जनेऊ धारण विधि-यज्ञोपवीत संस्कार की 15 महत्वपूर्ण बातें

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जनेऊ|यज्ञोपवीत

जनेऊ को यज्ञोपवीत या ब्रह्मसूत्र भी कहा जाता है। यज्ञोपवीत सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर अपने जीवन में आमूलचूल परिवर्तन के संकल्प का प्रतीक है। इसके साथ ही गायत्री मंत्र की दीक्षा भी दी जाती है।

नोट- इस लेख में ब्रह्मसूत्र शब्द का प्रयोग बार-बार किया गया है. ब्रह्मसूत्र ही यज्ञोपवीत या जनेऊ है. इसमें कोई भेद न समझें

दीक्षा और यज्ञोपवीत मिलकर द्विजत्व का संस्कार पूरा करते हैं। द्विज का अर्थ होता है, दूसरा जन्म। अर्थात व्यक्ति का यज्ञोपवीत संस्कार पूर्ण हो जाने के बाद उसका दूसरा जन्म माना जाता है।

शास्त्रों में उल्लेखित है कि जन्म से सभी शूद्र होते हैं। यथा- जन्मना जायते शूद्रः संस्काराद् द्विज उच्यते।। अर्थात् जन्म से सभी शूद्र होते हैं, संस्कार ही मनुष्य को द्विज अर्थात ब्राह्मण बनाती है।

जन्म से मनुष्य एक प्रकार का पशु है। उसमें स्वार्थपरता की वृत्ति अन्य जीव-जन्तुओं जैसी ही होती है। परन्तु उत्कृष्ट आदर्शवादी मान्यताओं द्वारा वह मनुष्य बनता है। यह भी पढ़ें- तंत्र क्या है ? प्राचीन तंत्र विद्या के 10 गोपनीय रहस्यमयी बातें

जब मनुष्य की यह आस्था बन जाती है कि उसे इन्सान की तरह ऊँचा जीवन जीना है और उसी आधार पर वह अपना कार्यपद्धति निर्धारित करता है। तभी कहा जा सकता है कि इसने पशु योनि छोड़कर मनुष्य योनि में प्रवेश किया।

स्वार्थ की संकीर्णता से निकलकर परमार्थ की महानता में प्रवेश करना ही वास्तविक मनुष्य जन्म में प्रवेश करना है। इसी को द्विजत्व अर्थात दूसरा जन्म कहते हैं। अतः तीन लड़ों का जनेऊ या यज्ञोपवीत अथवा ब्रह्मसूत्र हमें हमारे व्रत, आदर्श एवं हमारे लक्ष्यों को आजीवन स्मरण रखने हेतु है।

जनेऊ या यज्ञोपवीत अथवा ब्रह्मसूत्र धारण विधि

जनेऊ या यज्ञोपवीत धागे की लड़ी मात्र नहीं है अपितु यह साक्षात् देव प्रतिमा है। ब्रह्मसूत्र धारण करने से पहले इसकी शुद्धि तथा उसमें प्राण-प्रतिष्ठा का उपक्रम किया जाता है। यह भी पढ़ें- तांत्रिक वस्तुएं  : व्यवसाय बंधन मुक्ति का बेजोड़ समाधान

तीन लड़ों का जनेऊ बना लें या बाजार से खरीद लें। याद रखें कि एक ब्रह्मसूत्र  में तीन लड़ें होती हैं और प्रत्येक लड़ धागे की तीन तन्तुओं से मिलकर बना होता है। आप चाहे तो नौ लड़ों का भी ब्रह्मसूत्र लेकर एक लड़ को एक तन्तु की भावना कर सकते हैं। इस सम्बन्ध में अपने गुरु से ज्ञान लें।

अब जनेऊ को शुद्ध जल से या यदि सम्भव हो तो गंगा जल से धो लें जिससे उसपर पड़े हुए स्पर्श संस्कार दूर हो जाए। इसके बाद उसको दोनों हाथों के बीच रखकर 10 बार गायत्री मंत्र का मानसिक या उपांशु जप करें। इतना करने से जनेऊ पवित्र एवं अभिमंत्रित हो जाता है।

