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पश्चिमोत्तानासन करने की विधि और लाभ

Author: Tantrik Rahasya | On:16th Jan, 2021| Comments: 0

पश्चिमोत्तानासन को प्राणायाम के साथ करने से यह शारीरिक स्वास्थ्य हेतु उत्तम आसन है। यौगिक दृष्टि से देखा जाए तो यह आसन सभी आसनों में सर्वश्रेष्ठ है क्योंकि इस आसन में यदि व्यक्ति आसन करते समय रीढ़ की हड्डी के नीचले सिरे से ऊपर की ओर बल देते हुए ध्यान लगाये तो अधोमुखी ऊर्जा उर्ध्वमुखी होकर ऊपर की ओर बहने लगती है।

Table of Contents

  • पश्चिमोत्तानासन करने की विधि
    • पश्चिमोत्तानासन का महत्व
      • पश्चिमोत्तानासन करते समय सावधानियां
  • बद्ध पद्मासन करने की विधि एवं इसके अद्भुत लाभ
  • दुर्गा साधना मंत्र |  एक बार अवश्य करें- जिंदगी बदल जायेगी
  • शीघ्रपतन का इलाज – जो आपकी मर्दानगी को उचाईयों तक ले जायेगा

पश्चिमोत्तानासन करने की विधि

सर्वप्रथम दोनों पैरों को सामने की ओर भूमि पर सीधा फैलाना चाहिए। एड़ियों एवं अंगूठों को आपस में मिला लेना चाहिए। दोनों हाथों कों ऊपर उठाते हुए फेफड़े में पूरी तरह सांस भरें तत्पश्चात रेचक करते हुए (सांस बाहर निकालते हुए) शरीर को कमर से सामने की ओर झुकाते हुए दोनों हाथों को पैरों की ओर बढ़ा कर उनसे पैरों के अंगूठों को पकड़ें। किन्तु ऐसा करते समय ध्यान रहे कि दोनों पांव भूमि से ऊपर न उठें। सिर घुटनों से संलग्न होना चाहिए। नीचे दर्शाए गये चित्र का अनुसरण करें।

पश्चिमोत्तानासन करने की विधि और लाभ
Paschhimottanasana

पश्चिमोत्तानासन का महत्व

इस आसन के साथ प्राणायाम करने अर्थात प्रश्वास के साथ सिर (मस्तक) को घुटनों से संलग्न करने से प्राण रूपी वायु पश्चिमवाही होकर सुषुम्ना नाड़ी से बहने लगता है, जिससे जठराग्नि में वृद्धि होती है।

पश्चिमोत्तानासन करने से पेट के सारे रोग समाप्त हो जाते हैं। जठराग्नि प्रदिप्त होने के कारण पाचन क्रिया सुचारु रूप से चलती है तथा व्यक्ति को आरोग्य बनाती है। इस आसन से कमर का बहुत अच्छा व्यायाम हो जाता है, फलस्वरूप कमर में लचीलापन आ जाता है। शारीरिक स्वास्थ्य हेतु यह आसन सर्वोत्तम है।

पश्चिमोत्तानासन से शरीर के पिछले भाग की प्रत्येक पेशी मजबूत एवं लचीली होती है। घुटनों के पृष्ठ भाग की पेशियां भी प्रभावित होती हैं। रीढ़ की हड्डी में लचीलापन आता है। कमर दर्द, साइटिका, मोटापा आदि दूर करने के लिए यह आसन अधिक उपयुक्त है। इसका प्रभाव पाचन तंत्र, यकृत, प्लीहा, फेफड़े पर भी उत्तम होता है। मधुमेह, गुर्दे के रोग, नजला-जुकाम, स्वप्नदोष, शीघ्रपतन, मूत्र विकार, श्वेत प्रदर, मासिक धर्म की अनियमितता को दूर करने के लिए यह एक रामबाण आसन है।

पश्चिमोत्तानासन करते समय सावधानियां

  • पश्चिमोत्तानासन आसन प्रातःकाल पश्चिम दिशा एवं सायंकाल पूर्व दिशा की ओर मुंह करके करना चाहिए।
  • यह एक कठिन आसन है। अतः प्रत्येक अंग का संचालन सावधानीपूर्वक एवं धीरे-धीरे करना चाहिए।
  • इसके अभ्यास में कई महिने लग सकते हैं। अतः धैर्य नहीं खोना चाहिए।
  • इस आसन को करते समय ढीला-ढाला वस्त्र ग्रहण करें। यदि आप लंगोट बांधते हैं तो इस आसन को करते समय लंगोंट को ढीला रखें।
  • महिलाएं कोई भी कसा हुआ अधोवस्त्र पहन कर पश्चिमोत्तानासन को न करें।

बद्ध पद्मासन करने की विधि एवं इसके अद्भुत लाभ

दुर्गा साधना मंत्र |  एक बार अवश्य करें- जिंदगी बदल जायेगी

शीघ्रपतन का इलाज – जो आपकी मर्दानगी को उचाईयों तक ले जायेगा

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