धर्म कहता है – स्त्री (STREE) को अपने अंगो का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए

स्त्री (Stree) : हिन्दू धर्म में स्त्रियों को देवी के समान माना गया है। हमारे धर्म में जितना सम्मान एक स्त्री को दिया गया है, सायद ही किसी धर्म में इतना ऊँचा स्थान स्त्री को प्रदान किया गया हो।
हमारा धर्म इस संसार के प्रत्येक स्त्री (Stree) को देवी का ही अंश मानता है तथा इनकी पूजा, इनका सम्मान एवं इन्हें उचित आदर देने का उपदेश भी देता है।
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हमारे धर्म ग्रंथों में कहा गया है कि ’’यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तत्र देवता’’ अर्थात् जिस घर में नारियों की पूजा होती है, वहां देवताओं का निवास होता है।

एक स्त्री अपने आप में एकल नहीं होती अपितु वह कई रूपों में अपनी पूरी जिंदगी को जीती है और कई रूपों में हमारे जीवन को पूर्णता प्रदान करने में सहयोग करती है।

चाहे स्त्री (Stree) का वात्सल्य से भरा माता का रूप हो या प्रेम से भरा बहन का, चाहे हमारे जीवन के हर दुख को खुद पर ले लेने को आतुर रहने वाली पत्नी का रूप ही क्यों न हो।
हर रूप में एक स्त्री हमारे और हमारे समाज के लिए वरदान है, कल्पतरु है, जो अपना सर्वस्व लुटा देने को सदा आतुर रहती है।
परन्तु आज स्त्रियों की दशा और दिशा दोनों देखकर हृदय द्रवित हो जाता है। लोग स्त्री (Stree) को केवल भोग का साधन समझ बैठे हैं और उन्हें उचित सम्मान नहीं दे रहे है।
ऐसे लोगों को यह समझना चाहिए कि स्त्री भोग का नहीं, मोक्ष का साधन है।

 

आज के युग में स्त्रीयों (Stree) द्वारा अंग प्रदर्शन

बदलते समय के अनुसार आज अधिकांश स्त्रियाँ भी दिशा हीन हो चुकी हैं। अपने अंगों के प्रदर्शन, अपने गलत चाल-चलन के कारण अपना सम्मान और अपनी प्रतिष्ठा दोनों खोती जा रहीं हैं। 
शास्त्रों में स्त्रियों को ब्रह्मा भी कहा गया है क्योंकि एक स्त्री निर्माण करती है, एक समाज का, एक नागरिक का एक महान देश का। इसलिए स्त्री को कैसे रहना चाहिए, इसके बारे में निम्न श्लोक का वर्णन जरूरी हैः-
अधः पश्यस्व मोपरि सन्तरां पादकौ हर। 
मा ते कशप्लकौ दृशन् स्त्री हि ब्रह्मा बभूविथ।।
अर्थ- हे नारि! नीचे देख, ऊपर मत देख। दोनो पैरों को ठीक प्रकार से एकत्र करके रख। दोनों स्तन, पीठ और पेट, दोनो नितम्ब, दोनो जांघों, दोनो पिण्डलियां और दोनों टखने दिखाई न दें। यह सबकुछ किसलिए? क्योंकि स्त्री ब्रह्मा, निर्माणकर्त्री हुई है।

स्त्री (Stree) को कैसे रहना चाहिए 

उपरोक्त श्लोक में नारी के शील का बहुत ही सुन्दर चित्रण किया गया है। प्रत्येक नारी को इन गुणों को अपने जीवन में धारण करना चाहिए।
  • स्त्रियों को अपनी दृष्टि सदा नीचे रखनी चाहिए, ऊपर नहीं। नीचे दृष्टि रखना लज्जा और शालीनता का प्रतीक है। ऊपर देखना निर्लज्जता और अशालीनता का द्योतक है।
  • स्त्रियों को चलते समय दोनों पैरों को मिलाकर बड़ी सावधानी से चलना चाहिए। इठलाते हुए, मटकते हुए, हाव-भाव का प्रदर्शन करते हुए, चंचलता और चपलता से नहीं चलना चाहिए।
  • नारियों को वस्त्र इस प्रकार धारण करना चाहिए कि उनके गुप्त अंग- स्तन, पेट, पीठ, जंघाएं और पिण्डलियां आदि दिखाई न दे। अपने अंगों का प्रदर्शन करना विलासिता और लम्पटता का द्योतक है।
सभी के मन में एक सवाल जरूर उठता होगा कि स्त्री (Stree) के लिए इतना बन्धन क्यों? इतना कठोर साधना किसलिए? तो इसका उत्तर है कि नारी ब्रह्मा है, वह जीवन निर्मात्री और सृजनकर्त्री है। यदि नारी ही बिगड़ गई तो सृष्टि भी बिगड़ जाएगी।

हर जीव इस प्रकृति के अनुकूल होकर ही जी सकता है। इसके प्रतिकूल जाने पर नुकसान है। स्त्री प्रकृति शक्ति का ही एक रूप है, और स्त्री हीं बिगड़ जाएगी तो सर्वस्व नाश होना ही होना है, और यह सब आज हम सब अपनी आंखो से देख भी रहें हैं।
 
इसलिए माताओं और बहनों! अपने अंगों का प्रदर्शन मत करो। अपने धर्म की रीति के अनुसार अपना जीवन जीओ और देवी दुर्गा के सदृश पूजित हो।

तुम मत भूलो की तुम त्याग की प्रतिमूर्ति हो, तुम प्रेम की देवी हो, तुम्हारे अंदर असीम सहन शक्ति है। तुम माँ हो, तुम्हारे स्थान को इस संसार में कोई नहीं ले सकता है। 
 
हे स्त्री (Stree)! तुम्हे देवी का अंश बताकर तुम्हे पूजित किया गया है, तुम अपने मर्यादा और शील के अंदर रहो
 
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3 thoughts on “धर्म कहता है – स्त्री (STREE) को अपने अंगो का प्रदर्शन नहीं करना चाहिए”

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