इसके बाद किसी प्लेट में या पीपल के पत्ते पर पुष्प की कुछ पंखुड़ियां छिड़कर उसपर ब्रह्मसूत्र को प्रेम और आदर सहित स्थापित कर दें। तत्पश्चात निम्नलिखित एक-एक मंत्र पढ़ते हुए चावल अथवा एक-एक पुष्प को यज्ञोपवीत पर छोड़ता जाए। इसप्रकार से एक-एक धागे एवं ग्रन्थियों में देवताओं का आवाहन करें-

जनेऊ|यज्ञोपवीत के तंतुओं में देवताओं का आवाहन

प्रथमतंतौ – ऊँ कारं आवाहयामि
द्वितीयतंतौ – ऊँ अग्नीं आवाहयामि
तृतीयतंतौ – ऊँ सर्पानं आवाहयामि
चतुर्थतंतौ – ऊँ सोमं आवाहयामि
पंचमतंतौ – ऊँ पितृणां आवाहयामि
षष्ठतंतौ – ऊँ प्रजापतिं आवाहयामि
सप्तमतंतौ – ऊँ अनिलं आवाहयामि
अष्ठमतंतौ – ऊँ सूर्यं आवाहयामि
नवमतंतौ – ऊँ विश्वानदेवानं आवाहयामि

जनेऊ/यज्ञोपवीत के ग्रन्थिओं में देवताओं का आवाहन

प्रथम ग्रन्थौ – ऊँ ब्रह्मणे नमः ब्रह्माणमावाहयामि
द्वितीय ग्रन्थौ – ऊँ विष्णवे नमः विष्णुमावाहयामि
तृतीय ग्रन्थौ – ऊँ रुद्राय नमः रुद्रमावाहयामि

इस प्रकार यज्ञोपवीत में समस्त देवताओं का आवाहन करके ग्रन्थि पर कुमकुम एवं पुष्पाक्षत चढ़ाते हुए कहे कि- आवाहित देवतायाः यथा स्थानं न्यासामिः

इसके बाद आवाहित देवताओं की गंध, अक्षत से पंचोपचार पूजा करें। तत्पश्चात निम्नलिखित मंत्र से हाथ में जल लेकर ब्रह्मसूत्र धारण का विनियोग करें।

जनेऊ|यज्ञोपवीत विनियोग :- ऊँ यज्ञोपवीतमिति मंत्रस्य परमेष्ठी ऋषिः, लिंगोक्ता देवताः, त्रिष्टुपछन्दः यज्ञोपवीत धारणे विनियोगः।।

तदन्तर जनेऊ धोकर जनेऊ को दोनों हाथों में लेकर पुनः 10 बार गायत्री मंत्र पढकर अभिमंत्रित करें और निम्न मंत्र बोलते हुए ब्रह्मसूत्र धारण करें-

जनेऊ/यज्ञोपवीत धारण मंत्र

ऊँ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

पुराना|जीर्ण जनेऊ को सिर पर पीठ की ओर से निकालते हुए निम्न श्लोक का उच्चारण करें-

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्।।

इसके बाद नवीन ब्रह्मसूत्र को दाएं हाथ के अंगुठे पर लपेट कर ज्ञानमुद्रा बनाकर हृदय के ऊपर रखकर यथाशक्ति गायत्री मंत्र का जप करें और ऊँ तत्सत् श्रीब्रह्मणार्पणमस्तु बोलकर भगवान को अर्पित कर दें। तत्पश्चात भगवान का स्मरण करें।

इस प्रकार जनेऊ को पूर्ण पूजन के साथ संस्कारित करके धारण करना चाहिए। अब कुछ ऐसे प्रश्नों पर चर्चा करेंगे जो अक्सर लोगों द्वारा पूछा जाता है। पूरा लेख पढ़ें जिससे कि जनेऊ या यज्ञोपवीत अथवा ब्रह्मसूत्र से सम्बन्धित आपके प्रत्येक शंका का समाधान हो सके।

जनेऊ|यज्ञोपवीत संस्कार विधि

ऊपर दिये गये समग्र विवरण में जनेऊ|यज्ञोपवीत संस्कार विधि का ही वर्णन किया गया है। लोग सुविधा के लिए साल में एक बार श्रावणी में ही ब्रह्मसूत्र को अभिमंत्रित करके रख लेते हैं।

पुनः जब जनेऊ|यज्ञोपवीत धारण की आवश्यकता होती है तो संस्कार विधान की आवश्यकता नहीं है। सीधे धारण विधि से उसे धारण कर लेते हैं। यदि श्रावणी का ब्रह्मसूत्र न हो तो ऊपर बताये विधि से संस्कारित कर लेते हैं।

जीर्ण|पुराने जनेऊ का क्या करें?

