यदि हम बात करें कि क्या है पिरामिड– तो इसका सीधा सा उत्तर है, पिरामिड 63 डिग्री पर चार कोणों का बना हुआ नुकिला गुंबद है, जिसके निर्माण में किसी वस्तु विशेष की आवश्यकता नहीं होती, परन्तु निर्माण का स्थान एवं दिशा कोण का विशेष ध्यान रखा जाता है।
Piramid Yantra
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मिश्र में बने पिरामिड अपने चमत्कारी प्रभाव के कारण विश्व-विख्यात हैं। कोण विशेष के कारण पिरामिड में एक केन्द्रिय ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव मानव के मन-मस्तिष्क पर ही नहीं अपितु वस्तुओं पर भी देखने को मिलता है। इस विषय पर निरन्तर शोध एवं प्रयोग हो रहे हैं। मूलतः यह भारतीय वास्तुशास्त्र का ही एक भाग है।
ऋषि मुनियों ने इस पर शोध कर समाज के कल्याण के लिए लिपिबद्ध किया था। प्राचीन ग्रंथों में इसका उल्लेख देखने को मिलता है। पुरातत्व के ही उत्कृष्ट उदाहरण, हमारे मंदिरों के गुंबद, गर्भगृह आदि पिरामिड का ही प्रभाव रखते हैं।
ग्रामीण अंचल में खाद्य सामग्री रखने की कच्ची मिट्टी की टंकियां आदि इस बात को इंगित करती हैं कि पिरामिड के चमत्कारी प्रभाव से भारतीय भी अनादिकाल से परिचित थे, और इसके प्रभाव का वह दैनिक जीवन में भी उपयोग करते थे।
सही पिरामिड कोणों पर बने मंदिर में दर्शनार्थी को मंदिर की मूर्तियों में एक चमत्कारी आकर्षण देखने को मिलता है। व्यक्ति को वहां बैठने पर, ध्यान करने पर, प्रार्थना करने पर आत्मिक संतुष्टि मिलती है।
आधुनिक वास्तु रचना तंत्र अत्यधिक विकसित एवं उन्नत है फिर भी वह शत-प्रतिशत निर्दोष होगा, यह कहा नहीं जा सकता। वास्तु शिल्पी भव्य एवं सुन्दरतम वास्तु निर्माण कर सकता है परन्तु जाने-अनजाने में निर्मित दोष मिटाना उसके वश में नहीं।
किसी भी पूर्ण निर्मित भवन, कारखाने या फैक्टरी में तोड़-फोड़ कर दोष निवारण बतलाना बहुत खर्चीला एवं अव्यवहारिक होगा। उसके बदले यदि पंचधातु का पिरमिड यंत्र प्रयोग में लिया जाय तो निश्चित रूप से लाभ होगा।
दक्षिण भारत की आकाशगामी शिखर रचना ’पिरामिड’ के रूप में पूरे विश्व में फैली थी, जिसका वर्तमान में हमें मिश्र में अद्भुत रूपाकार के रूप में दर्शन होते हैं।
समूचा विश्व एक मिली-जुली ब्रह्मण्डीय ऊर्जा प्रतिकृतियों का प्रतिरूप है, इसलिए यह कहा जाता है कि जो ब्रह्माण्ड में है वही पिण्ड अर्थात हमारे शरीर में भी है। यथा- यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे।
वास्तु दोष कई कारणों से हो सकते हैं जैसे- दोषपूर्ण भूखंड, गलत दिशा में बने कमरे तथा उनके कोण आदि।
प्रकृति में व्याप्त चुंबकीय तरंग निर्माण में ग्रह तारों का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। इसलिए वास्तु निर्माण के समय इस सभी पहलुओं पर ध्यान देना उचित होता है।
