हमेशा जवान बने रहने का नुस्खा : धनवन्तरी द्वारा प्रतिपादित एक गुप्त प्रयोग

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धनवन्तरी अपने आप में एक अद्वितीय विद्वान थे और जब उन्हें वृद्धावस्था से पुनः यौवन अवस्था प्राप्त करने का विचार आया तो उन्होंने सम्पूर्ण शरीर को नये ढंग से देखने का प्रयत्न किया। उन्होंने बहुत प्रयोग किया और यह ज्ञात करने का प्रयत्न किया कि क्या किसी तरह वृद्धावस्था को रोका जा सकता है?

और यदि वृद्धावस्था आ ही गई हो तो क्या पुनः यौवन प्राप्त किया जा सकता है? इन तथ्यों पर उन्होंने प्रयोग किया, तप किया और ज्ञान प्राप्त किया। शरीर का कायाकल्प कर पुनः तेज, ओज, चेहरे पर लावण्य एवं यौवन प्राप्ति के लिए आज यहां धनवन्तरी का एक आयुर्वेदिक प्रयोग दिया जा रहा है।

हमेशा जवान बने रहने का नुस्खा : धनवन्तरी द्वारा प्रतिपादित एक गुप्त प्रयोग

शरीर का कायाकल्प करके पुनः यौवनावस्था प्राप्त करने हेतु जो आयुर्वेदिक प्रयोग धनवन्तरी द्वारा बताया गया, वह आज के युग में करना बड़ा जटिल है। इस लिए विधि विधान को विस्तृत न करके प्रयोग को बहुत ही सरलतम रूप में बताने का प्रयास कर रहा हूं।

यौवनावस्था प्राप्ति हेतु आयुर्वेदिक प्रयोग

एक किलो कच्चे आंवलें लें और उसे किसी तांबे के पात्र में 72 दिनों तक अर्थात् तीन दिनों तक पानी में भिगो कर रखें एवं प्रत्येक 12 घंटे बाद पानी को बदलते रहें।

अर्थात, तीन दिनां के अंदर जब आंवलों को पानी में भिगोये हुए 12 घंटे हो जाए तो आंवलों में से उस पानी को निकाल कर दूसरा पानी डालकर आंवलों को पानी में डुबा दें। इस प्रकार 6 बार पानी बदलें और तीन दिन तक आंवलों को पानी में रखें।

यहां, तांबे के पात्र में ही आंवलों को भिगोने का कारण यह है कि तांबा को चेतना युक्त माना गया है। तांबा किटाणु रोधी है। उसमें किटाणुओं का प्रवेश नहीं हो सकता। यही कारण है कि पुराने जमाने में हमारे पूर्वज तांबे के बर्तन प्रयोग में लाते थे। यह भी पढ़ें- चमत्कारी ताबीज 

तीन दिन बाद आंवलों को पानी में से निकाल लें एवं समान मात्रा में शहद लेकर अर्थात एक किलो आंवले के लिए एक किलो शहद लेकर दोनों को मिलाकर आपस में मर्दन करें। इतना मर्दन करें कि शहद एवं आंवला मिलकर अवलेह बन जाए। अवलेह बनाते समय आंवलों की गुठलियां निकल जाएंगी, उन्हें अवलेह से अलग कर दें।

शहद के साथ आंवले का इतना मर्दन करें कि शहद और आंवला एक चित्त हो जाए। एक बार में आंवला और शहद को आठ घंटे तक मर्दन करें। पुनः एक घंटे का विराम देकर आठ घंटे तक मर्दन करें। अंत में फिर एक घंटे का विराम देकर आठ घंटे तक मर्दन करें। इस प्रकार 24 घंटे तक आंवला एवं शहद का तांबे के बर्तन में आपस में मर्दन करें। इसे घोटना भी कहते हैं।

इस क्रिया के द्वारा शहद और आंवला मिलकर एक प्राण, एक चित्त हो जाएंगे। उसके बाद पूरे अवलेह का 16वां भाग कायफल लें। एक किलो शहद और एक किलो आंवला मिलाकर दो किलो अवलेह हुआ तो इसका 16वां भाग अर्थात 125 ग्राम कायफल लें।

कायफल लकड़ी के छिलके जैसा होता है, खेजड़ी के टुकड़ों के जैसा। ध्यान रहे कि कायफल असली हो। आजकल बाजार में नकली सामानों की भरमार है। पुराना कायफल न लें। नया लें, ताकी उसका पूर्ण लाभ प्राप्त किया जा सके। अतः इस प्रयोग के लिए अच्छी तरह परीक्षण करके ही कायफल लें।

अब कायफल को पीस कर चूर्ण बना लें। और उस चूर्ण को आंवले एवं शहद के अवलेह में एक-एक चुटकी डालते हुए पुनः मर्दन करे। जब ऐसा करते-करते अवलेह के ऊपर एक स्वर्णिम परत सी छा जाए, तब समझे कि कायफल अवलेह के साथ पूर्ण रूप से मिल गया है, एक चित्त हो चुका है।

जब ऐसा अवलेह तैयार हो जाए तो एक तांबे के पात्र में रखकर इसे वायुरोधी बना लें। अर्थात पात्र का मुंह इस प्रकार बन्द करें कि उसमें वायु का प्रवेश न हो सके। ऐसा करने के लिए तांबे के पात्र के मुंह पर तांबे का ढक्कन लगा दें। यह भी पढ़ें- पारद : ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली धातु 

और उसके बाद उसके चारो ओर गेहूं के आंटे को पानी में मिलाकर लगा दें तो उसमें वायु का प्रवेश नहीं हो पाएगा। ऐसा करने के बाद उसे जमीन में गाड़ दें। 72 घंटे तक जमीन के अंदर उसे पकाना है।

जमीन के आंच से ही उस अवलेह को पकाना है। क्योंकि भूमि में धारण करने की क्षमता है, धरती कभी बूढ़ी नहीं हो सकती, तांबा कभी बूढ़ा नहीं होता है। शहद कभी बूढा नहीं होता है। जल बूढ़ा होता है, तभी तो कुछ दिनों के बाद उसमें सड़न पड़ जाती है, उसमें जिवाणुओं का प्रवेश हो जाता है।

तीन दिनों तक जमीन में भीतर गडे़ रहने के बाद, उसे बाहर निकाल कर शीशे के पात्र में भरकर रख दें। ऐसी जगह रखें, जहां उस पर सूर्य की रोशनी ना पड़े, वायु का प्रवेश नगण्य हो। अंधेरे में रख सकते हैं या फ्रिज में भी रख सकते हैं।

सेवन विधि

सुबह-शाम एक-एक तोला सेवन करें। इस प्रयोग से आप की वृद्धावस्था रुक सी जाएगी एवं यौवन की प्राप्ति होगी। इस प्रयोग के दौरान आपको नित्य प्राणायाम, ध्यान, व्यायाम करना है ताकी शरीर संतुलित रहे और प्रयोग का लाभ शरीर को मिल सके।

अनावश्यक खान-पान से बचें। चर्बी युक्त चीजों के सेवन से परहेज करें। इस प्रयोग से मनुष्य का कायाकल्प हो जाता है एवं शरीर से बुढापा दूर होकर यौवन की प्राप्ति होती है। यदि एक बार में सफलता ना मिले तो बार-बार इस प्रयोग को करें।

शनि की साढ़े साती 

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