गोरखासन या गोरक्षासन योग की दृष्टिकोण से बहुत ही महत्वपूर्ण आसन है। गुरु गोरखनाथ इसी आसन में साधना किया करते थे, इसिलिए इसका नाम गोरखासन या गोरक्षासन पड़ गया।
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गोरखासन या गोरक्षासन करने की विधि
गोरखासन करने के लिए सर्वप्रथम दरी या कम्बल का आसन बिछाकर उस पर पालथी मारकर इस प्रकार बैठें कि दोनों पैरों के तलवे मिले हों तथा एड़ियां गुदा से मिली हुई हो।
दोनों हाथों से दोनों घुटनों पर दबाव डालते हुए उन्हें भूमि से स्पर्श करना चाहिए। इसका कुछ समय अभ्यास करने से वांछित लाभ प्राप्त होता है।
गोरक्षासन करते समय तेजी न दिखाएं। धीरे-धीरे आसन को साधने की कोशिश करनी चाहिए। इस आसन को करने के लिए ऊपर दिये गये चित्र का अनुसरण करें।
गोरखासन या गोरक्षासन करने के लाभ
गोरक्षासन योगियों का आसन है। यह आसन योग की दृष्टि से इतना महत्वपूर्ण है कि इससे शारीरिक लाभ के साथ-साथ आध्यात्मिक लाभ भी प्राप्त होते हैं।
गोरखासन करने से कुल्हों में लचीलापन आता है। गुप्तांग में पुष्टता आती है तथा वीर्य संरक्षण होता है। स्तंभन शक्ति में वृद्धि होती है। मूलाधार को बल मिलता है जो कुंडली सिद्धि में सहायक होता है।
गोरक्षासन करते समय सावधानियां
- गोरक्षासन करते समय अपना मुंह उत्तर या पूर्व दिशा की ओर रखें।
- गोरखासन का अभ्यास धीरे-धीरे करें। जल्दबाजी या अनुशासनहीनता से इस आसन को करने से घुटनों में दर्द की शिकायत हो सकती है।
गोरखासन में ध्यान
गोरखासन ध्यान की दृष्टि से एक चमत्कारिक आसन है। इस आसन में ध्यान लगाने से बहुत ही अच्छा लाभ मिलता है। गोरक्षासन करते समय मूलाधार पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
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