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Bhairavi-Tantra-Katha |
BHAIRAVI TANTRA KATHA :- मध्य रात्रि का समय था। तारापीठ के महाश्मशान में कुत्ते एक साथ ऐसे रो रहे थे मानों एक भयंकर विपत्ति आने की सूचना दे रहे हों। श्मशान में एक दो चितायें अब भी जल रह थी और अधिकांश चितायें जल कर बुझ चुकी थीं।
बुझी हुई चिताओं से उठने वाला धुवां ऐसी-ऐसी विकृत आकृतियॉ बना रही थीं मानों वह आकृतियॉ किसी को भी जिंदा निगल जाने को बेताब हों। मैं श्मशान के एक कोने में फटी हुई चादर को ओढ़े लेटे हुए था। जब भी थोड़ी सी आंख लगती, सारे कुत्ते एक साथ रोने लगते।
उनके रोने की आवाजें सुन कर कलेजा कांप जाता था। ऐसा लग रहा था जैसे आज कुछ भयंकर अनहोनी होने वाली है। मैं बस भगवती से यही प्रार्थना कर रहा था कि किसी प्रकार मैं नींद के आगोश में चला जाऊ और पल-पल के इस पीड़ादायक भय से मुझे मुक्ति मिले।
सोने की कोशिस में, मैं कब सो गया मुझे मालूम ही नहीं चला। नींद में मुझे लगा कि दो-तीन लोग मिलकर मुझे घसीटते हुए कहीं ले जा रहे हैं। भय से मेरी आंख खुल गयीं और जो मैने देखा, उसे देख कर मेरा कलेजा मुंह को आ गया। BHAIRAVI TANTRA KATHA
BHAIRAVI TANTRA KATHA
पांच कुत्ते जो कि एक दम से घुप अंधेरे की तरह काले थे और उस घनघोर अंधेरे में परछाई की तरह प्रतीत हो रहे थे, मुझे घसीट कर चिता की ओर ले जा रहे थे। पहले तो मुझे लगा मैं स्वप्न देख रहा हूँ, परन्तु मुझे जल्द ही वास्तविकता का एहसास हो गया।
सच्चाई का भान होते ही, मेरे हृदय की धड़कनें मेरे कानों में सुनाई देने लगा। मैं अपनी आंखों से सब देख तो रहा था, कानों से सब सुन भी रहा था, मस्तिष्क भी सही काम कर रहा था परन्तु हाथ-पैर सब सुन्न हो गये थे।
मैं चाह रहा था कि मैं किसी तरह खुद को उन कुत्तों से छुड़ा कर भागॅू, पर बस चाह ही पा रहा था कुछ कर नहीं पा रहा था। श्मशान में घसीटते हुए वे कुत्ते मुझे एक बुझी हुई चिता के पास ले गये जिसमें तुरंत के ही जले हुए लकड़ियों के अंगार लाल-लाल चमक रहे थे। वहॉ पहुॅचकर सारे कुत्ते मिमियाते हुए भाग गये। BHAIRAVI TANTRA KATHA
यह देखकर मेरी आत्मा को थोड़ा चैन मिला। परन्तु यह क्या? एक विशालकाय जीव जो मरे सामने था, मुझे खा जाने को उद्दत हो रहा था। लम्बी नाक, लम्बी ठोड़ी और लटके हुए होंठ। पेट उसका बाहर निकला हुआ था और लाल-लाल जलते हुए नेत्रों से वह मेरी तरफ देख रहा था।
ऐसा विशालकाय की मानो अभी मेरे ऊपर गिर पड़ेगा। मेरा कलेजा सूख गया। आंखों के सामने अंधेरा छाने लगा, मेरी चेतना गुम हो गयी। उसके बाद क्या हुआ, कुछ पता नहीं।
जब मेरी आंख खुली तो मैं अपने आपको एक गुफा में पाया। गुफा के दीवारों में स्थित छेदों से सूर्य की किरणें एक रंगीन पतली डोर की तरह मेरी माथे पर आ रही थी। आंख मलते हुए मैं सोचने की कोशिस कर रहा था कि यहॉ मैं कैसे आ गया? यह कौन सी जगह है? दिमाग पर जोर डालने के बाद मुझे पिछली सारी घटनायें क्रमशः याद आने लगी।
डर और विस्मय से ऐसा लग रहा था कि मेरी रक्तवाहिनियॉ जम गई हैं। भविष्यगत कुछ भयंकर अनहोनी की आशंका में मेरी आंखों से आंशु निकलने लगे। मैं कैसे यहॉ आया? वह भयंकर जीव जो मुझे खा जाने के लिए उद्दत हो रहा था, क्या उसी ने मुझे यहॉ उठा कर लाया है? अब वह क्या करेगा मेरे साथ? ऐसे हजारों प्रश्न एक बारगी मेरे मस्तिष्क में कौंध गए। हजारों सवाल थे, पर उत्तर एक भी नहीं था।
भगवान! क्या होगा मेरा। मैं कैसे जाल में फस गया। घुटने के बल बैठते हुए मैं रोने लगा। निराश, हताश और जीवन की आस खो चुका मैं वहीं जमीन पर लुढक गया। मेरी चेतना डुबने लगी और तभी पीछे से आवाज आई तुम सुरक्षित हो….. यह सुन कर मेरे मरे हुए जीवनी शक्ति में ऊर्जा का संचार हुआ। जैसे वर्षों से सुखे धरती पर बरसात की एक बूंद गिर गयी हो।
मैं तुरंत पीछे मुड़कर देखा। सामने एक दिव्य व्यक्तित्व को देखकर मैं अचंभित रह गया। लम्बा कद, गोरा रंग, शरीर पर गेरूवा वस्त्र, माथे पर दप-दप करता चमकता तेज, लम्बी सफेद दाढ़ी, शान्त और निर्भिक चेहरा। BHAIRAVI TANTRA KATHA
देखने से कोई उच्चकोटि का तांत्रिक साधू लग रहा था वह व्यक्ति। उस तेज से युक्त व्यक्ति के दर्शन कर मैं अपना सारा दुख भूल गया। मेरे अंदर एक आस जगी। पर अगले हीं छड़ मेरे दिमाग में यह विचार कौंध गया कि आखिर वह भयानक दानव गया कहॉ ? कहीं वही दानव भेष बदलकर मेरे सामने तो खड़ा नहीं है?
