
महाभारत का युद्ध केवल एक लड़ाई नहीं था, बल्कि धर्म और अधर्म के बीच एक महान संघर्ष था। इस युद्ध से ठीक पहले, जब अर्जुन ने अपने ही परिवार और गुरुओं को विपक्ष में देखा, तो उसका मनोबल टूट गया। उसने युद्ध करने से इनकार कर दिया। तब भगवान कृष्ण ने उन्हें श्रीमद्भगवद्गीता का उपदेश दिया और युद्ध के लिए प्रेरित किया।
लेकिन सवाल यह है कि कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए क्यों उकसाया? क्या यह हिंसा को बढ़ावा देना था, या इसके पीछे कोई गहरा आध्यात्मिक और नैतिक संदेश छिपा था? आइए, इस प्रश्न का विस्तार से उत्तर जानते हैं।
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1. अर्जुन का मोह और भ्रम
युद्ध के मैदान में खड़े होकर अर्जुन ने अपने चचेरे भाइयों, गुरु द्रोणाचार्य और पितामह भीष्म को देखा। उसका मन दुविधा में पड़ गया। उसने सोचा:
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“क्या मैं अपने ही लोगों के खून से अपने हाथ रंगूंगा?”
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“इस युद्ध से प्राप्त राज्य का सुख क्या वास्तव में सार्थक है?”
अर्जुन का यह विचलन मोह और अज्ञानता का प्रतीक था। वह कर्म के सिद्धांत को भूल चुका था।
2. कृष्ण का उपदेश: कर्मयोग की शिक्षा
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि मोह त्यागकर धर्म के लिए लड़ना ही उसका कर्तव्य है। गीता में कई प्रमुख बिंदु बताए गए:
🔹 स्वधर्म का पालन करो
कृष्ण ने कहा –
“स्वधर्मे निधनं श्रेयः परधर्मो भयावहः।”
(अपने धर्म का पालन करते हुए मर जाना भी कल्याणकारी है, पराया धर्म भयावह होता है।)
अर्जुन क्षत्रिय था, और युद्ध लड़ना उसका धर्म था। धर्म की रक्षा के लिए युद्ध करना ही उचित था।
🔹 आत्मा अमर है, शरीर नश्वर
कृष्ण ने अर्जुन को समझाया कि आत्मा न तो मरती है और न ही मारी जा सकती है। शरीर का नाश निश्चित है, इसलिए मोह त्यागकर कर्तव्य पालन करो।
🔹 निष्काम कर्म का सिद्धांत
कृष्ण ने कर्म करो, फल की इच्छा मत करो का संदेश दिया। अर्जुन का कर्तव्य था कि वह न्याय के लिए लड़े, चाहे परिणाम कुछ भी हो।
🔹 अधर्म के सामने समर्पण नहीं
कौरवों ने अधर्म, छल और अन्याय का मार्ग अपनाया था। कृष्ण चाहते थे कि अर्जुन अन्याय के सामने झुके नहीं, बल्कि उसका डटकर मुकाबला करे।
3. कृष्ण ने युद्ध के लिए क्यों प्रेरित किया?
कृष्ण का उद्देश्य केवल अर्जुन को युद्ध के लिए तैयार करना नहीं था, बल्कि उसे जीवन के गहन सत्य से परिचित कराना था। वे चाहते थे कि अर्जुन:
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अपने कर्तव्य को समझे।
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मोह और भय को त्यागे।
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धर्म की स्थापना में योगदान दे।
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आत्मज्ञान प्राप्त करे।
अगर अर्जुन युद्ध नहीं करता, तो अधर्म की जीत होती। कृष्ण ने उसे न्याय के पक्ष में खड़ा होने के लिए प्रेरित किया।
4. आज के जीवन में गीता का संदेश
गीता का उपदेश केवल युद्ध तक सीमित नहीं है। यह हमारे दैनिक जीवन में भी लागू होता है:
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कर्तव्यपालन सबसे बड़ा धर्म है।
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डर और मोह से ऊपर उठकर निर्णय लेना चाहिए।
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अन्याय के सामने चुप नहीं रहना चाहिए।
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कर्म करो, परिणाम की चिंता मत करो।
निष्कर्ष: कृष्ण का उद्देश्य था धर्म की स्थापना
कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए इसलिए प्रेरित किया क्योंकि वे जानते थे कि सच्चा युद्ध बाहर नहीं, मन के भीतर होता है। अर्जुन के संदेह और भ्रम को दूर करके कृष्ण ने उसे आत्मबल प्रदान किया।
गीता का संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक है। यह हमें सिखाती है कि धर्म के मार्ग पर चलते हुए, निडर होकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहिए।
“यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत।
अभ्युत्थानमधर्मस्य तदात्मानं सृजाम्यहम्।।”
(जब-जब धर्म का नाश होता है और अधर्म बढ़ता है, तब-तब मैं स्वयं की रचना करता हूँ।)
इसलिए, कृष्ण ने अर्जुन को युद्ध के लिए न्याय और धर्म की रक्षा हेतु प्रेरित किया, न कि केवल हिंसा के लिए।
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