हलासन एक उत्तम कोटि का आसन है। यह आसन शारीरिक व्यायाम के अंतर्गंत गिना जाता है। इस आसन में शरीर की मुद्रा ’हल’ के समान हो जाती है, इसलिए इस मुद्रा को हलासन कहा जाता है।
यह आसन थोड़ा सा कठिन आसन है। अतः इसका धीरे-धीरे अभ्यास आवश्यक है। पूर्ण अभ्यास हो जाने पर यह आसन शारीरिक स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण है।
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हलासन करने की विधि
हलासन करने के लिए भूमि पर दरी या कम्बल बिछाकर पीठ के बल लेटकर दोनों हाथों को बगल में रखना चाहिए। पावों को धीरे-धीरे 30 डिग्री के कोणों तक उठाकर रुकें। पुनः समकोण तक ले जाएं।
रेचन करते हुए शरीर की वायु बाहर निकालकर पैरों को धीरे-धीरे पीछे की ओर ले जाकर भूमि से स्पर्श कराने का प्रयास करना चाहिए। बार-बार अभ्यास करने से ऐसा करना सरल हो जाता है। इस आसन में सांसों को सामान्य रखें।
जब आप हलासन की मुद्रा में होते हैं तो पैरों की दिशा और होथों की दिशा एक दूसरे के विपरित हो जाती है और एकदम हल के समान दिखती है। इस आसन के बाद धनुरासन अवश्य करना चाहिए।
हलासन करने के लिए नीचे दिये चित्र का अनुसरण करें-
हलासन |
हलासन करने के लाभ
हलासन करने से आंतों का प्रदूषण समाप्त हो जाता है एवं पाचनशक्ति में वृद्धि होती है। रक्त के समस्त विकार दूर हो जाते हैं। मेरुदण्ड में दृढ़ता के साथ लचीलापन भी आता है। दृष्टि शक्ति अक्षुण्ण बनी रहती है।
इसके अतिरिक्त हलासन, हार्निया, मधुमेह, यकृत रोग एवं पेट के अन्य रोगों में बहुत लाभदायक है।
हलासन करते समय सावधानियां
हलासन करते समय निम्न सावधानियां बरतनी चाहिए।
- हलासन करते समय सिर उत्तर दिशा की तरफ न रखें।
- यह एक कठिन आसन है। अतः अभ्यास में धैर्य रखें और प्रत्येक मुद्रा पर अभ्यास के द्वारा धीरे-धीरे सफलता प्राप्त करें।
हलासन में ध्यान
हलासन करते समय रीढ़ की हड्डी के दोनों तरफ पीठ के कुल्हों के बीच ध्यान लगाया जाता है। इस आसन में ललाट के मध्य भी ध्यान लगाया जाता है, किन्तु गृहस्थ लोग ललाट के मध्य बिन्दु पर कुछ ही सेकण्ड ध्यान लगायें।
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