शक्ति भक्ति और ज्ञान (SHAKTI-BHAKTI-GYAN) :- दोस्तों आज हम एक कहानी के बारे में जानेगें। यह कहानी शक्ति भक्ति और ज्ञान (SHAKTI-BHAKTI-GYAN) के महत्व पर आधारित है यदि मनुष्य के अन्दर भक्ति और ज्ञान का समावेश है तभी उसकी शक्ति सही दिशा में काम करेगी।
शक्ति भक्ति और ज्ञान (SHAKTI-BHAKTI-GYAN)- एक बार शक्ति उदास बैठी सोच रही थी। मैं शक्ति हूँ। फिर भी आनन्द रहित हूँ। ऐसा क्यों? इस विषय पर गहन चिंतन के बाद भी जब शक्ति को आनन्द प्राप्ति के रहस्य का पता नहीं चला तो वह भगवान के पास गयी।
SHAKTI BHAKTI GYAN |
शक्ति – हे आनन्द स्वरुप भगवान मेरे बिना वृक्ष के एक पत्ते मे भी गति असम्भव है। मेरे होते हुए ही आप सृष्टि के उत्पत्ति और संहार मे सक्षम हैं। आपमें मैं ही हूँ फलस्वरूप आप आनन्द स्वरूप हैं। परन्तु मैं एकल रूप मे उस आनन्द रूपी यान पर सवार नहीं हो पा रही हूँ। हे दयामय भगवान आप मुझ पर कृपा कर सही मार्ग से अवगत करायें ताकि मैं आनन्द रूपी यान पर सवार होकर स्वच्छंद विचरण कर सकूँ।
भगवान मुस्कुरा कर बोले – हे शक्ति तू एकल रूप से अधूरी है। और अधूरा हमेशा विनासकारी होता है। इसिलिए जब भी तू किसी ग्यानहीन मनुष्य के पास होती है तो तू उसके विनाश का कारण बनती और उसी के द्वारा तेरा विनाशकारी रूप विस्तृत हो जाता है। आनन्द वहीं हो सकता है जहाँ ग्यान हो। तू इतना समझ ले की तेरे होते हुये भी यदि ग्यान मेरे ह्रदय में विराजमान नहीं होता तो मैं कभी आनन्द स्वरूप नहीं हो सकता। अतः तू ग्यान से मिल तभी तेरी इच्छा पूर्ण हो सकती है।
शक्ति भगवान को प्रणाम कर ग्यान की खोज मे निकली। अथक प्रयत्न के बाद शक्ति को ग्यान का दर्शन हुआ। शक्ति ग्यान को आनंद मे मग्न देख मन ही मन अत्यंत खुश हुई। उसे लगा आनन्द अब मुझसे ज्यादा दूर नहीं। शक्ति ने.ग्यान का अभिवादन करने के बाद कहा- हे ग्यान देव आपको मैं कबसे खोज रही हूँ। हे प्रभु मुझपर कृपा कर मुझमें समाहित हो जाइये ताकि मै भी आनन्द युक्त हो सकूँ।
ग्यान ने कहा – हे देवी! मैं तभी आपमें समाहित हो सकता हूँ जब आप मे भगवती भक्ति की प्रादुर्भाव हो। बिना भक्ति के मैं किसी भी मनुष्य मे सत् रूप मे नहीं रह सकता। ठीक उसी प्रकार जैसे बिना जल के किसी तालाब मे मछली का जीवन नहीं हो सकता। आप भगवती भक्ति की उपासना करें। उनकी कृपा से मैं स्वयं आपमें प्रकट हो जाउँगा। इस प्रकार शक्ति ने भक्ति की उपासना की और ग्यान का प्रकाट्य हुआ। और शक्ति, भक्ति और ग्यान के मिलन से आनन्द की उत्पत्ति हुई।
जहाँ शक्ति है, भक्ति है, ग्यान है वहीं आनन्द है और वहीं धर्म अपने उत्कृष्ट रूप मे विराजमान है।
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