बगलामुखी | BAGALAMUKHI :- पौराणिक काल
सतयुग में एक बार भीषण वायु रूपी तूफान उत्पन्न हुआ। इसकी तीव्रता को देखते हुए, इससे होने वाली हानियों की कल्पना करके भगवान विष्णु को बड़ी भारी चिंता हुई और इस विषय में अन्य कोई उपाय न समझकर उन्होंने सौराष्ट्र नामक प्रांत में हरिद्रा नाम वाले सरोवर के समीप आदि भवानी की प्रशन्नता हेतु तप किया।
परिणाम स्वरूप और आवश्यकता के अनुसार देवी का
बगलामुखी के रूप में प्रादुर्भाव हुआ और देवी ने उस भयंकर तूफान को शांत कर दिया। बगलामुखी देवी अपने साधकों की उनकी अभिलाषा के अनुसार सर्व कामनायें पूर्ण करती हैं।
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BAGALAMUKHI |
यह शक्ति विष्णु के तेज से युक्त होने के कारण वैष्णवी हैं तथा मंगलवार युक्त चतुर्दशी की अर्धरात्रि में इनका आविर्भाव हुआ है। स्तम्भन विद्या के रूप में इनकी साधना की जाती है।
दैवीय प्रकोप से बचने के लिए इनकी उपासना शान्ति कर्म, धन-धान्य के लिए पौष्टिक कर्म तथा शत्रुनिग्रह के लिए आभिचारिक कर्म के साथ होता है।
यह भेद प्रधानता के अभिप्राय से ही है, अन्यथा
बगलामुखी विद्या की उपासना भोग और मोक्ष दोनों की प्राप्ति के लिए किया जा सकता है। इनकी उपासना-साधना से हर प्रकार की दुर्लभ वस्तु की प्राप्ति हो जाती है।
बगलामुखी | BAGALAMUKHI
बगलामुखी ध्यान (BAGALAMUKHI DHYAN)
मध्ये सुधाब्धिमणिमण्डयरत्नवेदी-
सिंहासनोपरिगतां परिपीतवर्णाम्।
पीताम्बराभरणमाल्यविभूषितांगीं।
देवीं स्मरामि धृतमुद्गरवैरिजिह्वाम्।।
जिह्वाग्रमादाय करेण देवीं वामेन शत्रून परिपीडयतीम्।
गदाभिघातेन च दक्षिणेन पीताम्बराढ्यां द्विभूजां नमामि।।
सुधा सागर में मणिमय का पण्डप है। उसमें रत्न निर्मित वेदी के ऊपर सिंहासन है। बगलामुखी देवी उसी सिंहासन के ऊपर विराजमान हैं। यह पीत वर्ण एवं पीले वस्त्रों से सुशोभित हैं।
बगलामुखी | BAGALAMUKHI
पीत वर्ण के ही इनके गहने हैं एवं देवी पीत वर्ण के माला से विभूषित हैं। इनके एक हाथ में मुद्गर और दूसरे हाथ में शत्रु की जीभ है। यह बायें हाथ में शत्रु की जीभ का अग्र भाग धारण करके दाहिने हाथ के गदाघात से शत्रु को पीड़ित कर रही हैं।
बगलामुखी देवी पीले वस्त्र से सुसज्जित दो भुजाओं वाली हैं।
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BAGALAMUKHI |
बगलामुखी मंत्र (BAGALAMUKHI MANTRA)
ऊँ ह्लीं बगलामुखी देव्यै सर्व दुष्टानाम,
वाचं मुखं पदम् स्तम्भय जिह्वां कीलय-कीलय,
बुद्धिम विनाशाय ह्लीं ऊँ नमः।।
बगलामुखी जप होम (BAGALAMUKHI JAP)
साधक को पीले वस्त्र पहनकर
हल्दी की गांठों से बनी माला से नित्य एक लाख जप करना चाहिए एवं पीले वर्ण के पुष्पों से ही दशांश हवन करना चाहिए।
बगलामुखी | BAGALAMUKHI
बगलामुखी स्तोत्र (BAGALAMUKHI STOTRA)
बगला सिद्धविद्या च दुष्टनिग्रहकारिणी।
स्तम्भिन्याकर्षिणी चैव तथोच्चाटनकारिणी।।
भैरवी भीमनयना महेशगृहिणी शुभा।
दशानामात्मकं स्तोत्रं पठेद्वा पाठयेद्यदि।।
स भवेत् मंत्रसिद्धश्च देवीपुत्र इव क्षितौ।।
बगला, सिद्ध विद्या, दुष्टों का निग्रह करने वाली, स्तम्भन करने वाली, आकर्षण एवं उच्चाटन करने वाली, भैरवी, भयंकर नेत्रों वाली, भगवान महेश की पत्नी, शुभ करने वाली, इस दशनामात्मक देवी स्तोत्र का जो साधक पाठ करता है या दूसरे से पाठ करवाता है, वह मंत्र सिद्ध होकर
पार्वती पुत्र के समान पृथ्वी पर विचरण करता है।
बगलामुखी कवच – BAGALAMUKHI KAVACH
ऊँ ह्रीं मे हृदय पातु पादौ श्रीबगलामुखी।
ललाटे सततं पातु दुष्टनिग्रहकारिणी।।
‘ऊँ ह्रीं ‘ मेरे हृदय की, श्री
बगलामुखी मेरे दोनों पैरों की और दुष्टनिग्रहकारिणी सदा मेरे ललाट की रक्षा करें।
रसनां पातु कौमारी भैरवी चक्षुषोर्म्मम।
कटौ पृष्टे महेशानी कर्णौ शंकरभामिनी।।
कौमारी मेरी जीभ की, भैरवी मेरे नेत्रों की महेशानी मेरी कमर तथा पीठ की, शंकर पत्नी मेरे कानों की रक्षा करें।
वर्ज्जितानि तु स्थानानि यानि च कवचेन हि।
तानि सर्व्वाणि मे देवी सततं पातु स्तम्भिनी।।
जो जो स्थान कवच में नहीं कहे गये, स्तम्भिनी देवी मेरे उन सब स्थानों की रक्षा करें।
अज्ञात्वा कवचं देवी यो भजेद्बगलामुखीम्।
शस्त्राघातमवाप्नोति सत्यं सत्यं न संशयः।।
हे देवी! इस कवच को जाने बिना जो साधक
बगलामुखी की उपासना करता है, उसकी शस्त्राघात से
मृत्यु होती है। इसमें संशय नहीं करना।
बगलामुखी | BAGALAMUKHI
।। इति श्रीबगलामुखी स्तोत्र-कवचम् सम्पूर्णं ।।
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