महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI), भगवान शिव की पूजा, साधना एवं अभिषेक करने हेतु विशेष दिवस है।
सृष्टि में शिवलिंग की उत्पत्ति माघ-मास, कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी तिथि के महानिशा में हुआ था। इसलिए माघ-मास, कृष्ण पक्ष के चतुर्दशी की रात को महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है।
इसी रात्रि को भगवान शिव ने भगवती पार्वती का वरण किया था, इसलिए इसे शिवगौरी दिवस भी कहा जाता है।
MAHASHIVRATRI
महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI), के दिन भगवान शिव की पूजा, साधना, अर्चना एवं अभिषेक करने के लिए हर साधक तत्पर रहता है, क्योंकि भगवान शंकर, तजोमय, समस्त श्रेष्ठ कर्मों को सम्पन्न करने वाले तथा सभी के लिए सर्वत्र कल्याणकारक हैं।
भगवान सदाशिव, जो भोले नाथ भी हैं, रसेश्वर भी हैं, नटराज भी हैं, शक्ति से सदैव युक्त हैं। सृष्टि की उत्पत्ति से संहार तक केवल भगवान शिव ही शिव हैं।
चाहे सगुण रूप से मूर्तिमान रूप में उपासना की जाए अथवा निर्गुण रूप में शिवलिंग रूप की उपसना की जाए, वे केवल विल्व पत्र और अविरल जलधारा, दुग्ध धारा से प्रसन्न होने वाले देव हैं, और ऐसे देवों के देव महादेव की उपासना, साधना और अभिषेक के लिए महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) से महान कोई पर्व नहीं हो सकता।
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महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) की महिमा
सौर, गाणपत्य, शैव, वैष्णव और शाक्त – प्रधानतः इन्हीं पांच सम्प्रदायों में विराट हिन्दू समाज विभक्त है। इनमें से जो जिसके उपासक होते हैं, वे अपने उस इष्टदेव को छोड़कर अन्य किसी की उपासना प्रायः नहीं करते, परन्तु महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI)पर्व की महिमा निराली है।
इस दिन सभी मत-भेद को त्याग कर सभी सम्प्रदाय के लोग भगवान शिव की साधना उपासना करते हैं। शास्त्र में भी ऐसा वर्णित है, तथा इसी विधान का आज तक पालन होता आया है कि सम्प्रदाय भेद को त्याग, सभी मनुष्य इसका पालन करते हैं और इसके फलस्वरूप भोग और मोक्ष दोनों को प्राप्त करना चाहते हैं। (Mahashivratri)
ईशान संहिता में शिवरात्रि के सम्बन्ध में कहा गया है-
माघकृष्णचतुर्दश्यामादिदेवो महानिशि।
शिवलिंगतयोद्भूतः कोटिसूर्यसमप्रभः।।
तत्कालव्यापिनी ग्राह्या शिवरात्रिव्रते तिथिः।।
अर्थात, माघ-मास की कृष्ण चतुर्दशी की महानिशा में आदिदेव महादेव कोटि सूर्य के समान दीप्तिसम्पन्न, शिवलिंग के रूप में आविर्भूत हुए थे, अतएव शिवरात्रि में उसी महानिशा-व्यापिनी चतुर्दशी को ग्रहण करना चाहिए।
इसके सम्बन्ध में भगवान शिव स्वयं कहते हैं-
फाल्गुने कृष्णपक्षस्य वा तिथिः स्याच्चतुर्दशी।
तस्या या तामसी रात्रिः सोच्यते शिवरात्रिका।।
तत्रोपवासं कुर्वाणः प्रसादयति मां धुव्रम्।
न स्नानेन न वस्नेन न धूपेन न चार्चया।।
तुष्यामि न तथा पुष्पैर्यथा तत्रोपवासतः।।
अर्थात, फाल्गुन के कृष्ण पक्ष चतुर्दशी तिथि को आश्रय कर जिस अन्धकारमयी रजनी का उदय होता है, उसी को शिवरात्रि कहते हैं।
