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योग साधना के प्रकार – YOG SADHANA KE PRAKAR
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Yog Sadhana |
योग साधना में यम-नियम का महत्व – YOG SADHANA ME YAM-NIYAM KA MAHATVA
योग साधना (Yog Sadhana) में यम-नियम का बड़ा महत्वा है। यम-नियम का पालन किये बिना योग साधना में शिखर तक पहुचना मुश्किल है। आइये जानते हैं योग साधना में यम-नियम का महत्वा-
यम – YAM
जिस प्रकार अष्टांग योग में प्रथम सोपान होने के कारण यम का महत्व है, उसी प्रकार यमों में प्रथम स्थान प्राप्त अहिंसा का भी महत्व है। शेष सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य तथा अपरिग्रह आदि अन्य चारों यम भी अहिंसामूलक ही होते हैं, जिनके अनुष्ठान, अहिंसा की निर्मलता में ही अभिवृद्धि करते हैं। एक बात अवश्य ध्यान रखने योग्य है कि इनके अभाव में अहिंसा में मालिन्य आने का भय रहता है।
सत्य– किसी वस्तु को जिस रूप में नेत्रों से देखा, आगम से सुना, तर्क या अनुमान आदि से जाना हो, उस वस्तु के ज्ञान को उसी रूप में अपने मन में धारण करना या दूसरों धारण कराना सत्य कहलाता है। किन्तु अप्रिय वंचना तथा भ्रांतिपूर्ण वचन भी अपकारक तथा दुखद होने के कारण सत्य होते हुए भी असत्य है। मनु जी ने कहा है-
सत्यं ब्रूयात प्रियं ब्रूयान्नब्रूयात सत्यमप्रियम्।
अर्थात् सत्य को प्रिय बोलना चाहिए। अप्रिय सत्य बोलने से न बोलना अच्छा होता है क्योंकि वह वक्ता के लिए भी अश्रेयस्कर होता है।
अस्तेय– “स्तेय” शब्द का अर्थ होता है चोरी अथवा तस्करी। स्तेय शब्द में “अ” उपसर्ग लगने से बने विपरीतार्थक शब्द अस्तेय का अर्थ होता है चोरी अथवा तस्करी न करना। अर्थात् बलपूर्वक किसी के द्रव्य का हरण न करना। यही नही, अपितु अन्यायपूर्वक दूसरे के द्रव्य को स्वीकार करने की इच्छा न करना भी अस्तेय ही है।
ब्रह्मचर्य- मन, वचन कर्म द्वारा हर प्रकार से मैथुन का परित्याग ब्रह्मचर्य है। केवल संभोग न करना ही पूर्ण ब्रह्मचर्य नहीं है अपितु समस्त इन्द्रियों की रक्षापूर्वक उनके द्वारा भोग्य विषयों का त्याग करते हुए उपस्थ-संयम करना ही पूर्ण ब्रह्मचर्य कहलाता है।
चुंकि शास्त्रानुसार वीर्य-नाश को मरण तथा वीर्य-रक्षा को जीवन कहा गया है इसलिए वीर्य-रक्षा को ही वास्तविक ब्रह्मचर्य मानना चाहिए और ब्रह्मचर्य-पालन का यही मुख्य उद्देश्य भी है। योग साधना (YOG SADHANA)
अपरिग्रह– सामान्य जीवन हेतु अपेक्षित वस्तुओं से अधिक न धारण करना अपरिग्रह कहलाता है। उपहार, दान आदि न लेना भी अपरिग्रह है क्योंकि इनको ग्रहण करने से अर्जन, रक्षण, क्षय, मोह तथा हिंसा आदि से सम्बन्धित अनेंक समस्याओं को झेलना पड़ता है जिससे हृदय-शुद्धि नहीं हो पाती है, और अपरिग्रह का मुख्य उद्देश्य तो हृदय शुद्धि ही है।
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Yog Sadhana |
नियम – NIYAM
ईश्वर प्रणिधान– फल की इच्छा को त्याग करके सभी कर्मों का ईश्वर को समर्पण करना ईश्वर प्रणिधान नियम कहलाता है। इसी को ईश्वर में निश्चल भक्ति भी कहा गया है। जिसमें भक्त मन, वचन तथा कर्मों से प्रत्येक क्षण उस ईश्वर में समर्पित रहकर उसी की स्तुति, स्मरण तथा पूजन-आराधना में लीन रहता है।
इस प्रकार एक योगी को योग साधना (YOG SADHANA) के मार्ग पर आगे बढ़ने के लिए उपरोक्त यम नियम आदि साधन को अपनाते हुए बहुत ही विवेकपूर्ण और धैर्य के साथ आगे बढ़ना होता है।
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