Tantra | तंत्र क्या है ? प्राचीन तंत्र विद्या के 10 गोपनीय रहस्यमयी बातें

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तंत्र-Tantra

Tantra | तंत्र क्या है ?यह एक महाविज्ञान है। अनन्त जन्मों से एक खोज चलती आ रही है, अपने आपको पहचानने की। क्योंकि स्वयं को जानकर ही उस मूल स्रोत तक पहुंचा जा सकता है, उस स्रोत को ज्ञात किया जा सकता है, जहां से जीवन का अवतरण होता है।

जीवन को जानकर ही जीवन से सम्बन्धित उन मूल समस्याओं के कारणों को जाना जा सकता है जो हमें पीड़ा देते हैं, जीवन के पग-पग पर कष्ट पहुंचाते रहते हैं।

समय-असमय प्रकट होकर ये समस्याएं नाना प्रकार के दुख-दर्द देती रहती हैं। जीवन के सत्य को जानकर ही उस शाश्वत एवं दिव्य आनन्द को प्राप्त किया जा सकता है, जिसकी दिव्य अनुभूतियां कभी समाप्त नहीं होती हैं।

तंत्र इन समस्याओं के समाधान का एक त्वरित साधन है। Tantra ही वह अंतिम मार्ग है जिसके द्वारा हम इस संसार में अनेकानेक भोगों को भोगते हुए अंत में मोक्ष की प्राप्ति भी कर सकते हैं। आईये विस्तार से जानते हैं की तंत्र क्या है ?

वस्तुतः Tantra | तंत्र क्या है?

तंत्र क्या है ? यह प्रश्न हर जिज्ञासु व्यक्ति के मन में उठता है और वह व्यक्ति इस प्रश्न के उत्तर की आशा में अनेक ग्रंथों के पन्ने पलट डालता है, अनेक गुरुओं और बाबाओं की शरण लेता है। परन्तु बिना योग्य गुरु मिले, तंत्र क्या है ? प्रश्न का संतुष्टजनक उत्तर मिल पाना सम्भव नहीं है।

तंत्र स्वयं को जानने की प्रक्रिया है। जीवन के गूढ़रहस्यों, विश्व ब्रह्माण्ड एवं प्रकृति के अनसुलझे रहस्यों से पर्दा हटाता है तंत्र विज्ञान। इसी विज्ञान का सहारा लेकर प्राचीन काल से तांत्रिकों एवं मांत्रिकों द्वारा स्वयं एवं ईश्वर के दिव्य शक्तिओं की खोज की जाती रही है।

मंत्र, योग, ध्यान आदि के रूप में जितनी भी प्रक्रियाएं प्रचलित रही है, वह सब आत्मदर्शन के सिद्धान्त पर ही आधारित हैं।

Tantra की प्रक्रियाएं तो इन सबमें सबसे अद्भुत एवं प्रभावपूर्ण रही हैं क्योंकि यही एक मात्र ऐसा विज्ञान रहा है जिसकी पहुंच प्रकृति निर्मित पंच भौतिक शरीर से लेकर परमात्मा द्वारा प्रदत्त आत्मिक शरीर तक, एक समान रहती है।

यह आध्यात्मिक जगत का एक ऐसा विशिष्ट विज्ञान रहा है, जहां व्याख्या एवं विश्लेषण का ज्यादा महत्व नहीं रहा, वहां केवल प्रयोग करने एवं स्वयं Tantra साधना की अनुभूति से गुजरने पर जोर दिया गया है।

यही कारण रहा है कि तांत्रिक अपने शिष्यों को उपदेश अथवा प्रवचन देने पर ज्यादा ध्यान नहीं देते, बल्कि सीधे-सीधे प्रयोगों की शुरुवात करने और स्वयं उन दिव्य क्षमताओं को प्राप्त कर लेने को कहते हैं। यह भी पढें- तांत्रिक साधना के रहस्यमयी बातें 

