माँ तारा (MAA TARA)- जब काली ने नीला रूप ग्रहण किया तो वह तारा कहलाईं। यह देवी तारक हैं अर्थात् मोक्ष देती हैं। अतः इन्हें तारा कहते हैं। उपासना करने पर यह देवी वाक्य सिद्धि प्रदान करती है, अतः इन्हें नील सरस्वती भी कहते हैं ।
यह भी मान्यता है कि हयग्रीव का वध करने के लिये देवी ने नीला विग्रह ग्रहण किया था। यह शीघ्र प्रभावी हैं अतः इन्हें उग्रा भी कहते हैं । उग्र होने के कारण इन्हें उग्रतारा भी कहा जाता है।
भयानक से भयानक संकटादि में भी अपने साधक को माँ तारा (MAA TARA) सुरक्षित रखती है अतः इन्हें उग्रतारिणी भी कहते हैं। कालिका को भी उग्रतारा कहा जाता है। इनका उग्रचण्डा तथा उग्रतारा स्वरूप देवी का ही स्वरूप है।
तारा रूपी द्वितीय महाविद्या अपने साधकों पर अत्यधिक शीघ्रता से प्रसन्न होकर एक ही रात्रि में दर्शन भी दिया करती हैं। इनका भव्य श्रीविग्रह भारत में जालन्धर-पीठ के कांगड़ा नामक स्थान पर ’वज्रेश्वरी देवी’ के नाम से शोभायमान है।
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MAA-TARA |
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माँ तारा (MAA TARA) मंत्र
तारा ध्यान् | TARA DHYAN
प्रत्यालीढपदां घोरां मुण्डमालाविभूषिताम्।
खर्व्वां लम्बोदरीं भीमां व्याघ्रचर्म्मावृत्तां कटौ।।
नवयौवनसम्पन्नां पंचमुद्राविभूषिताम्।
चतुर्भुजां लोलजिह्वां महाभीमां वरप्रदाम्।।
खंगकर्तृसमायुक्तसव्येतरभुजद्वयाम्।
कपोलोत्पलसंयुक्तसव्यपाणियुगान्विताम्।।
पिंगग्रैकजटां ध्यायेन्मौलावक्षोभ्यभूषिताम्।
बालार्कमण्डलाकारलोचत्रय भूषिताम्।।
विश्वव्यापकतोयान्तः श्वेतपद्मोपरिं स्थिताम्।।
यह जलती हुई चिता में स्थित हैं, घोर दंष्ट्रा हैं, कराला हैं, स्वीय आवेश सी हास्यमुखी हैं। यह सब अलंकारों से अलंकृत हैं एवं यह विश्व व्यापिनी जल के भीतर श्वेत पद्म पर स्थित हैं।
[…] को प्राप्त हो जाता है। (धूमावती | DHUMAVATI) तारा त्रिपुर भैरवी Previous Post Next […]