मातंगी (MATANGI) : एक बार मतंग नामक योगी ने सृष्टि के प्रत्येक जीव को अपने वशीभूत करने की अभिलाषा से प्रेरित होकर कदम्ब वन प्रान्त में एक विशेष तप किया, जिसके प्रभाव से उस योगी का आकर्षण चारो ओर फैल गया।
इसी श्रृंखला के अंतर्गत देवी के नेत्रों से एक दिव्य तेज पुंज निकला जो कि एक स्त्री के रूप में परिवर्तित हो गया। इन देवी का वर्ण श्याम था। इन्हें मातंगी नाम से जाना गया। इनकी सेवा, उपासना करने से निश्चित ही वाणी सिद्धि होती है।
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MATANGI |
मातंगी का नाम उच्छिष्ट चाण्डालिनी है। यह दक्षिण तथा पश्चिमाम्नाय की देवी हैं। राजमातंगी, सुमुखी, वश्यमातंगी, कर्णमातंगी इनके अन्य नाम हैं। इनका रूप श्यामल है तथा इनकी ख्याति राजमातंगिनी के नाम से हुई है।
ब्रह्मयामल तंत्र के अनुसार इन्हें मतंग मुनि की कन्या बताया गया है। ”प्राणतोषिणी” में यह विवरण इस प्रकार दिया गया है-
अथ मातंगिनी वक्ष्ये क्रूरभूतभयंकरीम्।
पुरा कदम्बविपिने नानावृक्षसमाकुले।।
वश्यार्थ सर्वभूतानां मतंगो नामतो मुनिः।
शतवर्षसहस्राणि तपोऽतप्यत सन्ततम्।।
तत्र तेजः समुत्पन्नं सुन्दरीनेत्रतः शुभे।
तजोराशिरभत्तत्र स्वयं श्रीकालिकाम्बिका।
श्यामलं रूपमास्थाय राजमातंगिनी भवेत्।।
इसका तात्पर्य है कि कालिका, त्रिपुरा तथा मातंगी में कोई भेद नहीं। इस रूप की उपासना का लक्ष्य वाक् सिद्धि है। अतः वाणीदात्री के रूप में ही मातंगी (MATANGI) की उपासना अभीष्ट है।
मातंगी (MATANGI) मंत्र
ऊँ ह्रीं क्लीं हूं मातंग्यै फट् स्वाहा।
मातंगी (MATANGI) ध्यान
श्यामांगीं शशिशेखरां त्रिनयनां रत्नसिंहासनस्थिताम्।
वेदैः बाहुदण्डैरसिखेटकपाशांकुशधराम्।।
अर्थ- मातंगी देवी श्याम वर्ण, अर्द्ध चन्द्रधारिणी और त्रिनेत्रा हैं। यह चार हाथ में खंग, खेटक, पाश और अंकुश धारण करके रत्न निर्मित सिंहासन पर विराजमान हैं।
मातंगी (MATANGI) देवी की साधना आराधना से साधक को वाणी सिद्ध हो जाता है और साधक का कथन सत्य होने लगता है। वैसे तो दस महाविद्याओं में कोई भेद नहीं हैं, और ये महादेवियाँ अपने साधक को हर प्रकार के इच्छित फल प्रदान करने में सक्षम हैं।
अतः साधकगण को अपने सच्चे भक्ति के द्वारा देवी का निःश्वार्थ भाव से सेवा करके मोक्ष प्राप्ति का भागी होना चाहिए।
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