अर्ध-मत्स्येन्द्रासन करने की विधि और लाभ : Ardha-Matsyendrasana

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Ardha-Matsyendrasana | अर्धमत्स्येन्द्रासन

अर्धमत्स्येन्द्रासन  (Ardha-Matsyendrasana) करने की विधि : यह आसन नाथपंथी योगी के नाम पर रखे गये नाम मत्स्येन्द्रासन के ही अंशतः समान होता है।

वास्तव में अर्धमत्स्येन्द्रासन, मत्स्येन्द्रासन का ही एक सरल रूप है। गोररखनाथ के गुरु मत्स्येन्द्रासन, जिसे लोग मछेन्द्रनाथ भी कहते हैं, जिस आसन में समाधि लगाते थे, उसे मत्स्येन्द्रासन कहते हैं।

मत्स्येन्द्रासन एक दुष्कर आसन है। इसलिए इसे सरल करके अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) रूप में परिवर्तित किया गया है। वास्तव में अर्धमत्स्येन्द्रासन भी उतना सरल नहीं है, परन्तु कठिन अभ्यास के उपरांत यह आसन सध जाता है।

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अर्धमत्स्येन्द्रासन करने की विधि (How to do Ardha-Matsyendrasana)

अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) करने के लिए भूमि पर दरी या कम्बल को तीन-चार परतों में मोड़कर बिछा लें। इसके पश्चात अपनी दोनों टांगों को सामने की ओर फैलाकर बैठ जायें। दायीं टांग को घुटनों से मोड़कर एड़ी और तलवों के सहारे बैठें।

तत्पश्चात बायां पैर, दाहिने पैर के घुटने साथ खड़ा करें तथा दाएं हाथ से उसके पंजे को पकड़ें। अन्त में बाएं हाथ को पीठ पर रखते हुए अपनी दृष्टि की भी बायीं ओर ले जाएं।

पुनः बायें पैर की एड़ी के साथ बैठते हुए इसके पूर्व की तरह ही सारी क्रिया सम्पन्न करके आसन को पूर्ण करें। (उपरोक्त चित्र का अवलोकन करें)

अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) का वांछित लाभ प्राप्त करने हेतु प्रतिदिन कम से कम 5 मिनट तक अभ्यास अवश्यक करना चाहिए। अभ्यास में नियमितता आवश्यक है। अतः बिना गैप के यह आसन नियमित करना चाहिए।

अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) करने के लाभ

  • यह आसन मेरुदण्ड को लचीला और मजबूत बनाता है तथा कमर, कंधों, बाजुओं, जांघों, पीठ आदि की पेशियों को मजबूत बनाकर उसकी चर्बी दूर करता है और इन्हें सुडौल बनाता है।
  • अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) करने से जठराग्नि प्रदीप्त होती है। रक्त संचार स्वस्थ गति से होता है। पेट एवं आंतों के रोग समाप्त होते हैं। शरीर की हड्डियां मजबूत होती हैं।
  • पेशियों एवं नसों को बल मिलता है तथा इस आसन से मधुमेह एवं कमर का दर्द दूर होता है।
  • अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) करने से सूर्य ग्रंथी की क्रियाशीलता बढ़ जाती है जिससे आवश्यकतानुसार इन्सुलिन का निर्माण होता है एवं खतरनाक रोग मधुमेह से बचाव होता है।
  • इस आसन से कुंडलिनी के मूलाधार चक्र की साधना का आधार मिलता है। वीर्य तथा प्राणों का संरक्षण होता है एवं चेतना का उर्ध्वमुखी विकास होता है।

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अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) करते समय सावधानियां

  • दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके इस आसन को नहीं करना चाहिए।
  • यह एक कठिन आसन है। अतः शरीर के अंगों को कई रूपों में मोड़ना पड़ता है। अंगों को मोड़ने का अभ्यास धीर-धीरे करना चाहिए।
  • अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) के अभ्यास के दौरान सम्पर्ण शरीर पर रात में प्रत्येक दिन सरसों के तेल से मालिश अवश्य करें।
अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) में ध्यान

अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) एक योग सिद्ध आसन है। इस आसन में सभी प्रकार का ध्यान लगाया जा सकता है। इस आसन को एकाग्रचित्त होकर करने से मूलाधार शक्ति को जगाने में मदद मिलती है, तथा शरीर पूर्णतः निरोग होने लगता है।

अतः उम्मीद है की इस लेख को पढने के बाद आप अर्धमत्स्येन्द्रासन (Ardha-Matsyendrasana) को करने में पूर्णतः सक्षम हो जायेंगे। किसी भी प्रकार के प्रश्न या शंका समाधान के लिए आप हमें कमेंट में जरुर पूछें। योग शास्त्र में कुछ आसन बहुत ही जटिल होते हैं। इसलिए कोई भी आसन करने के पहले अपने मन को संतुलित रखें।

आसनों को धीरे-धीरे प्रतिदिन के अभ्यास के सहारे सिद्ध करने की कोशिश करें। यदि आप आसनों को करने में जबरजस्ती या उतावलापन दिखायेंगे तो यह आपके लिए घातक सिद्ध हो सकता है और ऐसा भी हो सकता है की आपके शरीर में किसी प्रकार का मोच आ जाये और आपको भारी नुकसान का सामना करना पड़ जाये।

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2 thoughts on “अर्ध-मत्स्येन्द्रासन करने की विधि और लाभ : Ardha-Matsyendrasana”

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