Tantra | तंत्र का अर्थ

तंत्र का अर्थ बहुत विस्तृत है। तंत्र शब्द ‘तन्‘ और ‘त्र‘ इन दो धातुओं से मिलकर बना है। ‘तन्‘ का अर्थ विस्तार करने के सम्बन्ध में है। अतः Tantra का अर्थ व्याकरण की दृष्टि से यह हैं- विस्तारपूर्वक तत्व को अपने अधीन करना।

इसके अतिरिक्त ‘तन्‘ पद से प्रकृति और परमात्मा तथा ‘त्र‘ से स्वाधीन बनाने के भाव को ध्यान में रखकर तंत्र का अर्थ– देवताओं के पूजा आदि उपकरणों से प्रकृति और परमेश्वर को अपने अनुकूल बनाना होता है।

परमेश्वर की उपासना के लिए जो उपयोगी साधन है, वे भी तंत्र ही कहलाते हैं। इन्हीं सब अर्थों को ध्यान में रखकर शास्त्रों में Tantra की परिभाषा दी गयी है-

सर्वेऽर्था येन तन्यन्ते त्रायते च भ्याज्ज्नान्।
इति तंत्रस्य तंत्रत्वं तन्त्रज्ञाः परिचक्षते।।

अर्थात् जिसके द्वारा सभी मन्त्रार्थों-अनुष्ठानों का विस्तारपूर्वक विचार ज्ञात हो तथा जिसके अनुसार कर्म करने पर लोगों की भय से रक्षा हो, वही Tantra है। इसका अर्थ अपने-आप में बहुत विस्तृत एवं गूढ़ है।

Tantra | तंत्र के प्रकार

तंत्र प्राचीन विज्ञान की एक प्रमुख प्रयोगशाला रही है। एक समय भारत में 64 प्रकार की Tantra विधाओं का सर्वत्र प्रचलन था, लेकिन बाद में धीरे-धीरे उनमें से ज्यादातर विधायें लुप्त होती चली गयीं। यह भी पढें- तांत्रिक वस्तुएं करेंगी व्यवसाय बंधन से मुक्त 

तंत्र के प्रकार तो बहुत थे परन्तु वर्तमान में इसकी दो-चार विधायें ही शेष रह गयीं हैं। इसकी मूल बातों को भूलाकर आज ग्रंथों में बहुत कुछ अनाप-शनाप जोड़कर इसे भ्रामक और डरावना बना दिया गया है।

वर्तमान में Tantra के दो मार्ग बहुत प्रचलित हैं। वाममार्ग और दक्षिणमार्गवाममार्ग में साधक पंचमकार का प्रयोग करते हैं। पंचमकार में पांच वस्तुओं- मद्य, मांस, मत्स्य, मुद्रा और मैथुन का वाममार्ग का साधक प्रत्यक्ष प्रयोग करता है।

वहीं दूसरी तरफ दक्षिणमार्ग का साधक इन सब वस्तुओं को हेय मानते हुए इनका प्रत्यक्ष प्रयोग न करके वैकल्पिक वस्तुओं का प्रयोग करके अपनी साधना सम्पन्न करता है।

प्राचीन तंत्र विद्या

प्राचीन तंत्र विद्या एक स्वतंत्र शास्त्र है, जो पूजा और आचार पद्धति का परिचय देते हुए इच्छित तत्वों को अपने अधीन बनाने का मार्ग दिखलाता है। इस प्रकार देखा जाए तो यह एक प्रकार का साधना शास्त्र है।

प्राचीन तंत्र विद्या में साधना के अनेक प्रकार दिखलाए गये हैं, जिनमे देवताओं के स्वरूप, गुण, कर्म, आदि के चिन्तन की प्रक्रिया बतलाते हुए पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम तथा स्तोत्र, इन पांच अंगों वाली पूजा का विधान किया गया है।

