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काली माता | KALI MATA
काली माता | KALI MATA : यह देवी नित्य हैं और अजन्मा हैं तथापि देवकार्य सम्पन्न करने के निमित्त जब यह अभिन्न रूप से अवतरित होती हैं तब उसी रूप से जानी जाती हैं।
कल्प के अन्त में जब समस्त सृष्टि एकार्णव में निमग्न हो रही थी तब भगवान विष्णु क्षीरसागर में, शेषनाग की शय्या पर योगनिद्रा का आश्रय लेकर निद्रामग्न हो गये थे। ऐसे समय पर उनके कानों की मैल से दो भयानक असुर उत्पन्न हुये, जो कि मधु तथा कैटभ के नाम से विख्यात हुए।
यह दोनों ही ब्रह्मा को खाने के लिये अग्रसर हुये। भगवान की नाभि कमल पर स्थित ब्रह्मा यह दृश्य देखकर विचलित हो उठे। उन्होंने भगवान को अत्यधिक पुकारा, परन्तु वह सोये रहे। तब उन्हांने आद्यभवानी की स्तुति की जिसके फलस्वरूप भगवान के नेत्र, मुख, नासिका, बाहु, हृदय तथा वक्षस्थल से निकलकर काली जी उनके समक्ष खड़ी हो गयीं।
काली माता (KALI MATA) की कहानी
काली माता (KALI MATA) ध्यान मंत्र
कण्ठ में मुण्डमाला है, काले मेघ के समान श्यामवर्ण हैं, दिगम्बरी हैं । कण्ठ में स्थित मुण्डमाला से टपकते हुए रुधिर से लिप्त शरीर वाली हैं। घोर दंष्ट्रा हैं, करालवदना हैं और उन्नत पीनस्तन वाली हैं।
[…] काली माता –भक्त की रक्षा करने वाली […]