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Kamala Kavach |
लक्ष्मीर्मे चाग्रतः पातु कमला पातु पृष्ठतः।
नारायणी शीर्षदेशे सर्व्वांगे श्रीस्वरूपिणी।।
लक्ष्मी मेरे अग्र भाग की रक्षा करें। कमला मेरी पीठ की रक्षा करें। नारायणी मेरे सिर की और श्रीस्वरूपिणी देवी मेरे सर्वांग की रक्षा करें।
रामपत्नी प्रत्यंगे तु सदावतु रमेश्वरी।
विशालाक्षी योगमाया कौमारी चक्रिणी तथा।।
जयदात्री धनदात्री पाशाक्षमालिनी शुभा।
हरिप्रिया हरिरामा जयंकरी महोदरी।।
कृष्णपरायणा देवी श्रीकृष्णमनमोहिनी।
जयंकरी महारौद्री सिद्धिदात्री शुभंकरी।।
सुखदा मोक्षदा देवी चित्रकूटनिवासिनी।
भयं हरेत्सदा पायाद् भवबन्धाद्विमोचयेत्।।
जो रामपत्नी अर्थात रामेश्वरी हैं, वह विशाल नेत्र वाली योगमाया लक्ष्मी मेरे सम्पूर्ण अंगों की रक्षा करें। वही कौमारी हैं, वही चक्रधारिणी हैं, वही जय देने वाली हैं, वही धनदाता हैं, वही पाशअक्षमालिनी हैं, वही कल्याणी हैं, वही हरिप्रिया हैं, वही हरिरामा हैं, वही जय देने वाली हैं, वही महोदरी हैं, वही कृष्ण परायणा हैं, वही श्रीकृष्ण मोहिनी हैं, वही महारौद्री हैं, वही सिद्धि देने वाली हैं, वही शुभ करने वाली हैं, वही सुख देने वाली हैं, वही मोक्ष देने वाली हैं। वही चित्रकूटनिवासिनी हैं। वही अनपायिनी लक्ष्मी देवी मेरा भय देर करें। सर्वदा मेरी रक्षा करें। मेरा भव बन्धन हटायें।
कवचन्तु महापुण्यं यः पठेत् भक्तिसंयुक्तः।
त्रिसन्ध्यमेकसन्ध्यम्वा मुच्यते सर्व्वसंकटात्।।
जो भक्तियुक्त होकर प्रतिदिन तीनों संध्याओं में या एक सन्ध्या में ही इस परम पवित्र लक्ष्मी कवच का पाठ करता है, वह सम्पूर्ण संकटों से छूट जाता है।
पठणं कवचस्यास्य पुत्रधनविवर्द्धनम्।
भीति विनाशनन्चैव त्रिषु लोकेषु कीर्त्तितम्।।
इस कवच के पाठ करने से पुत्र और धनादि की वृद्धि होती है। साधक का भय दूर होता है। इसका महात्म्य त्रिभुवन में प्रसिद्ध है।
भूर्ज्जपत्रे समालिख्य रोचनाकुंकुमेन तु।
धारणाद्गलदेशे च सर्वसिद्धिभविष्यति।।
भोज पत्र के ऊपर गोरोचन और कुंकुम से इसको लिखकर कण्ठ में धारण करने से सर्वकामना पूर्ण होती है।
अपुत्रो लभते पुत्रं धनार्थी लभते धनम्।
मोक्षार्थी माक्षमाप्नोति कवचस्य प्रसादतः।।
इस कवच के प्रसाद से अपुत्र को पुत्र लाभ होता है। धनार्थी को धन लाभ और मोक्षार्थी को मोक्ष प्राप्त होता है। इसमें सन्देह नहीं करना।
गर्भिणी लभते पुत्र वन्ध्या च गर्भिणी भवेत्।
धारयेद्यदि कण्ठे च अथवा वामबाहुके।।
यदि नारियां इसे कण्ठ अथवा वाम बाहु पर नियमपूर्वक धारण करें, तो गर्भवती उत्तम पुत्र को प्राप्त करती है और वन्ध्या स्त्री भी गर्भवती हो जाती है।
