धूमावती | DHUMAVATI :- धूमावती देवी अकेली ही दृष्टिगोचर होती हैं। इन्हें अलक्ष्मी कहते हैं क्योंकि यह धनहीन हैं। पति रहित होने के कारण विधवा कही जाती हैं, परन्तु मार्कण्डेय पुराणानुसार ये विधवा नहीं बल्कि कुमारी हैं।
एक बार युद्ध करते समय इन्होंने प्रतिज्ञा की थी कि जो भी मुझे युद्ध में परास्त कर देगा वही मेरा पति होगा और ऐसा अवसर कभी नहीं आया क्योंकि उन्हें कोई भी परास्त नहीं कर सका था।
DHUMAVATI
इनके विषय में एक और कथा पाई जाती है, जिसके अनुसार कैलाश पर्वत पर पार्वती अपने स्वामी शिव के साथ बैठी हुई थीं। उन्हें वहॉ बैठे हुए अत्यधिक समय व्यतीत हो चुका था और पार्वती को भूख लग रही थी। अतः पार्वती ने शिव से क्षुधा शान्ति के लिए अनुरोध किया परन्तु शिव जी मौन रहे। (धूमावती | DHUMAVATI)
पार्वती द्वारा बार-बार शिव से अनुरोध करने के उपरांत भी जब शिव मौन रहे तो भगवती क्रोधित हो उठीं और शिव को ही उठाकर निगल लिया। ऐसा करने पर उनके देह से धूम्र राशि निकलने लगी, अतः भगवती को धूम्रा अथवा धूमावती कहा जाता है।
जो साधक इन्हें मानते, पूजते और इनका ध्यान करते हैं, उनके ऊपर दुष्ट अभिचार इत्यादि का प्रभाव कभी नहीं होता है। हिमाचल प्रदेश के कांगड़ा जिला में, इन देवी का सिद्धपीठ “श्रीज्वालामुखी” नामक स्थान पर है। (धूमावती | DHUMAVATI)
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धूमावती देवी का ध्यान – DHUMAVATI DEVI KA DHYAN
विवर्णा चंचला रुष्टा दीर्घा च मलिनाम्बरा।
विवर्णकुन्तला रूक्षा विधवा विरलाद्विजा।।
काकध्वजरथारूढ़ा विलम्बितपयोधरा।
सूर्यहस्तातिरूक्षाक्षी धृतहस्ता वरन्विता।।
प्रवृद्धघोणा तु भृशं कुटिला कुटिलेक्षणा।
क्षुत्पिपासाद्दिता नित्यं भयदा कलहप्रियां।।
धूमावती देवी विवर्ण, चंचला, रुष्टा और दीर्घ अंग वाली हैं। इनके पहिनने के वस्त्र मलिन, केश विवर्ण्र और रुक्ष हैं। सम्पूर्ण दांत छीदे-छीदे और स्तन लम्बे हैं। यह विधवा और काकध्वजा वाले रथ पर आरूढ़ हैं। देवी के दोनों नेत्र रुक्ष हैं।
इनके एक हाथ में सूर्प और दूसरे हाथ में वरमुद्रा है। इनकी नासिका बड़ी और देह तथा नेत्र कुटिल हैं। यह भूख और प्यास से आतुर हैं। इसके अतिरिक्त यह भयंकर मुख वाली और कलह में तत्पर हैं। (धूमावती | DHUMAVATI)
धूमावती मंत्र – DHUMAVATI MANTRA
धूं धूं धूमावती स्वाहा।
धूमावती स्तोत्र – DHUMAVATI STOTRA
भद्रकाली महाकाली डमरूवाद्यकारिणी।
स्फारितनयना चैव टकटंकितहासिनी।।
धूमावती जगत्कर्ती शूर्पहस्ता तथैव च।
अष्टनामात्मकं स्तोत्रं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तं।।
तस्य सर्व्वाथसिद्धिः स्यात्सत्यं सत्यं हि पार्वती।।
भद्रकाली, महाकाली, डमरू का वादन करने वाली, खुले हुए नेत्र वाली, टंक टंक करके हंसने वाली, धूमावती जगत्कर्त्री, हाथ में सूप लिए हुए हैं। यह धूमावती का अष्टनामात्मक स्तोत्र पढ़ने से सर्वार्थ की सिद्धि होती है।
धूमावती कवच – DHUMAVATI KAVACH
धूमावती मुखं पातु धूं धूं स्वाहा स्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्यसुंदरी।।
धूं धूं स्वाहा स्वरूपिणी धूमावती मेरे मुख की और नित्य सुन्दरी, मालिनी और विजया मेरे ललाट की रक्षा करें।
कल्याणी हृदयं पातु हसरीं नाभिदेशके।
सर्व्वांग, पातु देवेसी निष्कला भगमालिनी।।
कल्याणी मेरे हृदय की, हसरीं मेरी नाभि की और निष्कला भगमालिनी देवी मेरे सर्वांग की रक्षा करें।
सुपुण्यं कवचं दिव्यं यः पठेद्भक्तिसंयुक्तः।
सौभाग्यमतुलं प्राप्त चांते देवीपुरं यथौ।।
इस पवित्र दिव्य कवच का भक्ति पूर्वक पाठ करने मात्र से इस लोक में अतुल सुख एवं भोग की प्राप्ति होती है, और अन्त में साधक देवी के धाम को प्राप्त हो जाता है। (धूमावती | DHUMAVATI)
Das Mahavidya Mantra काली, तारा महाविद्या, षोडशी भुवनेश्वरी। भैरवी, छिन्नमस्तिका च विद्या धूमावती तथा।। बगला सिद्धविद्या च मातंगी कमलात्मिका। एता दश-महाविद्याः सिद्ध-विद्याः प्रकीर्तिताः दस महाविद्या…