तेजानन्द ने गहरी सांस लेते हुए कहा – तुम आकाशागमन विद्या के बारे में जानने के लिए उत्सुक हो, यह स्वभाविक बात है। मनुष्य का यह स्वभाव है कि जो चीज उसके सामर्थ्य से बाहर की नजर आती है, या तो उसे वह झूठ की संज्ञा देता है या फिर भ्रम समझता है।
यदि आप यह कहानी पढ़ रहे हैं तो पहले – वह रहस्यमयी भैरवी – भाग- 1 पढ़ें
यह ठीक उसी प्रकार है, जैसे किसी दैवीय चमत्कार को देखकर कुछ पढ़े-लिखे नास्तिक उसे भ्रम कहते हैं। वास्तव में नास्तिकता खुद ही एक बड़ा भ्रम है, और भ्रम को धारण करके रखने वाला तो भ्रम की ही बात करेगा। खैर, छोड़ो यह अलग मुद्दा है।
मैं तुम्हें प्रत्यक्ष उस अवस्था की अनुभूति कराऊँगा, जिसमें तुम्हें इस शरीर के उस अद्भुत अवस्था का बोध होगा, जिसमें मनुष्य के शरीर का धरती के गुरुत्वाकर्षण से सम्पर्क टूट जाता है। और यदि जिस वस्तु पर पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण का प्रभाव खत्म हो जाए, वह वस्तु को हवा में तैरने से कौन रोक सकता है। विज्ञान भी कहता है कि पृथ्वी पर वस्तुएं गुरुत्व बल के कारण ही टिकीं हुई है।
गुरुत्वबल हर वस्तु को नीचे की ओर खीचती है। मैं बड़ा ही ध्यान से तेजानन्द की बातें सुन रहा था। उनकी बातें बड़ी रोचक लग रही थी। मैंने कहा- तो क्या योगी अपने योग बल से पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण से मुक्त हो जाता है, और आकाश में विचरण करने लगता है? हाँ, बिलकुल सही समझा तुमने। अब मैं तुम्हें प्रत्यक्ष यह अनुभूति कराऊँगा।
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Bhairavi Tantra Katha |
तेजानन्द ने कहा- इस एक बोतल मदिरा को तुम ग्रहण करो। मैंने कहा- प्रभु! मैं मदिरा नहीं पीता। यह मेरे गले से नीचे नहीं उतरेगा। यह तुम्हें पीना ही पड़ेगा। इसे मदिरा मत समझो। यह शक्ति है। वह शक्ति, जो तुम्हारे अन्दर के दरवाजे को खोलेगी।
तंत्र ग्रंथों में कहा गया है…. सुरा शक्ति, मांस शिवः। परन्तु ऐसा नहीं कि हर पीने वाले के लिए मदिरा शक्ति है। मदिरा को अभिमंत्रित करके इसे शक्तिमय करना पड़ता है। यह क्रिया किसी तंत्र साधक को, कोई तांत्रिक गुरु ही बता सकता है। यह कोई साधारण मदिरा नहीं है। पी जाओ, आदेशात्मक स्वर में तेजानन्द ने कहा।
मैंने झट से बोतल उठाया और आंख बन्द करके पीने लगा। पर यह क्या! इसका स्वाद तो बहुत हीं दिव्य था। ऐसा लग रहा था, जैसे शहद में हल्का सा खटाई मिलाया गया हो। मैं एक झटके में सारा का सारा बोतल गटक गया। और जब मैंने बोतल को जमीन पर रखा तो वहीं लुढक गया। पूरा शरीर झन्न-झन्न करने लगा।
मैं किसी तरह से सम्भलकर बैठा। तेजानन्द ने बकरे को बीच में खड़ा कर दिया और उसके आगे चावल के कुछ ढेर लगा दिया। बकरा धीरे-धीरे चावल के ढेर को खाने लगा। मेरी चेतना धीरे-धीरे डूबती जा रही थी। मन में बार-बार यह विचार कौंध रहा था कि आखिर क्या होने वाला है? क्या करेंगे अब यह रहस्यमयी तांत्रिक और यह भैरवी मिलकर।
मैं अनेकों प्रश्नों के जाल में ही उलझा रहा, तभी मैंने देखा कि भैरवी एक बड़ा सा खड़ग लेकर मेरे सामने खड़ी है। मैं भय और विस्मय से कांप गया। हे भगवान! यह क्या करेगी अब? कहीं मैं किसी तांत्रिक जाल में तो नहीं फस गया? कहीं यह मेरी बलि तो नहीं देगी? मेरे मनोभावों को वह तंत्र की सिद्ध भैरवी ने समझ लिया और मुझसे कहने लगी- यह कोई बड़ी बात नहीं है कि किसी मनुष्य की बलि दी जाये। लाखों नरबलियाँ हुईं हैं तंत्र की दुनिया में।
तांत्रिकों ने अपनी सिद्धि और भगवती आद्या का अनुग्रह प्राप्त करने के लिए गुप्त रूप से हजारों नरबलियाँ किया है। यह सब एक बहुत हीं रहस्यमय क्रिया के अंतर्गत तांत्रिक करते हैं। खैर, इन सब बातों को छोड़ा। बस इतना जान लो कि यहाँ तुम्हारे बलि के लिए मैं इस खड़ग को लेकर नहीं खड़ी हूँ।
इस खड़ग से इस बकरे की बलि दी जाएगी और उसके रक्त से तंत्र के एक गुप्त और रहस्यमय यंत्र का निर्माण होगा और फिर होगी आगे की क्रिया जिससे तुम कुछ क्षणों के लिए आकाशगमन कर सकोगे। साधक अपनी विद्या से किसी को भी कुछ क्षण के लिए किसी भी सिद्धि का दर्शन करवा सकता है।
परन्तु यह स्थाई नहीं है, यह बस कुछ छणों के लिए है। यह तुम्हारी उत्सुकता को शांत करने एवं तुम्हें तंत्र के रहस्यमयी शक्ति से परिचित कराने के लिए किया जा रहा है। भैरवी की बातें सुनकर मैं थोड़ा तनकर बैठ गया। कुछ क्षण शांत रहा और अपने आस-पास चारो तरफ एक नजर दौड़ाया। तेजानन्द अपने ध्यानावस्था में थे।
भैरवी उस खड़ग को दोनों हाथों में लेकर आंखे बन्द किये हुए खड़ी थी। सायद मानसिक रूप से उस खड़ग की पूजा कर रही थी। बकरा अभी भी चावलों के ढेर को खाए जा रहा था। उस निरीह को क्या पता था कि कुछ समय में उसके गले को एक झटके में काट दिया जाएगा और उसके शोणित रक्त से तंत्र की एक रहस्यमयी क्रिया का सम्पादन होगा।
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