पारद (PARAD) : ब्रह्माण्ड का सबसे शक्तिशाली तांत्रिक धातु

पारद (PARAD) : रसराज रससिद्ध पारद सभी धातुओं में सर्वश्रेष्ठ माना गया है। भगवान शंकर के शक्ति रूप होने के कारण सभी देवी-देवताओं के द्वारा वंदनीय एवं स्पृहनीय है।

यह अनेक चैतन्य मंत्रात्मक क्रियाओं से संस्कारित होकर जिस किसी भी घर में भगवान शिव का प्रतीक शिवलिंग, लक्ष्मी प्रतिमा, गणेश प्रतिमा तथा दुर्गा प्रतिमा के रूप में स्थापित होता है, वह घर, वह परिवार, सर्वत्र मंगलमय सुखद एवं शांति का अनुभव करता है।
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सत्य तो यह है कि पारद (PARAD) पूर्ण संसार का एक आधारभूत तत्व है, इसिलिए धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्राप्ति का मूलभूत साधन भी है।

जिस घर में पारद से निर्मित प्रतिमा स्थापित करके, उसका पूजन एवं साधना की जाती है, उस घर में कभी भी धन-धान्य की कमी नहीं होता एवं सारा वातावरण आध्यात्ममय बन जाता है।

पारद धातु अपने आप में पूर्णता का प्रतीक है। सदियों से पारद (PARAD) पर शोध होते आए हैं। जहाँ यह भौतिक समृद्धि का परिचायक है, वहीं यह आयुर्वेद की पूर्णता भी है।

पारद ही एक ऐसी धातु है जिसमें अनेकों आयुर्वेदिक गुण समाए हुए है। पारद अनेक रूपों में उपयोगी है, आयुर्वेद के अलावा तंत्र जगत में भी इसका बहुत योगदान है।

पारद संस्कार : PARAD SANSKAR

आयुर्वेदिक रस-शास्त्र के अनुसार अठारह प्रकार के विशेष संस्कार करने के उपरान्त पारे के सभी दोष दूर हो जाते हैं, किन्तु इसके लिए सद्गुरु की कृपा एवं देख-रेख में ही रसायन सिद्धि प्राप्त हो सकती है, मात्र किताबी ज्ञान से कुछ नहीं मिलने वाला।

धरणीधर संहिता के अनुसार इन सभी संस्कारों जैसे- स्वेदन संस्कार, मर्दन संस्कार, मुर्च्छन संस्कार, उत्थापन संस्कार, रोधन संस्कार, पात्तन संस्कार, बोधन संस्कार, गगन ग्रास संस्कार (अभ्रक अथवा स्वर्ण भक्षण), चारण संस्कार, गर्भदुति संस्कार, ब्राह्यदुति संस्कार, जारण संस्कार, रंजन संस्कार, सारण संस्कार, क्रमण संस्कार, वैघ संस्कार के पूर्ण होने पर ही प्राकृतिक द्रव्य पारद (PARAD) किसी भी आकृति में परिवर्तित हो जाता है।

ठोस रूप कथित पारद (PARAD) से जो सामग्री बनती है, वह अमूल्य एवं चमत्कारिक होती है। मनुष्य को ऋद्धि-सिद्धि की प्राप्ति कराती है। शारीरिक एवं मानसिक शक्ति, आध्यात्मिक शक्ति का विकास करने में पूर्णतया सक्षम है, तथा आर्थिक व्यवधान को दूर कर कारोबार में वृद्धि करती है।

किसी भी तांत्रिक क्रिया में कवच की भांति मनुष्य की रक्षा करती है एवं तांत्रिक क्रियाओं को प्रभावहीन कर देती है।

मंत्रों से आबद्ध स्वर्णग्रास युक्त पारद (PARAD) से निर्मित प्रतिमा तो अपने आप में चैतन्य होती ही है, इसकी उपस्थिति भी अपने आप में पूर्णता का द्योतक माना गया है। इसलिए यह प्रयास करना चाहिए कि मंत्रों से आबद्ध पारद मूर्ति ही अपने घर में स्थापित हो।

बिना मंत्र पूरित एवं बिना शोधित पारद प्रतिमा से कोई विशेष लाभ नहीं मिलता है।

आजकल पारद से बने शिवलिंग एवं मूर्ति आपको बाजार में आसानी से मिल जाते हैं, परन्तु वे सभी बिना शोधन संस्कार किये एवं अपवित्रता के साथ दूषित तरीके से निर्मित होते है। इसलिए पारद से निर्मित कोई भी वस्तु खरीदने से पहले उसकी उत्कृष्टता की परख अवश्य कर लें।