पृथ्वी के उत्तरी सिरे पर धनात्मक चुंबकीय बल रहता है तो दक्षिण में ऋणात्मक चुंबकीय बल रहता है।
गृह निर्माण, गृहप्रवेश तथा निवास में इन दिशाओं की विशेषताओं का ध्यान रखा जाना अनिवार्य है। अस्पताल, श्मशान, बंजर भूमि आदि में निगेटिव प्रभाव रहने से उदासी, बेचैनी महशूस होती है।
मंदिर, प्राकृ तिक स्थान, उद्यान, धार्मिक व्यक्ति, फोटा, पुस्तकें आदि पर पाजिटिव प्रभाव रहता है जो प्रसन्नता, प्रेरणा, प्रगति का सूचक है।
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पिरामिड यंत्र से वास्तु दोष को करें दूर
वास्तु दोष को दूर करने हेतु पूजा-पाठ, हवन, यज्ञ आदि के अलावा मनुष्य यदि कोई ठोस उपाय करना चाहे तो उसके लिए पिरामिड एक अंतिम और प्रभावी उपाय हो सकता है।
वैदिक ज्यामितीय के अनुसार त्रिकोण में स्थिरता सूचक एवं आकाशगामी नुकीली शिखर रखना प्रगति दर्शक होती है। चार त्रिकोण मिलकर पिरामिड बनता है। जिससे स्थिरता एवं प्रगतिशीलता चौगुनी हो जाती है।
चौकोर धरातल पर बने त्रिकोण समूह का एकांक नौ होता है तथा उसका स्वामी मंगल है जो कि ताम्रवर्णी अग्नितत्व माना जाता है। अग्नि शब्द वैदिक अर्थ में ऊर्जा के रूप में प्रयुक्त होता है।
पिरामिड शिखर ब्रह्माण्डीय ऊर्जा विशेष को खींच लेते हैं। यह अंदर प्रविष्ट हुई ऊर्जा परिवर्तनों के नियमानुसार एक दूसरे से टकराकर केन्द्रित ऊर्जा का इलाका निर्माण करती हैं तथा उन्हें पांचों कोणों से, अंगों से बाहर फेंकती है।
फलस्वरूप यह ऊर्जा कहीं पर भी व्याप्त निगेटिव पावर को मिटाकर वहीं पाजीटिव प्रभाव को बढ़ा देती हैं। इसलिए पिरामिड में वस्तुएं सड़ती-गलती नहीं अपितु निखरती हैं।
पिरामिड की यह शास्त्रीय विशेषता प्रमाणित करती है कि यदि हम नौ पिरामिड आकृति को अपने व्यावसायिक संस्थान में, आफिस, घर में रखते हैं तो वहां निगेटिव पावर समाप्त होकर पाजिटिव पावर पढ़ जाती है। फलस्वरूप व्यक्ति में अधिक कार्यक्षमता आ जाती है।
पिरामिड के कार्य
पिरामिड ब्रह्माण्ड के सकारात्मक ऊर्जा को खींच कर अपने चारो तरफ उस ऊर्जा को फैलाता है जिससे घर में आपदायें एवं ग्रहों के दुष्प्रभाव शांत हो जाते हैं।
इसे उत्तर या पूर्व की दीवार पर टांगा भी जा सकता है या कार्नर स्टैंड पर भी रखा जा सकता है। नौ पिरामिडों के सुमेरु से निकलती पॉजीटिव ऊर्जा हमारे घर में अमन-चैन, सुख, स्वास्थ्य, समृद्धि, प्रसन्नता का प्रादुर्भाव करती है।
तनाव, दुर्घटनाएं, दुर्भावनाएं, दूषित हवाएं एवं अप्रसन्नता को हटाती हैं। कुछ पिरामिड एवं उनके कार्यों की विवेचना नीचे किया जा रहा है।
मंगल पिरामिड
यह आफिस में मानसिक कार्य करने वाले व्यक्तिओं के लिए प्रयोग किया जाता है, जिससे उन्हें मानसिक तनाव कम रहता है एवं मानसिक कार्यकुशलता पढ़ती है।
चांदी की पिरामिड अंगूठी