पटल : इसमें मुख्यरूप से जिस देवता का पटल होता है, उसका महत्व, इच्छित कार्य के शिघ्र सिद्धि के लिए जप, होम का सूचन तथा उसमें उपयोगी सामग्री आदि का निर्देश होता है। साथ ही यदि मंत्र शापित है, तो उसका शापोद्धार भी दिखलाया जाता है।

पद्धति : पद्धति में साधना के लिए शास्त्रीय विधि का क्रमशः निर्देश होता है, जिसमें प्रातः स्नान से लेकर पूजा और जप समाप्ति तक के मंत्र तथा उनके विनियोग आदि का सांगोपांग वर्णन होता है।

इस तरह नित्य पूजा और नैमित्तिक पूजा दोनों प्रकारों का प्रयोग विधान तथा काम्य कर्मों का संक्षिप्त सूचन इसमे सरलता से प्राप्त हो जाता है।

कवच : प्रत्येक देवता की उपासना में उनके नामों के द्वारा उनका अपने शरीर में निवास तथा रक्षा की प्रार्थना करते हुए जो न्यास किए जाते हैं, वे ही कवच रूप में वर्णित होते हैं।

जब ये कवच, न्यास और पाठ द्वारा सिद्ध हो जाते हैं, तो साधक किसी भी रोगी पर इनके द्वारा झाड़ने-फूंकने की क्रिया करता है और उससे रोग शान्त हो जाते है।

कवच का पाठ जप के पश्चात होता है। भूर्जपत्र पर कवच का लेखन, पानी का अभिमंत्रण, तिलकधारण, वलय, ताबीज तथा अन्य धारण वस्तुओं को अभिमंत्रित करने का कार्य भी इन्हीं से होता है।

सहस्त्रनाम : उपास्य देव के हजार नामों का संकलन इस स्तोत्र में रहता है। ये सहस्त्रनाम ही विविध प्रकार की पूजाओं में स्वतंत्र पाठ के रूप में तथा हवन-कर्म में प्रयुक्त होते हैं।

ये नाम अति रहस्यपूर्ण, देवताओं के गुण-कर्मों का आख्यान करने वाले, मंत्रमय तक सिद्ध मंत्ररूप होते हैं। अतः इनका भी स्वतंत्र अनुष्ठान होता है।

स्तोत्र : आराध्य देव की स्तुति का संग्रह ही स्तोत्र कहलाता है। प्रधानरूप से स्तोत्रों में गुणगान एवं प्रार्थनाएं रहती हैं। किन्तु कुछ सिद्ध स्तोत्रों में मंत्र प्रयोग, स्वर्ण आदि बनाने की विधि, यंत्र बनाने का विधान, औषधि प्रयोग आदि भी गुप्त संकेतों द्वारा बताए जाते हैं।

तत्व, उपनिषद आदि भी इसी के भेद प्रभेद हैं। सरस साहित्यिक शैली में रचित स्तोत्रों की संख्या अपार है। प्राचीन तंत्र विद्या अपने-आप में गुप्त ज्ञान का सागर है, जिसे ग्रहण करने में कई जन्म भी र्प्याप्त नहीं है। यह भी पढें- योग साधना 

तंत्र ग्रन्थ या तंत्र शास्त्र

तांत्रिक साधना के पांच अंगों पटल, पद्धति, कवच, सहस्त्रनाम एवं स्तोत्र से पूर्ण शास्त्र या ग्रन्थ ही तंत्र ग्रन्थ या तंत्र शास्त्र कहलाता है। कलियुग में तंत्र ग्रन्थ के अनुसार की जाने वाली साधना ही शीघ्र फलवती होती है।

तंत्र शास्त्र में कहा गया है- बिना ह्यागममार्गेण नास्ति सिद्धिः कलौ प्रिये। अर्थात बिना Tantra मार्ग का अनुसरण किये, कलियुग में कभी भी सिद्धि प्राप्त नहीं किया जा सकता है।