जीर्ण|पुराने जनेऊ को शुद्ध भुमि में दबा देना चाहिए अथवा किसी नदी या तालाब में प्रवाहित कर देना चाहिए या ब्रह्मसूत्र को पीपल, गूलर, बड़, छोंकर जैसे पवित्र वृक्ष पर विसर्जित कर देना चाहिए।

जनेऊ|यज्ञोपवीत किस तरह पहना जाता है?

जनेऊ|यज्ञोपवीत किस तरह पहना जाता है– जनेऊ को बाएं कन्धे पर इस प्रकार धारण करना चाहिए कि यह बाएं पार्श्व की ओर न रहे, अपितु ब्रह्मसूत्र का एक छोर बाएं कन्धे पर और दूसरा छोर कमर पर दाहिने पार्श्व की ओर रहे। लम्बाई इतना हो कि हाथ लम्बा करने पर उसकी लम्बाई बराबर बैठे।

याद रहे की ब्रह्मसूत्र को ऊपर दिए गए चित्र के तरह हाथों में पकड़ कर ही धारण करें।

जनेऊ|यज्ञोपवीत का मतलब

जनेऊ या यज्ञोपवीत को ब्रह्मसूत्र भी कहा जाता है। शास्त्र वचन के अनुसार बिना ब्रह्मसूत्र धारण किये जप-तप, वेद पाठ, यज्ञ, अनुष्ठान का अधिकार नहीं मिलता है। यह भी पढ़ें- वह रहस्यमयी भैरवी – भाग- 1 | BHAIRAVI TANTRA KATHA

ब्रह्मसूत्र में तीन तार होते हैं जो गायत्री के तीन चरणों, प्रथम- तत्सवितुर्वरेण्यं, द्वितीय- भर्गोदेवस्य धिमहि एवं तृतीय- धियो योनः प्रचोदयात का प्रतीक है।

ब्रह्मसूत्र में तीन प्रथम ग्रन्थिया और एक ब्रह्म ग्रन्थि होती है। जो क्रमशः भूः भुवः स्वः और ब्रह्म ग्रन्धि ऊँ का प्रतीक होता है।

जनेऊ|यज्ञोपवीत में कितने धागे होते हैं?

एक जनेऊ में तीन लड़ें होती हैं। प्रत्येक लड़ कच्चे सूत के तीन तारों से मिलकर बना होता है। इस प्रकार एक यज्ञोपवीत में 9 तार होते हैं। धागे की इन नौ तारों में नौ देवताओं का आवाह्न करके उनको स्थापित किया जाता है।

जनेऊ|यज्ञोपवीत शुद्ध करने का मंत्र

जनेऊ या यज्ञोपवीत को गायत्री मंत्र पढ़कर ही शुद्ध किया जाता है एवं इसी मंत्र से यह अभिमंत्रित भी हो जाता है।

जनेऊ|यज्ञोपवीत कब-कब बदलें?

मल-मूत्र त्याग के समय यदि यज्ञोपवीत कान पर डालना भूल जाएं तो यज्ञोपवीत बदल लेना चाहिए। चार महिने ज्यादा हो जाने पर या जनेऊ का कोई तार टूट जाने पर बदल लेना चाहिए।

इसके अतिरिक्त उपाकर्म में, जननाशौच में, मरणाशौच में, श्राद्ध में, यज्ञ आदि में तथा चन्द्र ग्रहण एवं सूर्य ग्रहण उपरांत भी नया जनेऊ धारण करना अपेक्षित है।

जनेऊ|यज्ञोपवीत बनाने की विधि एवं यज्ञोपवीत के नियम

जनेऊ|यज्ञोपवीत बनाने की विधि का ज्ञान अपने गुरु से प्राप्त करें तो ठीक है। फिर भी यहां ब्रह्मसूत्र बनाने की विधि का वर्णन किया जा रहा है।

