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योग मार्ग (YOG MARG) में मानव चित्तवृत्तियों के प्रकार |
1. प्रमाण – जिन साधनों से प्रमाता को प्रमेय का ज्ञान होता है, उसे प्रमाण कहते हैं। ये प्रत्यक्ष, अनुमान तथा आगम तीन प्रकार के होते हैं।
प्रत्यक्ष प्रमाण – नेत्रादि इन्द्रियों के द्वारा विषय प्रत्यक्षीकरण से जो चित्तवृत्ति उत्पन्न होती है, उसे प्रत्यक्ष प्रमाण कहते हैं। जैसे ’यह घट है’, ’यह अश्व है’ इत्यादि।
अनुमान प्रमाण – यह ज्ञान कार्य-कारण के सम्बन्ध से उत्पन्न होता है। जैसे अग्नि के कारण धुवां होता है तो धुएं से अग्नि का अनुमान प्रमाण होता है अग्नि के होने का।
आगम – सच्चे विश्वस्त पुरुष के कथनों अर्थात आप्तवाक्यों को सुनने से उत्पन्न चित्तवृत्ति आगम प्रमाण कहलाती है। किन्तु ऐसे पुरुष का पात्रत्व तथा कथन विवादास्पद न हो।
2. विपर्यय – किसी वस्तु के मिथ्याज्ञान से उत्पन्न चित्तवृत्ति को विपर्यय कहते हैं। जैसे दूरी या अंधकार के कारण रस्सी में सर्प का भ्रम हो जाता है। यह अवास्तविक या मिथ्याज्ञान है।
3. विकल्प – वास्तविकता से रहित केवल शब्द ज्ञान पर आधारित वृत्ति को विकल्प वृत्ति कहते हैं। इसमें उस वस्तु की अपेक्षा समाप्त हो जाती है जिसके विषय में शब्दों का प्रयोग किया जाता है।
जैसे आकाष-कुसुम कहने से आकाष-कुसुम की अपेक्षा नहीं होती क्योकि इन शब्दों से अर्थ बोध तो होता है, किन्तु उसके अनुरुप कोई वस्तु नहीं होती है।
4. निद्रा – इस अवस्था में जाग्रत तथा स्वप्न दोनों अवस्थाओं की वृत्तियों का अभाव होता है। इसी अभाव पर आश्रित वृत्ति निद्रा कहलाती है। इसमें तमोगुण की प्रधानता होती है, फलस्वरूप चित्त मुग्धावस्था में होता है। हॉ अत्यन्त क्षीण अवस्था में होत हुए भी, रजोगुण ही निद्रा को भंग करता है।
5. स्मृति – किसी पूर्व अनुभूत विषय की यथावत मानसिक प्रतीति स्मृति कहलाता है। अनुभूत विषय संस्कार बनकर चित्त में स्थिर रहता है तथा परिस्थिति विशेष में उद्बोधित होकर जाग्रत हो जाता है। यह विशेष परिस्थिति चित्त की एकाग्रता तथा अभ्यास आदि से उत्पन्न होती है।
संसार अनेकानेक विषयों से परिपूर्ण है। अविद्या या ज्ञानाभाव के कारण चित्त का इन्हें अपने से अभिन्न समझते हुए इनके संसर्ग में आना अत्यन्त स्वाभाविक बात है।
इन असंख्य विषयों के संसर्ग में आने तथा उनके रूप, आकार तथा धर्म के अनुरूप् स्वयं को परिवर्तित करने की प्रक्रिया चित्त में निरंतर घटित होती रहती है और इसके द्वारा उत्पन्न परिणाम, जिन्हें चित्तवृत्तिया कहते हैं, मनुष्य के अनेकानेक क्लेषों की जननी है।
योग मार्ग (YOG MARG) में सफलता प्राप्त करने के लिए इन चित्तवृत्तियों से ऊपर उठकर साधक को हमेशा अपने कर्तव्य में निष्ठा पूर्वक लगे रहना चाहिए।
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