योगिनी तंत्र में यहां तक कहा गया है कि वैदिक मंत्र विषरहित सर्पों के समान निवीर्य हो गए हैं। वे सतयुग, त्रेता और द्वापर में सफल थे, किन्तु अब कलियुग में मृतक समान हैं।

इस प्रकार देखा जाए तो कलियुग में सिद्धि एवं मोक्ष प्राप्ति के लिए तंत्र ग्रन्थ या तंत्र शास्त्र का अनुसरण ही अन्तिम मार्ग है। शाक्त तांत्रिक मार्ग से सम्बन्धित कुछ प्रमुख तंत्र ग्रन्थ हैंमहानिर्वाण तंत्र, कुलार्णव तंत्र, मुण्डमाला तंत्र, योगिनी तंत्र इत्यादि।

तंत्र विद्या सीखना

तंत्र विद्या सीखना इतना आसान कार्य नहीं है। इस विद्या को सीखने के लिए साधक को सर्वप्रथम एक योग्य गुरु की परम आवश्यता होती है। बिना गुरु के इस कठिनमार्ग पर चलना सांप के बिल में उंगली डालने जैसा है।

गुरु, सर्वप्रथम पहले साधक की योग्यता की परीक्षा लेते हैं, यदि साधक उनके कसौटी पर खरा उतरता है तब जाकर साधक को गुरु द्वारा तंत्र विद्या की दीक्षा दी जाती है। तंत्र विद्या सीखना कोई खेल जैसा नहीं कि मन में आया और तंत्र के क्षेत्र में कदम बढ़ा दिये।

कई जन्मों के पुण्य संचय के परिणाम स्वरूप एक साधक को योग्य तांत्रिक गुरु का शरण प्राप्त होता है। गुरुदेव के परम आशीष एवं साधक के अथक प्रयास, गुरु के प्रति अप्रतिम समर्पण के फलस्वरूप Tantra का मार्ग साधक के समक्ष प्रकाशित होता है।

तांत्रिक मार्ग में गुरु ही शिव हैं और शिव हीं यह निर्णय करते हैं कि साधक तांत्रिक दुनिया के किस मार्ग पर चलने के योग्य है। तांत्रिक ग्रंथों को पढ़कर साधना सीखने का सपना देखने वाले साधकों के लिए यह सपना दिन में चन्द्रमा तथा रात में सूर्य को देखने जैसा असम्भव है। यह भी पढें- दुर्गा साधना जो आपकी जिंदगी बदल सकता है 

तंत्र की परिभाषा

तंत्र की परिभाषा विस्तृत है। Tantra एक विज्ञान है। इस विज्ञान को का ज्ञान योग्य गुरु की शरण में जाकर प्राप्त किया जा सकता है। क्योंकि तंत्र के अनेको ग्रंथों से यह प्रमाणित है कि गुरु के बिना तांत्रिक  मार्ग पर चलना असम्भव है।

तंत्र की परिभाषा में कई महत्वपूर्ण चीजें समाहित हैं। सिद्धांत, शासन प्रबन्ध, व्यवहार, नियम, वेद की एक शाखा, शिव-शक्ति आदि की पूजा और अभिचार आदि का विधान करने वाला शास्त्र, आगम, कर्मकाण्ड पद्धति और अनेक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु अनेक युक्तियों एवं विधानों का अनुसरण तंत्र की परिभाषा में सम्मिलित है।

वस्तुतः Tantra स्वयं को तारने का अर्थात इस भव-बंधन से मुक्त होने का साधन है। जब तक मनुष्य अज्ञान के अंधकार में डूबा है, तब तक वह इस भव सागर को पार नहीं कर सकता है।

ज्ञान ही मुक्ति का साधन है। तंत्र, ज्ञान का विस्तार करता है। यह भौतिक जगत से सूक्ष्म जगत की ओर मार्ग प्रशस्त करता है। तांत्रिक कई अद्भुत वस्तुओं का सिद्धि प्राप्त करने के लिए प्रयोग करता है, जो जनसाधारण के लिए घृणित एवं त्याज्य प्रतीत होता है।