सायद उस दिव्य पुरुष ने मेरे विचारों को पढ़ लिया। मैं तेजानन्द हूॅ। और तुम्हें मैंने उस नरपिशाच से बचाया है। तुम यहॉ एकदम सुरक्षित हो। स्नेह से युक्त सरस वाणी में मेरे सामने खड़े उस साधू ने कहा। वह साधू धीरे से मेरे करीब आया और कहा कि तुम्हारा भाग्य अच्छा था जो मैं उस रात आकाश मार्ग से कहीं जा रहा था और तुम्हे उस नरपिशाच के चंगुल में फसा देख लिया।
सम्भवतः वह तुम्हारे सीने को चीर कर तुम्हारा कलेजा निकालने ही वाला था परन्तु मैंने अपने तंत्र विद्या से उसे वहॉ से भागने पर मजबूर कर दिया और तुम्हें यहॉ लाया। मैं सुनकर हतप्रभ रह गया। मैं तेजानन्द के चरणों को पकड़कर रोने लगा। प्रभु! यदि आज आप नहीं होते तो पता नहीं मेरा क्या होता। आपका यह उपकार मैं जीवन भर नहीं भूलूंगा।
कुछ देर तक मैं तेजानन्द से उनकी जीवन के बारे में और उनकी तंत्र साधना के बारे में बहुत सारी बातें पूछता रहा। तंत्र विद्या की रहस्यमयी बातें, उनकी साधना काल के अनुभवों और तंत्र साधना के दौरान चूक होने से होने वाले मृत्युदायी संकट की बातें सुंन कर मैं दंग रह गया।
कुल मिलाकर तेजानन्द मुझे एक सहृदय और सच्चे साधक लगे। मेरे मन और हृदय में उनके प्रति अपार श्रद्धा का संचार होने लगा। उन्होंने मेरी जान बचायी थी। BHAIRAVI TANTRA KATHA
कुछ ही देर बाद एक युवती हाथ में फलों की छोटी सी टोकरी लेकर सामने खड़ी हो गयी। उसे देख, मैं देखता ही रह गया। शरीर पर कसकर रक्त वस्त्र को लेपेटे हुई थी वह युवती। चौड़े माथे पर लाल रंग का गोल टीका लगाये हुये थी, दोनों भुजाओं, गर्दन, छाती और पेट पर लाल चन्दन का प्रलेप था।
सिर के घने बाल बिखर कर उसके बड़े-बड़े स्तनों पर लहरा रहे थे। कलाइयों में शंख, कौड़ियों और लोहे की चूड़ियॉ थी। शरीर का रंग एक दम गोरा। बहुत ही कामुक और आकर्षक लग रही थी वह युवती। BHAIRAVI TANTRA KATHA
कहॉ खो गये महाशय! तेजानन्द की वाणी सुनकर मेरा ध्यान उस युवती से हटा। यह मेरी भैरवी है। इसी के सहारे मैंने इतनी बड़ी-बड़ी सिद्धियॉ प्राप्त की है। मैं कुछ पूछना ही चाह रहा था कि तेजानन्द बोल पड़े, तंत्र साधना में बिना भैरवी के सफलता असम्भव है।
खैर इन सब बातों पर बाद में चर्चा होगी, पहले तुम यह फल खाओ। सायद तुम्हें भूख लगी हो। सच में, मुझे बहुत तेज की भूख लगी थी। मैंने फलों की टोकरी को हाथों में लिया और टूट पड़ा। खाते-खाते मेरे दिमाग में यही बात घूम रही थी कि तेजानन्द महाशय आकाश में भी गमन कर सकते हैं? क्या ऐसी विद्या सच में है इस दुनियॉ में? या सब कपोलकल्पित बात है।
खाने के बाद तेजानन्द जी से मेरा पहला प्रश्न यही था कि प्रभु! आप आकाश में भी गमन कर सकते हैं। यह कैसे सम्भव है? कृपया इस बारे में कुछ प्रकाश डालें ताकि मेरे मन के ऊपर छाये संशय के बादल छट जाएँ। BHAIRAVI TANTRA KATHA