भारत की जो मूल संस्कृति है, उसे ही हम भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति कहते हैं। अपने उदात्त गुणों के कारण ही यह संस्कृति विश्व की सबसे पुरानी और कालजयी संस्कृति है।
विश्व में न जाने कितनी संस्कृतियों का उदय और अस्त हुआ, लेकिन हमारी यह संस्कृति अजर-अमर है। यद्यपि हमारे संस्कृति और धर्म पर कुछ पाश्चात्य विद्वान, व्यापक ज्ञान और समझ न होने के कारण, हंसते भी हैं जो कि उनके मूर्खता की पराकाष्ठा का द्योतक है।
भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति पर उनका कहना है कि हिन्दू धर्म का न तो कोई एक प्रमुख ग्रंथ है और न ही कोई एक प्रमुख धार्मिक नेता।
जिस प्रकार हजरत मुहम्मद ने इस्लाम धर्म की तथा ईसा ने ईसाई धर्म की स्थापना की ठीक उसी प्रकार हिन्दू धर्म की स्थापना किसी एक व्यक्ति ने नहीं की। इस तरह के मूर्खतापूर्ण विचार प्रकट करना उनकी अज्ञानता के अतिरिक्त कुछ भी नहीं है। यह भी पढ़ें- जानें श्रीराम के बारे में कुछ रोचक तथ्य
भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति की विशालता है
दरअसल, हिन्दू धर्म न तो किसी एक धार्मिक नेता से आया है और न ही एक सम्प्रदाय से बल्कि इसमें भिन्न-भिन्न संप्रदायों के मत एवं विश्वास समाहित है। भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति महासागर से भी विस्तृत और गहरा है।
हिन्दू धर्म की रीढ़ वेद, पुराण, आरण्यक, ब्राह्मण, उपनिषद, रामायण, महाभारत एवं अनेकों धर्मशास्त्र हैं जिनकी रचना यहीं भारत में हुई और ये रचनाएं किसी एक व्यक्ति द्वारा किसी एक काल खण्ड में नहीं अपितु हजारो साल के मनन-चिंतन के फलस्वरूप हुआ है।
भारत में अनादि काल से अनेक जातियों का आगमन होता रहा है, जैसे- आस्ट्रिक, नीग्रो, कोल, किरात, आग्नेय, द्रविड़, आर्य, शक, हूण, मंगोल, मुसलमान, अंग्रेज आदि। इनमें सबसे प्रधान आर्य एवं द्रविड़ जातियां रहीं।
यहां के 15 प्रतिशत मुसलमान आर्य और द्रविड़ मूल के ही हैं। इनमें से बहुत सारी जातियों का अब पता भी नहीं है। ये जातियां भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति में ही रच-पच गयीं।
भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति का सिंधुघाटी की सभ्यता से सम्बन्ध
सिंधुघाटी की सभ्यता के उत्खनन के बाद बहुत से विद्वानों ने यह मत निर्धारित किया कि भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति द्रविड़ों की सभ्यता है। परन्तु इसमें पूरी तरह सच्चाई नहीं दिखाई देती है। ऐसा इसलिए कि बाद के विद्वान काफी छान-बीन करने के उपरांत इसे आर्यों की सभ्यता बता रहे हैं।
इसी तरह इस बात को भी लेकर मतभेद है कि आर्य बाहर से आए या वह यहीं के मूल निवासी थे या वे प्रतिकूल परिस्थिति के कारण बाहर चले गये, क्योंकि भारत भूमि पर एक बार महान प्रलय उपस्थित हुआ था। (सभी धर्म ग्रंथों में जल-प्रलय या जल प्लावन का वर्णन है) और फिर अनुकूल परिस्थिति आने पर वे आ गये।
इस सम्बन्ध में कई प्रकार के मत-मतांतर देखने व सुनने को मिलता है परंतु सत्य क्या है, यह स्पष्ट नहीं है। लेकिन इतना तो सत्य है कि भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति में कई जातियों का योगदान है।
दूसरे शब्दों में यह भी कह सकते हैं कि इस संस्कृति ने भिन्न-भिन्न जातियों की संस्कृतियों को अपने में पूरी तरह समाहित कर लिया। यह भी पढ़ें- योग साधना
भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति की महानता
भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति पर अनादि काल से ही हमले होते रहें हैं और अभी भी हो रहे हैं। लेकिन यह संस्कृति पर्वत की तरह अचल है। इस पर्वत पर नये वृक्ष लगते और सूखते रहते हैं।
यह संस्कृति इतनी उदार और महान है कि दोस्त और दुश्मन में फर्क किये बिना यह सभी को अपने शरण में ले लेती है। संसार के हर जीव और हर धर्म को बराबर का दर्जा देकर उसे बराबर स्थान और उसके सदा सुखी रहने एवं उन्नति की कामना करती है। यथा-
सर्वे भवन्तु सुखिनः, सर्वे सन्तु निरामयाः।
सर्वे भद्राणी पश्यन्तु, मा कश्चिद दुख भागभवेत्।।
अर्थात सभी सुखी रहें, सभी निरोग रहें, सभी अच्छे दिखें, इस संसार में किसी को भी कोई दुख दर्द ना हो।
प्रत्येक भारतीय को यह गर्व होना चाहिए कि उसने भारत में जन्म लिया और भारतीय संस्कृति या हिन्दू संस्कृति अथवा आर्य संस्कृति उसकी पुरातन विरासत है।
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