योगा क्या है | Yoga Kya Hai : संसार ही क्या सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का अस्तित्व ही योग और वियोग की महती प्रक्रिया पर अवलंबित है। यही उसके अस्ति और नास्ति का भी रहस्य है जिसे न समझते हुये भी मानव प्राणी स्वयं को उसके समक्ष पूर्णतया पराभूत स्वीकार नहीं कर पा रहा है।
दोस्तों इस लेख में हम जानेगें कि योगा क्या है (Yoga Kya Hai) और मानव जीवन में इसका उद्देश्य क्या है। इश्वर ने योग रूपी विद्या का उपहार मानव को इसीलिए दिया है, ताकि इसे धारण करके मनुष्य अपने जीवन को सुखी और सफल बना सके।
वास्तव में योग स्वयं को जानने की क्रिया है। खुद को खुद में ढूढ़ने का विज्ञानं है क्योकि जब तक जीवात्मा स्वयं को नहीं ढूढ़ लेता है, तब तक वह इश्वर को नहीं जान सकता है।
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योग का उद्देश्य | YOGA KA UDDESHYA
योग का मूल उद्देश्य प्रकृति से सम्बन्ध विच्छेदन है। जब तक मनुष्य प्रकृति से जुड़ा है तब तक वह प्रकृति के हाथो का खिलौना है, और यह जुड़ाव टूटते ही मनुष्य स्वयं को जान जाने में सक्षम हो जाता है, और स्वयं को जिसने जान लिया, उसने “उसको” भी जान लिया क्योकि “उसी” का अंश तो है आत्मा।
आत्मा का ज्ञान मतलब परमात्मा का ज्ञान। जैसे कि यदि हमें समुद्र के गुण, धर्मं, संगठन और उसमे निहित अवयव को जानना हो तो, क्या हम पुरे समुद्र को लैब में ले जा कर उसका परिक्षण करेंगे ? नहीं ना ?
हमें तो केवल समुद्र का एक बूंद चाहिए, उस एक बूंद के क्रिया धर्मं को जान लिया तो पुरे समुद्र के क्रिया धर्म को जान लिया।
वैसे ही परमात्मा को जानने के लिए हमें इधर – उधर उसे खोजने की जरुरत नहीं है, हमें बस स्वयम में झाकने की जरुरत है और मुख्यरूप से, योग इसी विचारधारा पर अवलंबित है।
परन्तु लोग भ्रमित है, वह इश्वर को बाहर खोजते है। जीवन बीत जाता है, परन्तु इश्वर के दर्शन नहीं हो पाते। सबसे मुख्य बात यह है कि योग वह सीढ़ी है, जिसके जरिये हम स्वयं में उतरते हैं, स्वयम को जानते हैं, और अंततः कण-कण में विराजमान उस परमेश्वर को जान जाते हैं।
अंत में यही कहूँगा – “कस्तूरी कुंडली बसे, मृग ढूढे बनमाहि, ऐसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहीं।”
योग क्या है (Yoga Kya Hai) – पतंजलि योगसूत्र से मुख्य निष्कर्ष
दोस्तों इस लेख में आपने जाना कि योग क्या है (Yoga Kya Hai) और इसका उद्देश्य क्या है। इस लेख में मुख्य बात यही बताया गया है की योग ही वह विधा है, जो मनुष्य को इश्वर से जोड़ता है। योग विद्या के अनेकों ग्रंथों में प्रसिद्ध ग्रन्थ महर्षि पतंजलि द्वारा लिखित है।
अपने योगसूत्र में पतंजलि ने कहा है की योग जोड़ने की नहीं अपितु तोड़ने की प्रक्रिया है। अब आश्चर्य का विषय यह है की हर कोई यही कहता है की योग का अर्थ है जोड़ना तो महर्षि पतंजलि ने ये क्यों कहा की योग तोड़ने की प्रक्रिया है।
योग सूत्र के महान प्रणेता महर्षि पतंजलि, यदि योग को तोड़ने की प्रक्रिया कहा है, तो उनके कथन में जरुर कोई रहस्य होगा। अब समझाना यह है की पतंजलि के तोड़ने की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है? उन्होंने ऐसा क्यों कहा है।
यदि उनके कहे हुए कथन पर चिंतन किया जाए तो ऐसा लगेगा की महर्षि पतंजलि की भी बात सही है। वास्तव में योग जोड़ने की भी प्रक्रिया है और तोड़ने की भी प्रक्रिया है।
योग हमें खुद से जोड़ता है। हम कौन हैं? इस प्रश्न के उत्तर से हमारा परिचय करता है। हमारी आत्मा को परमात्मा से जोड़ता है और हमारे जीवन को सार्थक बनता है।
योग तोड़ने की भी प्रक्रिया है। योग हमारा सम्बन्ध बाह्य जगत से तोड़ता है, जिससे हम अपने अन्दर की दुनिया से जुड़ पाने में सफल होते हैं।
योग सुख, दुःख, मोह, माया और घृणा जैसे महापाशों से हमारे मन के तारों को तोड़ता है जिससे हम इश्वर के महान स्वरुप को अपने मन और ह्रदय में धारण कर पातें हैं।
योग क्या है (Yoga Kya Hai)
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