  • शुद्ध खेत में उत्पन्न हुए कपास को तीन दिन तक धूप में सुखावें। फिर उसे स्वच्छ कर हाथ के चरखे से कातने का कार्य प्रसन्न चित्त एवं कोमल मन से करें।
  • क्रोधी, पापी एवं रोगग्रस्त गंदे शोकातुर मनुष्य के हाथ का कता सूत ब्रह्मसूत्र बनाने में प्रयोग ना करें।
  • देवालय, नदी तीर, बगीचा, एकान्त, गुरु गृह, गौशाला, पाठशाला अथवा अन्य पवित्र स्थान पर ही ब्रह्मसूत्र बनाने के लिए स्थान का चुनाव करना चाहिए।
  • बनाने वाला स्नान, सन्ध्या वंदन करने के उपरांत स्वच्छ वस्त्र धारण करके कार्य प्रारंभ करे। जिस दिन ब्रह्मसूत्र बनाना हो उससे तीन दिन पूर्व ब्रह्मचारी रहे और नित्य एक सहस्त्र गायत्री का जप करे।
  • चार उंगलियों को बराबर-बराबर करके, उन चारों पर तीन तारों के 96 चक्कर गिन लें। गंगाजल, तीर्थजल या किसी अन्य पवित्र जलाशय के जल से उस सूत्र का प्रक्षालन करें। तदोपरांत तकली की सहायता से इन सम्मिलित तीन तारों को कात लें।
  • कत जाने पर उसे मोड़कर तीन लड़ों में ऐंठ लें। 96 चप्पे गिन लें तथा तकली पर कातते समय मन ही मन गायत्री मंत्र का जप करें और तीन लड़ ऐंठते समय – (आपोहिष्ठा मयो भुवः) मंत्र का मानसिक जप करें।
  • कते और ऐंठते हुए डोरे को तीन चक्करों में विभाजित करके ग्रन्थि लगावें, आरम्भ में तीन गांठें और अन्त में एक गांठ लगाई जाती है। कहीं-कहीं अपने गोत्र के जितने प्रवर होते हैं, उतनी ग्रंथियां लगाते हैं और अंत में अपने वर्ण के अनुसार ब्रह्म ग्रंथि, क्षत्रिय ग्रंथि या वैश्य ग्रन्थि लगाते हैं।
  • ग्रंथियां लगाते समय त्रयम्बकं यजामहे मंत्र का मन ही मन जप करना चाहिए। ग्रंथि लगाते समय मुख पूर्व की ओर रहना चाहिए।

जनेऊ|यज्ञोपवीत कितने प्रकार की होती है?

वैदिक मार्ग एवं तांत्रिक मार्ग के उपासकों के लिए यज्ञोपवीत भिन्न-भिन्न होता है। इसका ज्ञान सम्बन्धित मार्ग के गुरु से ही प्राप्त करना चाहिए। यह भी पढ़ें- भगवान श्रीराम के बारे में यह रोचक तथ्य आप नहीं जानते होंगे

जनेऊ|यज्ञोपवीत की उपयोगिता

जनेऊ|यज्ञोपवीत की उपयोगिता मन पर शुभ संस्कार जमाने से है। आत्मा को ब्रह्मपरायण करने के लिए अनेक प्रकार के पूजन, साधन, व्रत, अनुष्ठान विभिन्न धर्मों में बताये गये हैं।

हिन्दू धर्म के ऐसे ही प्रधान साधनों में एक यज्ञोपवीत है। ब्रह्मसूत्र धारण कर लोग ब्रह्म तत्व में परायण हों, इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए ब्रह्मसूत्र है। यदि इससे प्रेरणा ग्रहण न की जाए तो वह गले में डोरा बांधने के अतिरिक्त और कुछ भी नहीं है।

ब्रह्मसूत्र की तीन लड़ें हमारे लिए तीन महान संकेत करती हैं। तीन ऋण हैं- देव ऋण, ऋषि ऋण एवं पितृ ऋण। ये तीनों लड़ें प्रेरणा देती हैं कि जीवन भर इनके प्रति कृतज्ञ रहना चाहिए।

ये तीन लड़ें माता, पिता एवं आचार्य के प्रति कर्त्तव्य पालन की भी प्रेरणा देता है। ब्रह्मसूत्र हमें सदा अपने कर्त्तव्य के प्रति अडिग एवं निष्ठावान रहने के लिए संकेत देता रहता है।

यज्ञोपवीत हमारे शरीर की नहीं अपितु जीवन की शोभा है। यदि हम भारतीय उसे फिर शिक्षाओं और आदर्शों के साथ धारण कर सकें तो ब्रह्मसूत्र भी सार्थक है और हमारा जीवन भी सार्थक है।