पिरामिड में समृद्धि कारक तत्व है एवं मुद्रिका उन्हीं तत्वों को पहनने वाले व्यक्ति में पहुंचा देती है जिससे व्यक्ति समृद्धिशाली बनने लगता है।
वृहद् पिरामिड
यह बड़े-बड़े कारखानों, शोरूम, व्यवासयिक भवन व काम्प्लेक्स, बड़े विशाल बंगले आदि में वास्तुदोष निवारण एवं धन-समृद्धि के लिए दीवार पर लगाया जाता है, अथवा कार्नर स्टैंड पर रखा जाता है।
मध्यम पिरामिड
यह दुकान, घर आदि में वास्तुदोष निवारण के लिए प्रयोग किया जाता है। यही पिरामिड रोग-निवारण के लिए पिरामिड जल बनाने के काम आता है।
नवग्रह पिरामिड
यह ग्रह दोष निवारण के लिए प्रयोग किया जाता है। ग्रह जनित दोष को दूर कर यह पिरामिड उन ग्रहों की शुभ रश्मियों को उस स्थान के आस-पास बिखेरता है।
रोग निवारण के लिए पिरामिड
मोटापा, मधुमेह, टॉन्सिल, चर्म रोग आदि के निवारण के लिए पिरामिड का बनाया पानी पियें। इसके लिए मध्यम पिरामिड काम में लिया जाता है।
लघु पिरामिड
ब्लड प्रेशर, हृदय रोग, मोटापा, मधुमेह, टॉन्सिल, चर्म रोग आदि के निवारण के लिए पिरामिड को कलाई पर बांधे। आंखों की बीमारी में गले के पीछे बांधें।
सम्मोहन आदि में सफलता के लिए ललाट पर बांधें। स्त्रियां गर्भाशय दोष, ऋतु स्त्राव आदि में नाभि के नीचे बांधे एवं पिरामिड का जल पियें।
कलाई पर बांधने वाला, ललाट पर बांधने वाला, गले में धारण करने वाला, कमल में बांधने वाला लघु पिरामिड एक ही है। एक लघु पिरामिड से भी सभी प्रयोग किये जा सकते हैं।
एकल पिरामिड
इस पिरामिड के सम्मुख मंत्र जाप करने से मंत्र जल्दी सिद्ध हो जाते हैं। उसका प्रभाव जल्दी ही दिखाई देने लगता है। पिरामिड द्धारा कामना पूर्ति के प्रयोग, प्रज्ञावर्धन के प्रयोग, विघ्न निवारण प्रयोग, धन प्राप्ति प्रयोग आदि किये जा सकते हैं। इसे मुख्य दरवाजे के बाहर बुरी हवा से बचाव के लिए भी प्रयोग किया जाता है।
लक्ष्मी पिरामिड
धन आज की आवश्यक मांग है। व्यक्ति कितना भी परिश्रम करे, यह अपनी कमी सदैव दर्शाता है। कितनी भी आय हो लेकिन धन की कमी सदैव महसूस होती है। क्योंकि पैसा कहीं रुकता नहीं।
पैसे के पहिये लगे हुए हैं। अतः वह एक हाथ से दूसरे हाथ घुमता रहता है। हम पैसे को खर्च होने से रोक तो नहीं सकते क्यांकि धन कमाया ही इसिलिए जाता है कि उसे सुख-सुविधाओं के लिए खर्च करें।
हम लक्ष्मी पिरामिड का प्रयोग कर धन को आकर्षित कर सकते हैं जिससे धन का प्रवाह अधिक हो।
राशि पिरामिड
आप जानते ही हैं कि किसी भी राशि का कोई न कोई स्वामी ग्रह होता है। वह ग्रह सबसे अधिक आपके जीवन को प्रभावित करता है। क्योंकि आपकी राशि अर्थात चन्द्रमा आपके मन-मस्तिष्क को नियंत्रित करता है।
शरीर की सभी क्रियाएं मन एवं मस्तिष्क द्वारा ही संचालित होती है। यदि आपको काम करने का मन नहीं है तो मस्तिष्क वह बात नहीं मानेगा और आप काम नहीं कर पायेंगे।