पारद (PARAD) से निर्मित देव प्रतिमा शोधित एवं प्राण-प्रतिष्ठा युक्त होना चाहिए और यह काम कोई सक्षम एवं दिव्य आत्मा साधक ही कर सकता है जो कि आज के युग में बड़ा दुर्लभ है।

पारद (PARAD) की महिमा

पारद (PARAD) शब्द में ”प” – विष्णु, ”अ” (अकार) – कालिका, ”र” – शिव और ”द” – ब्रह्मा के प्रतीक हैं। जो पारद लिंग का पूजन करता है उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है।

इसके दर्शन से 100 अश्वमेघ यज्ञ करने, करोड़ों गौ दान करने एवं सहस्त्रों मन स्वर्ण दान करने का फल मिलता है। पारद (PARAD) से अधिक गुण वाला पदार्थ न हुआ है, न होगा।

पारद (PARAD) से पायें सुख समृद्धि

सुख-संपत्ति, श्री संपदा तथा वैभव प्राप्ति के लिए माँ लक्ष्मी की कृपा परम आवश्यक है। उनकी कृपा के बिना धन-संपत्ति, श्री समृद्धि की प्राप्ति संभव नहीं है।

आज के युग में धन और सम्पत्ति के अभाव में लोगों की क्या दशा-दुर्गति होती है, इसके हजारों उदाहरण देखने को मिलते हैं। तंत्र शास्त्र में भी सरल विधान को व्यक्त करते हुए स्पष्ट रूप से कहा गया है कि-

धन शिवेन बिना देवी न देव्या च बिना शिवः।
नानयोरन्तर किम् चिन्चंद्र चंद्रिका योरिव।।

अर्थात शिव के बिना देवी (अन्नपूर्णा लक्ष्मी) नहीं और देवी (शक्ति) के बिना शिव नहीं। इन दोनों में अंतर नहीं है, जिस प्रकार चंद्र और चन्द्रिका में कोई अंतर नहीं होता।

इसलिए तंत्र शास्त्र के देवता भगवान शिव को आधार मानकर श्री विद्या तथा श्री यंत्र की उपासना धन-धान्य एवं समृद्धि प्राप्ति के लिए की जाती है।

जहां शिव हैं, वहीं श्री सम्पन्नता है। माँ पार्वती शक्ति स्वरुपा जगदम्बा हैं जो शिव के ही स्वरुप हैं। माता गौरी स्वयं अन्नपूर्णा हैं, लक्ष्मी स्वरूपा हैं।

भगवान भोलेनाथ की पूजा साधना करने पर लक्ष्मी साधना का ही फल प्राप्त होता है और सभी देवताओं में अग्रपूज्य भगवान गणपति तो साक्षात ऋद्धि-सिद्धि के स्वामी शिवपुत्र हैं, जो सभी प्रकार के विघ्न बाधाओं को समाप्त करने वाले देव हैं।

शिव साधना करने से गणपति साधना का भी साक्षात फल प्राप्त होता है। इसलिए कहा गया है कि जहां शिव है, वहां सब कुछ है और जिसने शिवत्व प्राप्त कर लिया, उसने अपने जीवन में पूर्णता प्राप्त कर लिया। उसके लिए कठिन से कठिन कार्य भी सरल बन जाता है।

शिव साधना-उपासना करने के बाद फिर साधक को किसी वस्तु की न्युनता नहीं हो सकती। भगवान शिव कुबेराधिपति हैं, उनका यह स्वरूप साधक को अतुलनीय धन-धान्य प्रदान कर देता है।

शिव भक्त रावण को शिव कृपा से ही सोने की लंका प्राप्त हुआ था। भगवान शंकर तंत्र के स्वामी हैं, तंत्र के जन्मदाता हैं और पारद (PARAD) शिव का प्रिय धातु है। इसलिए पारदेश्वर शिवलिंग को तंत्र सामग्री में गिना जाता है और इसी की पूजा श्रेष्ठ मानी गयी है।

इस प्रकार देखा जाये तो पारद (PARAD) आध्यात्मिक क्षेत्र में अति महत्वपूर्ण धातु है। सभी तरह की पूजा-अर्चना में इसको अग्रणी माना गया है।

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