ब्रह्मसूत्र आदर्शवादी भारतीय संस्कृति की मूर्तिमान प्रतिमा है, इसमें भारी तत्व ज्ञान और मनुष्य को देवता बनाने वाला तत्व ज्ञान भरा हुआ है। भले ही लोग इस रहस्य को समझने तथा आचरण करने में समर्थ न हों, तो भी इसको धारण करना आवश्यक है क्योंकि बीज होगा तो अवसर मिलने पर उग भी आयेगा।

यज्ञोपवीत मंत्र

यज्ञोपवीत मंत्र से तांत्पर्य यज्ञोपवीत धारण करने के मंत्र से है जो निम्न प्रकार से है-

ऊँ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

यज्ञोपवीत मंत्र का अर्थ

यज्ञोपवीत मंत्र का अर्थ– यज्ञोपवीत परम पवित्र है। पिता प्रजापति द्वारा यह सहज रूप से हमारे कल्याणार्थ प्रदान किया गया है। यज्ञोपवीत आयुष्य प्रदान करने वाला, शुभ करने वाला एवं बल और तेज प्रदान करने वाला है।

यज्ञोपवीत संस्कार मुहूर्त

यज्ञोपवीत संस्कार के लिए सबसे अच्छा मुहूर्त है मकर संक्रान्ति का दिन एवं रक्षाबन्धन का दिन। इसके अतिरिक्त आवश्यकतानुसार किसी भी शुभ मुहूर्त में यज्ञोपवीत संस्कार किया जा सकता है। गुरु दीक्षा के समय भी यज्ञोपवीत संस्कार किया जाता है।

जनेऊ|यज्ञोपवीत कौन पहन सकता है?

गायत्री के साधकों को यज्ञोपवीत अवश्य धारण करना चाहिए। ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य यज्ञोपवीत धारण करते हैं। क्योंकि ब्रह्मसूत्र धारण करने से उनका दूसरा जन्म होता है।

जो स्त्री सन्यासी नहीं है उसे ब्रह्मसूत्र नहीं धारण करना चाहिए। गृहस्थ को दो जनेऊ धारण करना चाहिए क्योंकि उसके ऊपर उसका एवं उसके पत्नी का भी उत्तरदायित्व होता है। सन्यासी एक ब्रह्मसूत्र धारण कर सकता है।

जनेऊ का क्या नियम है?

जनेऊ का क्या नियम है? यह प्रश्न बहुत ही महत्वपूर्ण है। क्योंकि ब्रह्मसूत्र हमें नियम एवं संयम में रहना ही सिखाता है। यदि हमें ब्रह्मत्व को प्राप्त करना है तो नियम, संयम एवं मर्यादा में रहना आवश्यक है। जनेऊ के कुछ महत्वपूर्ण नियम जिनका पालन करना अनिवार्य है, निम्नवत है-

  • जन्म सूतक, मरण सूतक, चाण्डाल स्पर्श, मूर्दे का स्पर्श एवं मल-मूत्र त्याग करते समय यदि ब्रह्मसूत्र कान पर चढ़ाने में भूल हो जाए तो ब्रह्मसूत्र बदल देना चाहिए।
  • यदि तत्काल ब्रह्मसूत्र उपलब्ध न हो या ऐसी परिस्थिति में हो कि जनेऊ बदलना सम्भव नहीं है, तो प्रायश्चित स्वरुप गायत्री जाप करनी चाहिए एवं अनुकूल परिस्थिति मिलते है नया ब्रह्मसूत्र धारण कर लेना चाहिए।
  • ब्राह्मण पदाधिकारी बालक का उपवीत 5 से 8 वर्ष तक की आयु में, क्षत्रिय का 6 से 11 तक, वैश्य का 8 से 12 तक की आयु में यज्ञोपवीत कर देना चाहिए।
  • यदि ब्राह्मण का 16 वर्ष तक की आयु, क्षत्रिय का 22 तक, वैश्य का 24 वर्ष के आयु तक उपवीत न हो तो वह सावित्री पतित हो जाता है। तीन दिन तक उपवास करते हुए पंचगव्य पीने से सावित्री पतित मनुष्य प्रायश्चित करके शुद्ध होता है।
  • ब्राह्मण का वसन्त ऋतु में, क्षत्रिय का ग्रीष्म, एवं वैश्य का उपवीत शरद ऋतु में होना चाहिए। जो सावित्री पतित है, अर्थात निर्धारित आयु से अधिक का हो गया है, उसका भी उपवीत कर देना चाहिए।
  • ब्रह्मचारी को एक तथा गृहस्थ व्यक्ति को दो ब्रह्मसूत्र धारण करना चाहिए, क्योंकि गृहस्थ के पर उसके पत्नी का भी दायित्व होता है।
  • यज्ञोपवीत की शुद्धि नित्य करनी चाहिए। स्नान करते समय साबुन से उसे रगड़-रगड़ कर नित्य स्वच्छ करना चाहिए ताकि पसीने का स्पर्श होने से जो नित्य ही मैल भरता रहता है, वह साफ रहे और दुर्गन्ध की सम्भावना ना रहे।
  • मल-मुत्र त्याग एवं मैथुन के समय जनेऊ कमर के ऊपर रहना चाहिए। इसलिए इसे कान पर चढ़ा लिया जाता है।
  • जनेऊ यदि 4 माह से पुराना हो जाए या उसका कोई तार टूट जाए तो उसे बदल लेना चाहिए। यदि यज्ञोपवीत शरीर से बाहर निकल जाए तो प्रायश्चित स्वरूप गायत्री का जप करना चाहिए।