उस दिन साधना अभिषेक करने से मैं जैसा प्रसन्न होता हूं, वैसा स्नान, वस्त्र, धूप और पुष्प के अर्पण से भी नहीं होता। (महाशिवरात्रि-Mahashivratri)
महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) सभी के लिए कल्याणदायी है
भगवान सदाशिव देवों के देव महादेव हैं, जिनकी कृपा तले यह चराचर विश्व गतिशील है। भगवान शिव को औघड़दानी कहा गया है, जो कृपा कर अपने भक्तों को सदैव अभय, वर एवं सामर्थ्य प्रदान करते हैं।
भगवान शिव ही एक मात्र गृहस्थ देव हैं जिनकी पूजा पूरे परिवार सहित की जाती है। भगवान शिव के परिवार में माँ पार्वती, पुत्र गणेश एवं कार्तिकेय वाहन नन्दी सम्मिलित है।
शिव पूजन और साधना गृहस्थ व्यक्तियों द्वारा परिवार में सुख, समृद्धि प्राप्ति के लिए, कन्याओं द्वारा श्रेष्ठ पति प्राप्ति के लिए, वृद्ध और रोगियों द्वारा पूर्ण रोग मुक्ति के लिए, भय से ग्रसित व्यक्तियों के लिए मृत्युंजय स्वरूप में, योगियों संन्यासियों के लिए पूर्ण सिद्धेश्वर रूप में, अर्थात सभी द्वारा अपने-अपने अभीष्ट कार्यों के लिए शिवपूजा अवश्य सम्पन्न की जाती है।
ऐसा कोई अभागा ही होगा, जिसने भगवान शिव की पूजा साधना की हो और उसे फल प्राप्त नहीं हुआ हो। (महाशिवरात्रि-Mahashivratri)
शिव साधना से तो अभागे व्यक्ति के भाग्य भी खुल जाते हैं। भगवान शिव तो सदैव वर प्रदान करते ही हैं, इसीलिए उनकी स्तुति देवताओं के साथ-साथ गण, राक्षस, गंधर्व, भूत-प्रेत, पिशाच सभी सम्पन्न करते हैं।
महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) का पर्व मस्ती, उल्लास और आनन्द का पर्व है। इस दिन प्रत्येक व्यक्ति को यथा बाल, युवा, वृद्ध, गृहस्थ, योगी, सन्यासी, स्त्री, पुरुष सभी को शिव पूजन एवं अभिषेक अवश्य ही सम्पन्न करना चाहिए।
वैसे तो भगवान शिव को एक लोटा जल चढ़ाकर ही प्रसन्न किया जा सकता है, परन्तु महाशिवरात्रि के दिन विधि-विधान से शिव-पूजन करने का आनन्द ही कुछ और होगा।
MAHASHIVRATRI
महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) पर करें शिव का सरल पूजन
भगवान भोलेनाथ अपने नाम के अनुरूप ही भोले एवं परम दयालू देवता हैं। महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) को इनकी पूजा समर्पण भाव से करें, भोलेनाथ की कृपा अवश्य प्राप्त होगी।
सबसे पहले ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जप करते हुए दूध, दही, शहद एवं अन्त में शुद्ध जल से भगवान भोलनाथ का अभिषेक करें।
अभिषेक के दौरान लगातार ऊँ नमः शिवाय मंत्र का जाप जारी रखें। अभिषेक सम्पन्न होने के बाद अबीर, गुलाल, इत्र, चन्दन, विल्व पत्र, पुष्प, धूप, एवं दीप से भगवान भोलेनाथ का पूजन करें। पूजनोपरांत नैवेद्य अर्पित करें।
पूजन सम्पन्न हो जाने के बाद ऊँ नमः शिवाय मंत्र का पूरे मनोयोग से रुद्राक्ष की माला से 21 माला जाप करें और जप को भगवान शिव को समर्पित कर दें।
भगवान से अपनी एवं अपने पूरे परिवार की सुरक्षा एवं समृद्धि के लिए प्रार्थना करें। भगवान के निमित्त जो भी करें, जो भी कहें, पूरे हृदय से कहें। महादेव आपकी प्रार्थना अवश्य सुनेंगे।
महाशिवरात्रि (MAHASHIVRATRI) का यह पर्व भगवान भोलेनाथ की कृपा से आपके लिए मंगलदायी एवं शुभकारक सिद्ध होगा।
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