वहीं यदि मन चाहता है लेकिन मस्तिष्क नहीं चाहता तब भी आप वह कार्य नहीं कर पायेंगे।
अतः व्यक्ति के जीवन में राशि का महत्व सबसे अधिक है। उसी राशि के स्वामी ग्रह के शुभ प्रभावों को अधिक से अधिक उपयोग करने के लिए आप अपनी राशि के पिरामिड का प्रयोग करें।
इस पिरामिड को आप अपने कमरे में, अपने ऑफिस में, घर की आलमारी में पलंग पर अथवा स्टैंड पर रख सकते हैं।
कल्पवृक्ष पिरामिड
जिस प्रकार कल्पवृक्ष हमारे जीवन की सभी कामनाओं को पूरा करने में सक्षम है, उसी प्रकार कल्पवृक्ष पिरामिड भी हमारे जीवन की हर न्युनता का समाप्त कर देता है।
दुर्लभ यंत्रों के ग्रंथों में कल्पवृक्ष नामक यंत्र का उल्लेख है। अधिकतर जैन ग्रन्थों में इसका उल्लेख मिलता है। अपने जीवन में कामनाओं की पूर्ति के लिए आप भी इस कल्पवृक्ष पिरामिड का प्रयोग कर प्रत्यक्ष लाभ देख सकते हैं।
कामशक्ति वर्धक पिरामिड
कई दम्पत्ति पूर्ण यौनसुख प्राप्त नहीं कर पाने के कारण असंतुष्ट रहते हैं। कमी चाहे किसी में हो लेकिन इसका असर गृहस्थ जीवन पर अवश्य पड़ता है।
असंतुष्ट यौनसुख वाला व्यक्ति हीन भावनाओं से ग्रस्त हो जाता है। किसी कार्य में उसका मन नहीं लगता और कार्य क्षमता घटती चली जाती है।
आज के युग में व्यक्ति अत्यधिक तनाव ग्रस्त रहता है। इसी तनाव के कारण उसका गृहस्थ जीवन भी नरक बनता जाता है।
यदि जीवन में काम सुख ही पूर्ण नहीं मिला या महत्वहीन रहा हो और आप पूर्ण शारीरिक सुख नहीं भोग पा रहे हैं और इससे आपमें हीनता आ रही है तो कामशक्ति वर्धक पिरामिड को आप अपने शयन कक्ष में रखें। जहां तक हो सके तो इसे पलंग के आस-पास ही रखें। यदि संभव हो तो पलंग के ऊपर टांग दें।
आप निश्चित रूप से इस कामशक्ति वर्धक पिरामिड के प्रयोग से सुखी दाम्पत्य जीवन जीने लगेगें और आपकी सोई हुई उमंगे जागृत होकर पूर्ण होंगी।
कात्यायनी पिरामिड
प्रायः देख गया है कि माता-पिता में तनाव इसी बात का होता है कि उनकी संतान के विवाह में अड़चने आ रही है। विवाह की आयु होने पर भी विवाह नहीं हो रहा है। विवाह की बात चलने पर भी कहीं सगाई पक्की नहीं हो पा रही है अथव सगाई होकर भी शादी नहीं हो पा रही है।
इन सभी बाधाओं व अड़चनों के समाधानार्थ कात्यायनी पिरामिड का प्रयोग करना चाहिए। कात्यायनी पिरामिड का प्रयोग विधि-विधान पूर्वक करने पर मात्र 90 दिन के भीतर ही परिणाम दिखाई देने लगता हैं।
कालसर्प दोषनाशक पिरामिड
ज्योतिष में कई प्रकार के दुर्योगों में से एक है- कालसर्प योग। यह एक भयंकर पीड़ा दायक योग है। कालसर्प योग होने से व्यक्ति कभी सफल नहीं हो सकता है।
वह बार-बार तरक्की करता है लेकिन कुछ समय पश्चात वह व्यक्ति वहीं आ खड़ा ही जाता है जहां से उसने शुरुवात की थी। इस अवस्था में कालसर्प दोषनाश पिरामिड आपके समस्याओं को समाप्त कर सकता है।
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