महिला बवासीर : वर्तमान समय में बवासीर होना एक आम बात हो गयी है। बदलते खान-पान एवं अप्राकृतिक व्यवहारों से बवासीर पूरी दुनियां में लोगों को तेजी से हो रहा है।
बवासीर को अर्श रोग या अंग्रेजी में पाइल्स (Piles) के नाम से भी जाना जाता है। बवासीर या अर्श रोग, मलाशय अथवा गुदा का रोग है। इस रोग में गुदा के आस-पास मस्से जैसा गोल गांठ हो जाता है।
शौच के दौरान जब मल कड़ा और सूखा हुआ होता है तो इन गांठों में रगड़ के कारण बहुत दर्द का अनुभव होता है। साथ ही यदि ये गाठें पुरानी होती जाती हैं तो बाद में इन गांठों से रक्त भी आने लगता है।
बवासीर के बारे में कुछ महत्वपूर्ण बातों पर चर्चा करने से पहले ‘महिला बवासीर’ शब्द के बारे में कुछ बाते स्पष्ट कर लेते हैं। जिससे बहुत से लोगों के मन में पल रहे भ्रम को दूर किया जा सके।
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क्या महिला बवासीर पुरुषों को होने वाले बवासीर से अलग है?
इस लेख के मुख्य हेडिंग को पढ़कर यदि आपके मन में यह प्रश्न उठता है कि क्या महिला बवासीर पुरुषों को होने वाले बवासीर से अलग होता है? तो उत्तर होगा- नहीं।
बवासीर चाहे पुरुषों में हो या महिलाओं में उसकी प्रकृति, बचाव और उपचार में कोई भी अन्तर नहीं होता है। परन्तु फिर भी इस लेख में महिला बवासीर शब्द का प्रयोग सिर्फ इसलिए किया गया है कि क्योंकि यह प्रश्न अज्ञानतावश बार-बार पूछा जा रहा है।
इसलिए यह बात स्पष्ट हो जाना चाहिए कि बवासीर या अर्श रोग ऐसी बीमारी है जो महिला या पुरुष में समान रूप से होता है। इसके लक्षण, उपचार और महिला या पुरुष में होने की सम्भावना समान रूप से है।
महिला बवासीर क्या है? यह प्रश्न ही मुर्खतापूर्ण है। प्रश्न सिर्फ इतना होना चाहिए कि बवासीर क्या है? क्योंकि यह महिलाओं और पुरुषों में अलग-अलग नहीं होता है।
बवासीर क्या है?
मलाशय के निचले भाग और गुदा के चारो ओर की शिराओं में कुटिलता, कठिनता एवं खरता के साथ होने वाले विस्ताररूप विकार को बवासीर या अर्श रोग कहते हैं।
इस रोग में गुदा की चारो ओर की शिराओं में विकार के कारण घाव या मस्से या गांठें बन जाती हैं जो बहुत ही कष्टदायक होती हैं।
बवासीर के लक्षण
बवासीर के निम्नलिखित लक्षण हो सकते हैंः-
- बवासीर की शुरुवाती दौर में गुदा के निचले भाग में शौच के दौरान या बाद में जलन और खुजली की अनुभूति होना।
- गुदा द्वार पर गांठे बन जाना एवं शौच के दौरान इन गांठों में दर्द होना।
- मल के साथ रक्त का आना एवं असहनीय पीड़ा होना।
- गुदा द्वार के आस-पास जलनयुक्त खुजली के साथ-साथ सूजन एवं पीड़ा रहना।
- कुर्सी या कहीं भी बैठने पर गुदा में दर्द होना।
- जब बवासीर शुरुवाती दौर से अपने अगले उच्च स्तर पर पहुंच जाता है तो मल के साथ भयंकर रक्तस्राव होता है।
बवासीर होने के कारण
बवासीर होने का सबसे मुख्य कारण है, पेट में कब्ज का बनना। कब्ज होने से मल सूखकर कड़ा हो जाता है और शौच के दौरान जोर लगाने पर गुदा द्वारा छिल जाता है।
गुदा द्वार छिल जाने के कारण वहां घाव बन जाता है। बार-बार ऐसा होने से यही घाव आगे चलकर बवासीर का रूप ले लेता है।
विरोधी खाद्य पदार्थों का एक साथ सेवन करने से, खाये हुए भोजन के बिना पचे, पुनः दूसरा खाद्य पदार्थ का सेवन करने से, उकड़ू बैठने से, शरीर के अनैच्छिक वेगों को रोकने से वातादि दोष प्रकुपित हो जाता हैं और पाचन संस्थान का कार्यशक्ति कमजोर पड़ जाता है।
जब पाचन संस्थान का कार्य प्रभावित होता है तो अनेकों प्रकार के पेट के रोगों का जन्म होता है, जैसे कब्ज, गैस, संग्रहणी इत्यादि। और बाद में इन्हीं रोगों की अधिकता से बवासीर जैसा भयानक रोग हो जाता है।
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बवासीर के प्रकार