जनेऊ धारण कैसे करें?

जनेऊ धारण करने के लिए सर्वप्रथम ऊपर बताए विधि से जनेऊ को संस्कारित कर लें। तत्पश्चात निम्न मंत्र पढ़ते हुए धारण करें तथा पुराने ब्रह्मसूत्र को पीठ के पीछे से निकाल लें और यथा शक्ति गायत्री का जप करें।

जनेऊ/यज्ञोपवीत धारण मंत्र

ऊँ यज्ञोपवीतं परमं पवित्रं प्रजापतेर्यत्सहजं पुरस्तात्।
आयुष्यमग्रयं प्रतिमुंच शुभ्रं यज्ञोपवीतं बलमस्तु तेजः।।

पुराना/जीर्ण जनेऊ निकालने का मंत्र

एतावद्दिनपर्यन्तं ब्रह्म त्वं धारितं मया।
जीर्णत्वात् त्वत्परित्यागो गच्छ सूत्र यथासुखम्।।

जनेऊ पहनने के फायदे

जनेऊ पहनने के फायदों के बारे में शास्त्रों द्वारा बहुत से वचन कहे गये हैं। यज्ञोपवीत धारण करने से आध्यात्मिक लाभ के साथ-साथ शारीरिक लाभों को भी प्राप्त किया जा सकता है-

  • जनेऊ, गायत्री का स्वरूप है। यह हमें हमारे धर्म पथ पर अड़े रहने का हमेशा ध्यान कराता रहता है। ब्रह्मसूत्र पहनने से हमें यज्ञ, वेद अध्ययन एवं कर्मकाण्ड करने का अधिकार प्राप्त हो जाता है।
  • जन्म से सभी को शूद्र माना गया है, परन्तु ब्रह्मसूत्र धारण करने के उपरांत मनुष्य का दूसरा जन्म माना जाता है। इसीलिए ब्रह्मसूत्र धारक को द्विज कहा जाता है।
  • जनेऊ धारण करने वाला व्यक्ति मल-मूत्र के समय जनेऊ को कान पर चढ़ा लेता है। इससे मूत्र सम्बन्धित रोग एवं बवासीर जैसे रोगों से बचाव होता है।
  • ब्रह्मसूत्र पहनने से हृदय सम्बन्धी रोगों से बचाव होता है।
  • यह ब्रह्मसूत्र बल, तेज एवं आयुष्य प्रदान करने वाला है।
  • यज्ञोपवीत संस्कार के समय जनेऊ में देवताओं का आवाहन करके उनको स्थापित किया जाता है। इस प्रकार ब्रह्मसूत्र साक्षात् देव प्रतीमा का रूप ले लेता है। अतः ब्रह्मसूत्र धारक का हर प्रकार की नकारात्मक शक्तिओं से बचाव होता है। यदि व्यक्ति यज्ञोपवीत धारण के नियमों का पालन करता रहे एवं ब्रह्म प्राप्ति की ओर तत्पर रहे।

जनेऊ का फोटो | यज्ञोपवीत का फोटो

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