यः पठेन्नियतो भक्त्या स एव विष्णुवद्भवेत्।
मृत्युव्याधिनयं तस्य नास्ति किंचिन्महीतले।।
जो कोई नित्य भक्तिपूर्वक इस कवच का पाठ करता है, वह विष्णु की समानता को प्राप्त होता है। पृथ्वी में मृत्यु एवं व्याधि उस पर आक्रमण नहीं कर सकती।।
पठेद्वा पाठयेद्वापि श्रृणुयाच्छ्रावयेदपि।
सर्व्वपापविमुक्तस्तु लभते परमां गतिम्।।
जो पुरुष इस कवच को पढ़ते हैं या पढ़ाते हैं या स्वयं सुनते हैं या दूसरों को सुनाते हैं, वह सम्पूर्ण पापों से छूट कर परम गति को प्राप्त होते हैं।
विपदि संकटे घोरे तथा च गहरे वने।
राजद्वारे च नौकायां तथा च रणमध्यतः।
पठनद्धारणादस्य जयमाप्नोति निश्चितम्।।
विपद, घोर संकट, गहन वन, राजद्वार, नौका मार्ग, रणमध्य में इस कवच के पाठ अथवा धारण किए रखने से सर्वत्र जय प्राप्त होती है।
अपुत्रा च तथा वन्ध्या त्रिपक्षं श्रृणयादपि।
सुपुत्रं लभते सा तु दीर्घायुष्कं यशस्विनम्।।
बांझ स्त्री तीन पक्ष पर्यन्त यह कवच सुने, तो दीर्घायु महायशस्वी पुत्र को जन्म देती है। इसमें सन्देह नही करना।
श्रृणुयाद्यः शु़द्धबुद्ध्या द्वौ मासौ विप्रवक्त्रतः।
सर्व्वान्कामानवाप्नोति सर्व्वबन्धाद्विमुच्यते।।
जो पुरुष शुद्ध मन से दो महीने तक ब्राह्मण के मुख से यह कवच सुनता है, उसकी सम्पूर्ण कामना सिद्ध होती है। वह सर्व प्रकार के भवबन्धनों से छूट जाता है।
मृतवत्सा जीववत्सा त्रिमासं श्रृणुयाद्यदि।
रोगी रोगाद्विमुच्येत पठनान्मासमध्यतः।।
जिस स्त्री के पुत्र उत्पन्न होकर जीवित नहीं रहते हों अर्थात मृतवत्सा हो वह तीन महीने पर्यन्त इस कवच को भक्ति सहित सुने तो जीववत्सा होती है। रोगी पुरुष इसका पाठ करे तो एक महीने में ही रोग का नाश हो जाता है।
लिखित्वा भूर्जपत्रे च ह्यथवा ताडपात्रके।
स्थापयेन्नियतं गेहे नाग्निचौरभयं क्वचित्।।
जो पुरुष भोजपत्र या ताड़पत्र पर इस कवच को लिखकर घर मं स्थापित करता है, उसको अग्नि, चोर इत्यादि का भय नहीं रहता है।
श्रृणुयाद्धारयेद्वपि पठेद्वा पाठयेदपि।
यः पुमान्सततं तस्मिन्प्रसन्ना सर्व्व देवताः।।
जो पुरुष प्रतिदिन यह कवच सुनता है या पढ़ता है या दूसरे को पढ़ाता है या जो कोई इसको धारण करता है, उस पर देवता सदा सर्वदा सन्तुष्ट रहते हैं।
बहुना किमिहोक्तेन सर्व्वजीवेश्वरेश्वरी।
आद्या शक्तिः सदा लक्ष्मीर्भक्तानुग्रहकारिणी।
धारके पाठके चैव निश्चला निवसेद् ध्रुवम्।।
अधिक और क्या कहूं? जो पुरुष इस कवच का पाठ करते हैं या इसे लिखकर धारण करते हैं, आद्या शक्ति कमला (लक्ष्मी) अटल होकर उसके गृह में स्थित होती हैं।
इति श्री कमला कवचम् (Kamala Kavach) सम्पर्णं
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