बवासीर दो प्रकार का होता है। वादी बवासीर और खूनी बवासीर। शुरुवात में वादी बवासीर ही होता है, परंतु उचित उपचार एवं रोग को अनदेखा करने से आगे चलकर यही खूनी बवासीर का रूप ले लेता है।
वादी बवासीर में शौच के दौरान मस्सों में दर्द, जलन एवं खुजली होती है। शौच के बाद भी गुदा द्वार पर मस्सों में जलन एवं दर्द हो सकता है।
खूनी बवासीर में मल त्याग के समय मस्सों से खून स्रावित होने लगता है और बहुत ही ज्यादा पीड़ा पहुंचाता है। मस्सों में बहुत ज्यादा विकार हो जाने पर बैठने-उठने पर भी दर्द एवं रक्त स्राव होने लगता है।
बवासीर के 05 बेहतरीन आयुर्वेदिक इलाज
- 250 ग्राम दूध को उबालकर उसमें 20 ग्राम एरण्ड का तेल मिला लें और रात को सोने से पहले पीकर सोयें। इससे कब्ज दूर होकर मल सरलता से निष्कासित हो जाता है और बवासीर रोग ठीक होने लगता है।
- रात को सोते समय 05 ग्राम त्रिफला का चूर्ण गरम जल से लेने से बवासीर या अर्श रोग में बहुत फायदा होता है।
- पके हुए केले को छिलकर दोनां तरफ से काटकर एक अंगुल लम्बा कर लें। फिर बीच केले के बीच में चीरा लगाकर पांच बूंद मदार का दूध डालें एवं उसे निगल लें। याद रहे केले को निगलना है, कूंच कर खाना नहीं है।यह बवासीर का बेहतरीन इलाज है। यह प्रयोग सुबह खाली पेट करें एवं इस प्रयोग को करने के बाद तीन घंटे तक कुछ भी ना खायें।
- एक गिलास में एक नींबू का रस निचोड़ लें। तत्पश्चात उसमें गाय का 250 ग्राम कच्चा दूध डालें और डालने के तुरंत बाद गटक कर पी जाएं। यह बवासीर का बहुत परीक्षित इलाज है।
- एक चम्मच इसबगोल को दूध के साथ उबालकर पीने सुबह शाम पीने से कब्ज का नाश होता है और बवासीर में बहुत राहत मिलता है।
बवासीर को जड़ से खत्म कैसे करें?
पथ्य-अपथ्य का पालन करते हुए उचित उपचार किया जाए तो बवासीर को जड़ से खत्म किया जा सकता है। बवासीर के इलाज के दौरान कब्ज बिलकुल भी ना होने दें और गरिष्ठ एवं देर से पचने वाले भोज्य पदार्थों का त्याग करें।
बवासीर के लिए सबसे अच्छी दवा कौन सी है?
बवासीर जब अपने सबसे खराब स्थिति में पहुंच जाता है तो शल्य चिकित्सा ही सबसे बेहतर उपाय है। आयुर्वेदिक जड़ी-बुटियों का प्रयोग करना ही बवासीर का सबसे अच्छी दवा है।
अपने खान-पान में सुधार करके उपरोक्त घरेलू उपायों को अपनाना ही बवासीर की सबसे अच्छी दवा है।
बवासीर में क्या ना खायें
बवासीर में तैलीय खाद्य पदार्थ एवं मिर्च-मसालों का त्याग करें। देर से पचने वाले भोज्य पदार्थ बिल्कुल भी ना खाएं। अपने भोजन में हरी सब्जियां, दलिया, फलों एवं कब्ज को दूर करने वाले अनाजों को सम्मिलित करें।
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क्या बवासीर में दूध पीना चाहिए
यह प्रश्न अक्सर रोगियों द्वारा पूछा जाता है कि क्या बवासीर मे दूध पीना चाहिए? तो इसका उत्तर है- हां। बवासीर में दूध पीना चाहिए।
रात को सोते समय दूध के साथ पांच-छः मुनक्के उबालकर, मुनक्के खाकर, उपर से दूध पीयें। कब्ज और बवासीर में फायदा होता है।
दोस्तों इस लेख में आपने बवासीर के बारे में जाना। महिला बवासीर कोई अलग बवासीर नहीं है। बवासीर का इलाज सम्भव है। रोगी को बस अपने खान पान में सुपाच्य और सरलता से पच जाने वाले भोज्य पदार्थों को चुनना है।
साथ ही अपने डाक्टर से सम्पर्क करके इसके प्रभावी इलाज को अपनाना चाहिए। विभिन्न आयुर्वेदिक इलाजों का प्रभाव अलग-अलग व्यक्तिओं पर अलग-अलग होता है। अतः जिस इलाज से लाभ हो उसे रोग के निदान तक करते रहना चाहिए।
महिला बवासीर पर यह लेख यदि आपको ज्ञानवर्द्धक लगा हो तो आप अपने दोस्तों के साथ इस पोस्ट को शेयर कर सकते हैं।
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