते हैं। क्रियायोग, कुण्डलिनी जागरण, अणिमा-लघिमा जैसी अष्ट सिद्धियों आदि जिन सहस्त्रों प्रक्रियाओं का उल्लेख विभिन्न ग्रंथों में हुआ है, उन समस्त तंत्र साधनाओं का मूल आधार यही ग्रंथ रहा है।

इस ग्रंथ की साधना आसान तो नहीं कही जा सकती परन्तु कठिन भी नहीं कही जा सकती है, क्योंकि विज्ञान भैरव तंत्र में वर्णित साधनाएं एक वैज्ञानिक प्रयोग जैसी हैं।

इनकी साधनाओं में श्रद्धा की आवश्यकता नहीं है, और न ही भक्ति की जरूरत है। क्योंकि हम सभी जानते हैं कि वैज्ञानिक प्रयोग करने के लिए केवल तत्परता और लगन की जरूरत होती है, न कि श्रद्धा और भक्ति की। यह भी पढ़ें- कब्ज का रामबाण इलाज – 15 घरेलू उपाय

विज्ञान भैरव तंत्र ओशो

विज्ञान भैरव तंत्र की विधियों का यदि किसी वर्तमान समय के साधक ने बहुत ही सरल एवं सरस भाषा में व्याख्या किया है तो वह है- ओशो।

ओशो कहते हैं कि विज्ञान भैरव तंत्र न हीं बौद्धिकता पर अवलम्बित है और न ही दार्शनिकता पर। यह तो मात्र एक विज्ञान है। एक वैज्ञानिक ग्रंथ है, जो धर्म, मान्यता एवं पूजा-पाठ, उपासना के नियमों से परे है।

विज्ञान भैरव तंत्र की व्याख्या ओशो द्वारा इस प्रकार किया गया है जो सभी के लिए चाहे वह विद्वान हो या कम पढ़ा लिखा, आसानी से ग्राह्य है।

ओशो द्वारा व्याख्यायित विज्ञान भैरव तंत्र की सभी विधियों की पी0डी0एफ फाइल यहां उपलब्ध किया जा रहा है, जिसे डाउनलोड करके आप प्रत्येक विधि की साधना कर सकते हैं।

विज्ञान भैरव तंत्र pdf Download

विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्रों की अन्य विद्वानों द्वारा जो व्याख्या की गई है उनमें से सूत्र एक की व्याख्या प्रस्तुत है। जिसे विद्वान लोग अपने ज्ञानानुसार और गुरु से सही ज्ञान प्राप्त कर उनके दिशा निर्देशन में साधना कर सकते हैं-

विज्ञान भैरव तंत्र विधि 1

विज्ञान भैरव तंत्र (सूत्र-1) :-

श्री भैरव उवाच :

ऊर्ध्वे प्राणो ह्यधो जीवो विसर्गात्मा परोच्चरेत्।
उत्पत्तिद्वितयस्थाने भरणाद् भरिता स्थितिः।।

व्याख्या – देवी द्वारा परा देवी के स्वरूप को पहचानने के लिए भगवान भैरव से जो उपाय पूछे गये उसके प्रत्युत्तर में क्रमशः एक के बाद दूसरी 112 धारणाओं का निरूपण करते हुए भगवान भैरव कहते हैं-

ऊपर हृदय से द्वादशांत (प्राण और अपान की गति जिस स्थान पर जाकर रुक जाती है, उसको द्वादशांत कहते हैं) तक जाने वाला प्राण और द्वादशांत से हृदय तक आने वाला जीव नामक अपान, यह परा देवी का उच्चारण है, स्पन्दन है।

परा देवी ही स्वयं इसका निरन्तर उच्चारण करती रहती हैं। अर्थात प्राण और अपान के रूप में स्पन्दित होती रहती हैं। यह परा देवी विसर्ग स्वभाव है। अर्थात आन्तर और बाह्य भावों की सृष्टि करना ही इसका स्वरूप है।

ऊपर द्वादशांत में प्राण की स्थापना करनी चाहिए, जो कि प्राणन रूप अर्थात जीवन रूप चित्त की एक वृत्ति है। नीचे हृदय में जीव उपाधि वाले अपान को स्थापित करना चाहिए।

इसको जीव इसलिए कहा जाता है कि अपान वायु खाई गयी अथवा पी गई वस्तु को नीचे के मार्ग में ले जाता है। इसी उपाधि के कारण इसको जीव कहते हैं। यह भी पढ़ें- दुर्गा साधना – एक बार अवश्य करें- जिंदगी बदल जायेगी

अन्दर आना और बाहर जाना जिसका स्वरूप है, स्वभाव है, प्राण वृत्ति का यही स्वभाविक व्यापार ही परा शक्ति का उच्चारण, स्पन्दन है, जो शरीर के भीतर निरन्तर चल रहे ‘अहम्’ चक्र में अपना स्थान बनाए हुए है।

उक्त दोनों स्थितियों का जब अलग-अलग चिन्तन होता है, तभी ‘अहम्’ तत्व प्रकाशित होता है, उत्पन्न होता है। वह द्वादशांत एवं हृदय में अवस्थिति रहता है। इस स्थिति के कारण साधक को सम्पूर्ण स्वरूप लाभ की स्थिति प्राप्त हो जाती है।

अर्थात् सभी तरह की उपाधियों का विस्मरण हो जाने से ‘अहम्’ यह विमर्श, अर्थात ‘मैं ही भैरव हूं’ इस तरह की प्रत्यभिज्ञा निश्चित रूप से हो जाती है।

विज्ञान भैरव तंत्र pdf

उपरोक्त व्याख्या थोड़ा जटिल प्रतीत होती है। इसलिए विज्ञान भैरव तंत्र के सूत्रों का जो वर्णन आशो द्वारा किया गया है, वर्तमान में वह सभी के लिए समझने में सरल एवं सुलभ है। विज्ञान भैरव तंत्र pdf नीचे दिये लिंक पर क्लिक करके डाउनलोड करें-

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