नाभि आसन वस्तुतः नाभि के विचलन को दूर करने का आसन है। जब नाभि अपने स्थान से खिसक जाती है तो मनुष्य को विभिन्न प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
नाभि का अपने स्थान से खिसक जाना या विचलित हो जाना केवल शारीरिक रोगों को ही नहीं अपितु विभिन्न प्रकार के मानसिक रोगों जैसे दुश्चिंता, निराशा, अकारण भय लगना तथा चिड़चिड़ाहट को भी जन्म दे देती है।
नाभि आसन करने की विधि
नाभि आसन करने के लिए पीठ के बल लेटकर दोनां टागों को कुल्हों से मोड़कर घुटनों को धड़ के बाहर भूमि पर ले जायें। तत्पश्चात दोनों पैरों को ऊपर उठाकर एक जुटकर लें तथा कुहनियों से हाथों को मोड़कर दोनों पावों के अंगुठों को दृढ़ता से पकड़ें। इसके पश्चात सिर को ऊपर उठाकर हाथों की सहायता से पावों के अंगूठों का चुम्बन लेना चाहिए।
नाभि आसन करने के लिए नीचे दिये चित्र का अनुसरण करें-
![]() |
नाभि-आसन |
नाभि आसन करने के लाभ
इस आसन से विचलित नाभि केन्द्रित हो जाती है। अतएव इसे नाभि आसन का नाम दिया गया है। इससे पाचन संस्थान नियमित रूप से कार्य करता है, जो अच्छी पाचन क्रिया हेतु नितान्त आवश्यक है।
नाभि आसन मुख्यतः कमर, गर्दन, घुटनों तथा कुल्हों के लिए विशेष लाभप्रद होता है। साथ ही नाभि का खिसक जाना एवं नाभि के अन्य विकृतियों में भी नाभि आसन लाभप्रद है।
नाभि आसन में ध्यान
नाभि आसन करते समय नाभि स्थान पर ध्यान लगाना चाहिए।
नाभि आसन करते समय सावधानियां
- नाभि आसन करते समय यह ध्यान रखें कि आपका सिर उत्तर दिशा की तरफ न हो।
- इस आसन को धीरे-धीरे अभ्यास करें। शरीर के अंगों का संचालन ध्यान से एवं सतर्कता से करें।