ब्रह्माण्ड कैसे बना – पुराणों का नज़रिया

पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और सृष्टि का रहस्य
पुराणों में वर्णित ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति और सृष्टि का रहस्यमयी चित्रण

हम सबके मन में यह प्रश्न अवश्य उठता है कि यह अनंत आकाश, असंख्य तारे, ग्रह-नक्षत्र और स्वयं पृथ्वी आखिर कैसे बनी होगी? आधुनिक विज्ञान इसका उत्तर बिग बैंग थ्योरी जैसी अवधारणाओं से देता है, लेकिन भारतीय संस्कृति और पुराणों में इसका अपना गहन और रहस्यमयी दृष्टिकोण है।

पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड का निर्माण मात्र एक भौतिक घटना नहीं बल्कि दिव्य ऊर्जा और ब्रह्म की इच्छा का परिणाम है। आइए जानते हैं कि पुराणों का नज़रिया ब्रह्माण्ड की उत्पत्ति को किस प्रकार समझाता है।

1. ब्रह्माण्ड की शुरुआत – शून्य से सृष्टि

पुराणों में कहा गया है कि प्रारंभ में सब कुछ शून्य था। न आकाश था, न जल था, न धरती और न ही कोई जीव। केवल परम ब्रह्म की सत्ता विद्यमान थी। यही ब्रह्म निराकार, अनंत और अजन्मा है। उसी परम तत्व से सृष्टि की शुरुआत हुई।

ऋग्वेद के नासदीय सूक्त में कहा गया है –
“ना अस्ति, ना अनस्ति, ना मृत्यु, ना अमरत्व, केवल वही एक अदृश्य शक्ति विद्यमान थी।”

यह स्पष्ट करता है कि ब्रह्माण्ड की जड़ में कोई दिव्य चेतना है, जिसने शून्य से सृष्टि को जन्म दिया।

2. विष्णु, शेषनाग और हिरण्यगर्भ

विष्णु पुराण और अन्य ग्रंथों में बताया गया है कि जब सब कुछ शून्य था तब भगवान विष्णु क्षीरसागर में शेषनाग की शय्या पर शयन कर रहे थे। उनके नाभि से एक कमल प्रकट हुआ और उस कमल से ब्रह्मा जी उत्पन्न हुए।

ब्रह्मा को सृष्टि की रचना का दायित्व सौंपा गया। यही कमल हिरण्यगर्भ कहलाया, जिसे ब्रह्माण्ड का बीज भी माना जाता है।

3. सृष्टि की रचना – पंचमहाभूतों से जगत

ब्रह्मा जी ने सबसे पहले पंचमहाभूत – आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी – की रचना की। इन तत्वों से समस्त ब्रह्माण्ड का निर्माण हुआ।

  • आकाश से स्थान मिला

  • वायु से गति

  • अग्नि से प्रकाश और ऊर्जा

  • जल से जीवन

  • पृथ्वी से स्थिरता

यही पाँचों तत्व आज भी सृष्टि का आधार हैं और इन्हीं के मेल से ब्रह्माण्ड चलता है।

4. सृष्टि चक्र – निर्माण, पालन और प्रलय

पुराणों में सृष्टि को चक्रात्मक बताया गया है। यानी यह केवल एक बार नहीं बनी बल्कि निरंतर सृजन और प्रलय का क्रम चलता रहता है।

  1. सृष्टि – जब ब्रह्मा जी नई रचना करते हैं।

  2. स्थिति – जब विष्णु जी इस सृष्टि का पालन करते हैं।

  3. प्रलय – जब भगवान शिव के तांडव से सृष्टि का अंत होता है।

इसके बाद पुनः नई सृष्टि आरंभ होती है। इस दृष्टिकोण से ब्रह्माण्ड का अस्तित्व अनंत और चक्रीय है।

5. समय और कल्प की अवधारणा

पुराणों में समय की गणना भी बेहद रोचक है। एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, 4.32 अरब मानव वर्षों के बराबर माना गया है। उतने ही वर्षों का एक रात्रि भी होती है।

  • 14 मन्वंतर मिलकर एक कल्प बनता है।

  • ब्रह्मा का जीवन 100 वर्ष का होता है, और उसके बाद भी अनगिनत ब्रह्माण्ड उत्पन्न और लय होते रहते हैं।

यह दिखाता है कि हिंदू दर्शन में समय को रेखीय नहीं बल्कि अनंत चक्र के रूप में देखा गया है।

6. विज्ञान और पुराण – समानताएँ

आधुनिक विज्ञान के अनुसार ब्रह्माण्ड लगभग 13.8 अरब वर्ष पूर्व एक बिग बैंग से उत्पन्न हुआ। सब कुछ एक बिंदु से फैलकर आज के विशाल ब्रह्माण्ड में बदल गया।

अगर ध्यान दें तो पुराणों में वर्णित हिरण्यगर्भ और बिग बैंग की अवधारणा में आश्चर्यजनक समानता दिखाई देती है। दोनों ही कहते हैं कि सृष्टि की शुरुआत एक सूक्ष्म बिंदु या बीज से हुई।

7. पुराणों की गहरी सीख

पुराणों का नज़रिया हमें यह बताता है कि ब्रह्माण्ड केवल पदार्थ और ऊर्जा का मेल नहीं है बल्कि इसमें एक चेतना और दैवीय व्यवस्था भी है।

  • यह हमें प्रकृति का सम्मान करना सिखाता है।

  • यह बताता है कि सब कुछ नश्वर है और हर निर्माण का अंत निश्चित है।

  • यह भी समझाता है कि जीवन केवल भौतिक उपलब्धियों तक सीमित नहीं बल्कि आत्मिक उन्नति भी उतनी ही ज़रूरी है।

निष्कर्ष

पुराणों के अनुसार ब्रह्माण्ड का निर्माण परम ब्रह्म की इच्छा से हुआ और यह सृष्टि चक्रीय रूप में चलती रहती है। ब्रह्मा सृजन करते हैं, विष्णु पालन करते हैं और शिव अंत करते हैं। पाँच महाभूतों से बना यह ब्रह्माण्ड नश्वर भी है और अनंत भी।

विज्ञान और पुराण दोनों अपनी-अपनी भाषा में एक ही सत्य की ओर संकेत करते हैं कि सृष्टि का उद्गम किसी एक महान शक्ति से हुआ है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति आज भी ब्रह्माण्ड को केवल पदार्थ नहीं बल्कि परमात्मा का स्वरूप मानती है।

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