परन्तु वह वस्तुएं लाक्षणिक होती हैं। तांत्रिक मार्ग में प्रयुक्त प्रत्येक भौतिक वस्तु किसी सूक्ष्म विद्या की ओर संकेत करते हैं। यह भी पढें- महिला बवासीर के ०५ घरेलु उपचार 

मांस-मदिरा का प्रयोग तांत्रिक मार्ग में आवश्यक है परन्तु तांत्रिक इन वस्तुओं का प्रयोग भोग के लिए नहीं अपितु योग के लिए करता है।

Tantra की गोपनीयता की ओर लोगों ने ध्यान नहीं दिया और जनमानस के बीच तंत्र को लेकर अनेकों भ्रम फैल गए। निश्चित ही गोपनीयता के इस रहस्य के पृष्ठभूमि में मांस, मदिरा जैसे शब्दों का प्रयोग हुआ है।

तंत्र किसे कहते हैं?

तंत्र किसे कहते हैं ? इस प्रश्न का उत्तर तंत्र का अर्थ एवं तंत्र की परिभाषा विषय पर की गयी चर्चा में समाहित है। इसका दूसरा नाम आगम है। अतः Tantra और आगम एक दूसरे के पर्यायवाची हैं। वैसे आगम के बारे में यह प्रसिद्ध है-

आगतं शिववक्त्रेभ्यो, गतं च गिरिजामुखे।
मतं च वासुदेवस्य, तत आगम उच्यते।।

तात्पर्य यह है कि जो शिवजी के मुखों से आया और पार्वती जी के मुख में पहुंचा तथा भगवान विष्णु ने अनुमोदित किया, वही आगम है और उसे ही Tantra कहते हैं। यह भी पढें- गुरु दीक्षा परम आवश्यक है 

तंत्र विद्या क्या है ?

तंत्र विद्या क्या है ? यह भी प्रश्न अक्सर लोगों द्वारा पूछा जाता है। जैसा कि तांत्रिक शास्त्रों से विदित है कि आगमों या तंत्रों के प्रथम प्रवक्ता भगवान शिव हैं तथा उसमें सम्मति देने वाले विष्णु हैं।

जबकि पार्वती जी उसका श्रवण कर, जीवों पर कृपा करके उपदेश देने वाली हैं अतः भोग और मोक्ष के उपायों को बताने वाली विद्या ही तंत्र विद्या कहलाता है। तंत्र वि़द्या से सम्बन्धित शास्त्र तंत्र अथवा आगम कहलाते हैं।

तंत्र विद्या को लेकर अनेक भ्रम फैले हुए हैं। यदि अशिक्षितों को छोड़ दें, तब भी शिक्षित समाज Tantra की वास्तविक भावना से दूर इसे मात्र जादू-टोना ही समझता आ रहा है।

परन्तु सत्य तो यह है कि तंत्र मार्ग ही वह अंतिम उपाय है जिसके द्वारा मनुष्य भोग और मोक्ष दोनों एक साथ प्राप्त कर सकता है।

तंत्रों के बारे में साधारण लोगों का जो भ्रम है, उस भ्रम को कुछ तथाकथित तांत्रिकों-मांत्रिको ने अपने बुरे कर्मों एवं लोगों के बीच तंत्र का दुरुपयोग करके, लोगों के साथ ठगी करके और बढ़ा दिया है।

दोस्तों इस लेख में आपने तंत्र क्या है, तंत्र के प्रकार, प्राचीन तंत्र विद्या, तंत्र ग्रन्थ, तंत्र का अर्थ, तंत्र की परिभाषा, तंत्र किसे कहते हैं, तंत्र विद्या क्या है और तंत्र विद्या सीखना से सम्बन्धित अनेक बाते जाना।

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