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GRAHAN |
GRAHAN (ग्रहण ) : वैसे तो विज्ञान के मान्यता अनुसार ग्रहण एक सामान्य खगोलीय घटना है जिसमें कोई खगोलीय पिण्ड किसी अन्य प्रकाशीय खगोलीय पिण्ड के सामने कुछ समय के लिए आ जाता है।
जिससे कुछ समय के लिए प्रकाश का अवरोधन हो जाता है। परन्तु हिन्दू धर्म मान्यता के अनुसार ग्रहण (GRAHAN) एक विशेष काल है जिसका अच्छा और बुरा प्रभाव मनुष्यों पर पड़ता है। हिन्दू धर्म में ग्रहण काल को बहुत प्रभावकारी माना गया है एवं इसे उच्च महत्व दिया गया है।
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GRAHAN | ग्रहण पर हिन्दू धर्म की मान्यता
ग्रहण (GRAHAN) काल की हमारे ऋषियों ने जितनी महत्ता बताई है, उतनी महत्ता शायद ही किसी और पर्व की बतलाई हो। जो भी मनुष्य अपने सिंचित पापों का नाश करना चाहता हो, अपनी समस्याओं से मुक्त होना चाहता हो, मोक्ष पाना चाहता हो, उसके लिए ग्रहण काल साक्षात अमृत तुल्य है।
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कई तंत्र शास्त्रों में एवं पुराणों में सूर्यग्रहण तथा चन्द्रग्रहण के समय मंत्र-दीक्षा लेने के लिए सर्वोत्तम समय बताया गया है। सिद्धि प्राप्त करने के लिए सूर्यग्रहण के समान और कोई समय नहीं है। सूर्यग्रहण में अनायास ही यन्त्र-मंत्र की सिद्धि हो जाती है।
शास्त्रों में लिखा है कि यदि कोई साधना अत्यन्त कठिन हो और सम्पन्न न हो रही हो या पितृ दोष, पूर्व जन्मकृत कोई दोष हो, जिस कारण साधना में सिद्धि नहीं मिल रही हो तब भी उसके लिए ग्रहण (GRAHAN) का समय सर्वाधिक उपयुक्त माना गया है।
चाहे मंत्र सम्बन्धित प्रयोग हो या तंत्र सम्बन्धित क्रियाएं ग्रहण काल में अवश्य ही सिद्धि प्राप्त होती है।
अवतारों के जीवन में भी ग्रहण (GRAHAN) की महत्ता के प्रसंग देखने को मिलते हैं। भगवान राम ने अपने गुरु से दीक्षा, ग्रहण के समय ही प्राप्त की थी, इसी प्रकार भगवान कृष्ण ने भी सान्दीपन ऋषि से दीक्षा प्राप्त की थी, तब भी ग्रहण काल ही था।
ग्रहण (GRAHAN) पर किये जाने वाले मंत्र प्रयोग
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GRAHAN |
- सभी कार्यों की सिद्धि एवं वशीकरण में सफलता के लिए नीचे दिये मंत्र का जप, ग्रहण काल से आरम्भ कर 06 माह तक रोज एक हजार बार करने से मंत्र सिद्ध हो जाता है।
मंत्र- ऊँ आँ हाँ क्ष्वीं ऊँ ह्रीं
- “ऊँ नमो भगवते चंद्रप्रभ जितेन्द्राय चंद्र महिताय चन्द्र कीर्ति मुख रंजिनी स्वाहा।” इस मंत्र को ग्रहण के दिन रात्रि में जपने से श्रेष्ठ विद्या की प्राप्ति होती है।
- व्यापार में यदि वृद्धि नहीं हो रही हो, काम धन्धा मंदा पड़ गया हो या तांत्रिक प्रभाव के कारण व्यापार को बांध दिया गया हो तो ग्रहण काल के समय गल्ले में या तिजोरी में सिद्ध तांत्रिक वस्तुएं सियार सिंगी, हत्था जोड़ी एवं बिल्ली की नाल को स्थापित कर दें।
- यदि संभव हो तो व्यापार वृद्धि के लिए श्रेष्ठ दक्षिणावर्त शंख एवं दक्षिणमुखी गजानंद भी स्थापित कर दें। व्यापार बाधा पूर्णतः दूर हो जायेगी। ग्रहण (GRAHAN)
ग्रहण (GRAHAN) काल में रोग मुक्ति के लिए क्या करें?
ग्रहण (GRAHAN) काल में रोग मुक्ति के लिए निम्न उपाय अपनाएं, लाभ अवश्यक होगा।
- रोग निवारण के लिए ग्रहण काल में महामृत्युंजय यंत्र के समक्ष अधिक से अधिक महामृत्युंजय मंत्र का जप करें एवं महामृत्युंजय यंत्र के ऊपर ग्रहण काल के पूरे समय पंचामृत से निरन्तर अभिषेक करते रहें, मंत्र जाप निरन्तर चालू रहना चाहिए।
- ग्रहण (GRAHAN) समाप्ति के पश्चात यंत्र पर चढ़ा हुआ पंचामृत रोगी को चम्मच भर पिला दें। रोग निवरण के लिए यह श्रेष्ठ उपाय है।
- कांसे की कटोरी में घी भरकर उसमें सोने का टुकड़ा डालें। रोगी इस पात्र में अपनी पूरी छाया (पैर से मुह तक) देखे या सिर्फ अपना मुंह देखे। ग्रहण (GRAHAN) काल की समाप्ति के पश्चात पात्र को किसी ब्राह्मण को दान कर दें।
- शरीर में किसी असाध्य रोग ने घर कर लिया हो तो रोगी के वजन के बराबर किसी एक ही वस्तु या अनेक मिली जुली वस्तु का संकल्प लेकर दान करें।
ग्रहण (GRAHAN) काल में धन से सम्बन्धित समस्या का निदान
- धन प्राप्ति हेतु श्रीयंत्र के सम्मुख श्रीसुक्त अथवा श्रीयंत्र के बीज मंत्र का अथवा कुबेर मंत्र का जाप करे।
- बेरोजगार व्यक्तिओं को कुश के आसन पर गायत्री मंत्र का 11000 जप करने से सफलता मिलती है।
- जो व्यक्ति कालसर्प योग से ग्रसित है, अर्थात जिनकी कुण्डली में कालसर्प योग है, उन्हें ग्रहण (GRAHAN) काल में कालसर्प शांति करवानी चाहिए। इस ग्रहण काल में करवायी गयी कालसर्प योग विशेष फलदायी रहती है।
- ग्रहण (GRAHAN) के समय जन मानस को ऊँ का मन ही मन जाप करते रहना चाहिए। इससे ग्रहण का दोष उन पर नहीं हो पाएगा और वे शुभ फल प्राप्ति के भागी होंगे।
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